सीमैप ने बाराबंकी के गांव भगौली सरायफूटी में की एरोमा सस्टनेबल कलस्टर की शुरुआत

0
147

लखनऊ। सीएसआईआर-सीमैप ने उत्तर प्रदेश के जिला बाराबंकी के गांव भगौली सरायफूटी, में एरोमा सस्टनेबल कलस्टर स्थापना की शुरुआत की, जिसके माध्यम से कृषि परिस्थिकीय तंत्र एवं टिकाऊ नवीन कृषि पद्धति को बढावा मिलेगा।

नई तकनीकी, कृषि मशीनीकरण, रासायनिक उपयोग में वृद्धि कारण फसल उत्पादकता में वृद्धि के साथ कृषि में शानदार प्रगति हुई है, जो खाद्य कीमतों को कम करने में सहायक हुआ है।

इसके दुष्प्रभाव से मिट्टी की उर्वरता में कमी, खेती की लागत में वृद्धि भूजल का अधिक दोहन, वायु प्रदूषण, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन, खेतीहर मजदूर की स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां प्रमुख हैं।

कृषि परिस्थिकीय तंत्र एवं टिकाऊ नवीन कृषि पद्धति को मिलेगा बढ़ावा

एरोमा सस्टनेबल कलस्टर से मेंन्थाल मिंट की खेती में टिकाऊ नवीन कृषि पद्धितियों को गति प्रदान करेगा, जो पर्यावरणीय स्वास्थ्य, आर्थिक लाभप्रदता और सामाजिक इक्विटी को एकीकृत करता है।

संत सांगानेरिया फाउंडेशन और अल्ट्रा इंटरनेशनल लिमिटेड के सहयोग से सीएसआईआर-सीमैप द्वारा नवाचार टिकाऊ सुगंध कलस्टर और नवीन प्रसंस्करण प्रौद्योगिकियों, जो मिट्टी के स्वास्थ्य, जैव विविधता, पर्यावरण और जीवन की गुणवत्ता को नुकसान पहुंचाए बिना स्थिर और आर्थिक उत्पादकता का स्तर बनाए रखेगा।

इस स्थायी कलस्टर में अपनाई जाने वाली कृषि पद्धतियों से पानी और ऊर्जा की बचत, गैसों के उत्सर्जन को कम करने और मेंथा के उत्पादन के लिए रसायनों और उर्वरकों के न्यूनतम उपयोग को सुनिश्चित किया जा सकेगा।

मेंथा के इस सस्टनेबल कलस्टर में नवीन किस्म (सिम-उन्नति) जो परिपक्वता के समय बेमौसम बारिश से फसल की रक्षा करने, व अन्य जैविक और अजैविक विपरीत प्रभवों के लिए प्रतिरोधी है। आसवन और अन्य कृषि अपशिष्टों का उपयोग करके प्रक्षेत्र पर पर्याप्त मात्रा में जैविक खाद का उत्पादन किया जायेगा।

नियोजित कृषि-तकनीक (अगेती मेंथा तकनीकी) सिंचाई और निराई में शामिल लागतों में कमी आयेगी। इसके अलावा, यूएवी (ड्रोन) के माध्यम से पोषक तत्वों एवं पादप सुरक्षा रसायनों का छिड़काव, फसल की उचित देख भाल तथा सही दिशा निर्देशों को अवगत कराएगा।

आसवन इकाइयों से उत्सर्जित हानिकारक तत्वों को कम करने का प्रयास, सौर ऊर्जा आधारित आसवन इकाइयों को स्थापित किया जाएगा और इससे उत्सर्जित आसवन अपशिष्ट का उपयोग मशरूम उगाने और वर्मी खाद बनाने के लिए किया जाएगा, जो अपशिष्ट को कम करने और इसके मूल्यवर्धन की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम होगा।

सीएसआईआर-सीमैप के निदेशक, डॉ. प्रबोध कुमार त्रिवेदी ने इस बात पर जोर दिया कि इस तरह के सुगंधित सस्टेनेबल समूह और उन्नत कृषि क्रियाए, हमारे पर्यावरण की रक्षा करते हुए हमारे प्राकृतिक संसाधनों को बचाने में सहयोग करेंगी।

ये भी पढ़ें : सीमैप में औषधीय एवं सगंध पौधों की खेती पर दो दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू 

ऐसी कृषि प्रणालियाँ, जिसमें मृदा स्वास्थ के निर्माण, पानी प्रबंधन वायु और जल प्रदूषण को कम करने और जैव विविधता को बढ़ावा देने में कारगर होंगी जो कि बदलते मौसम के साथ लचीलापन स्थापित करेगा। यह प्राकृतिक संसाधनों के दोहन से बचाएगा और जिससे खेती पर निर्भरता किसानों की अगली पीढी के लिए बचा रहेगा।

आज किसानों के मेंथाल मिंन्ट फसल पर ड्रोन के माध्यम से पोषक तत्वों का छिड़काव, खेतों के मृदा स्वास्थ्य रिपोर्ट का वितरण तथा सौर ऊर्जा द्वारा मेंथा तेल आवसन का सजीव प्रदर्शन किया गया।

सस्टेनेबल क्लस्टर के उद्घाटन के दौरान डॉ. आलोक कालरा, डॉ. राजेश कुमार वर्मा, डॉ. संजय कुमार, डॉ. मनोज सेमवाल, इंजी. अश्विन नन्नावरे, डॉ रितु त्रिवेदी और डॉ रक्षपाल सिंह ने किसानों के साथ बातचीत भी की।

सस्टेनेबल क्लस्टर की विशेषताएँ:

  • एक उच्च उत्पादकता वाली किस्म (सिम-उन्नति) जो मौसम की स्थिति में बदलाव, असमय बारिश आदि जैसे विभिन्न तनावों के प्रति सहिष्णु है।
  • एक बेहतर कृषि तकनीक, अर्ली मिंट टेक्नोलॉजी, सिंचाई के पानी पर 20-25% बचत सुनिश्चित करना, काफी कम खरपतवार संक्रमण और जल्दी परिपक्वता किसानों को एक और फसल लेने में सक्षम बनाती है।
  • न्यूनतम अपशिष्ट: मशरूम की खेती के लिए आसवन अपशिष्ट का उपयोग अंत में इसे बेहतर गुणवत्ता वाले वर्मीकम्पोस्ट में परिवर्तित करने से पहले (फार्म यार्ड खाद की तुलना में पोषक तत्वों में 50-100% अधिक समृद्ध)। इस वर्मीकम्पोस्ट के उपयोग से रासायनिक उर्वरकों के उपयोग में 75% तक की कमी पाई गई है।
  • इसके अलावा, मिन्ट की फसल की खेती के दौरान पानी और रसायनों जैसे प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग को कम करने के लिए आईओटी और ड्रोन जैसी सटीक कृषि तकनीकों का उपयोग किया जाएगा।
  • सीएसआईआर-सीआईएमएपी द्वारा डिजाइन और विकसित एक सौर आसवन इकाई उत्सर्जन को कम करेगी जो हमारे पर्यावरण को काफी नुकसान पहुंचाती है।
  • उक्त कृषि-प्रणालियाँ पानी के उपयोग (25-30% तक), रासायनिक उर्वरकों (75% तक) को कम कर देंगी और आने वाली पीढ़ियों के लिए उत्पादकता बनाए रखने के लिए आवश्यक जैव-विविधता और मृदा स्वास्थ्य को बढ़ावा देंगी।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here