लखनऊ : हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने आदिपुरुष फिल्म विवाद मामले में दाखिल दो जनहित याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए तल्ख टिप्पणियां कीं। न्यायालय ने बोला कि रामायण, कुरान या बाइबिल जैसे धार्मिक ग्रंथों पर ऐसी विवादित फिल्में बनाई ही क्यों जाती हैं, जिनसे लोगों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचती है।
वहीं सुनवाई पूरी करने के उपरांत न्यायालय ने स्पष्ट किया कि आदेश चैम्बर में लिखाया जाएगा। हालांकि यह भी बोला कि आदेश में फिल्म के निर्माता-निर्देशक ओम राऊत को नोटिस जारी करने का आदेश हो सकता है। न्यायालय ने आगे बोला कि वह केंद्र सरकार से भी पूछ सकती है कि सेंसर बोर्ड द्वारा फिल्म को जारी सर्टिफिकेट को उसने रद्द क्यों नहीं किया।
न्यायालय ने बोला कि एक फिल्म में हमने देखा कि भगवान शिव को त्रिशूल बगल में दबाए भागते हुए दिखाया गया, अब बात बढ़ते-बढ़ते भगवान राम, देवी सीता और हनुमान जी को भद्दे तरीके से प्रदर्शित करने पर आ गई है। न्यायालय ने धार्मिक विषयों पर बनी फिल्मों को पास करने के लिए गाइडलाइन्स बनाने की जरूरत होने की बात भी बोली।
उपरोक्त मौखिक टिप्पणियां न्यायमूर्ति राजेश सिंह चौहान व न्यायमूर्ति श्री प्रकाश सिंह की खंडपीठ ने ओपन कोर्ट में कुलदीप तिवारी और नवीन धवन की ओर से दाखिल अलग-अलग याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए कीं। हिंदुओं की सहिष्णुता के बारे में चर्चा करते हुए न्यायालय ने यह भी बोला कि कुरान पर एक आधे घंटे की डॉक्यूमेंट्री बना दी जाए तो आप कल्पना कर सकते हैं कि उसकी क्या प्रतिक्रिया होगी।
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न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि हम यहां किसी एक मजहब की बात नहीं कर रहे। किसी भी धर्म, मजहब के पवित्र ग्रंथों का गलत चित्रण करते फिल्म नहीं बननी चाहिए। सुनवाई के दौरान न्यायालय ने नसीहत भी दी कि राम के त्याग और भरत के प्रेम को फिल्म में क्यों नहीं दिखाते। फिल्म की निर्माता कंपनी रेट्रोफाइल्स प्राइवेट लिमिटेड की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता सुदीप सेठ ने दोनों याचिकाओं का विरोध किया।
न्यायालय ने तब वरिष्ठ अधिवक्ता से पूछा कि क्या वह अपने पूजाघर में फिल्म में दिखाए गए पहनावे वाली वेषभूषा के साथ मूर्तियां रखेंगे। सुनवाई के दौरान न्यायालय ने केंद्र सरकार की तरफ से पेश डिप्टी सॉलिसिटर जनरल एसबी पांडेय से पूछा कि आखिर केंद्र सरकार क्या कर रही है, वह स्वयं सेंसर बोर्ड द्वारा फिल्म को जारी प्रमाण पत्र का रिव्यू क्यों नहीं करती है।