डीसीजीआई ने लेवोर्मेलॉक्सिफ़ेन के फेज़-1 क्लिनिकल ट्रायल को दी हरी झंडी

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सीएसआईआर-सीडीआरआई की निदेशक डॉ. राधा रंगराजन

भारत के औषधि महानियंत्रक (डीसीजीआई) ने सिप्ला लिमिटेड को लेवोर्मेलॉक्सिफ़ेन के फेज़-I के क्लिनिकल (नैदानिक) ट्रायल की अनुमति दी है।

इस नई इनवेस्टिगेशनल दवा को सिप्ला और सीएसआईआर-सेंट्रल ड्रग रिसर्च इंस्टीट्यूट (सीएसआईआर-सीडीआरआई), लखनऊ द्वारा संयुक्त सहयोग के माध्यम से एक ओरल (मौखिक) तथा गैर-हार्मोनल गर्भनिरोधक के रूप में विकसित किया जा रहा है।

यह अनुमति, डीजीसीआई द्वारा नियुक्त उस विषय विशेषज्ञ समिति (एसईसी) की सिफारिशों पर आधारित है, जिसने सीएसआईआर-सीडीआरआई और सिप्ला द्वारा प्रस्तुत अनुसंधान डेटा की सावधानीपूर्वक समीक्षा की थी।

ऑरमेलॉक्सिफ़ेन, सीएसआईआर-सेंट्रल ड्रग रिसर्च इंस्टीट्यूट (सीएसआईआर-सीडीआरआई) द्वारा विकसित एक गैर-हार्मोनल मौखिक गर्भनिरोधक गोली है। यह 1990 के दशक से “सहेली” ब्रांड नाम से बाजार में उपलब्ध है है तथा यह “छाया” ब्रांड नाम के साथ भारत सरकार के राष्ट्रीय परिवार नियोजन कार्यक्रम में भी शामिल है।

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ऑरमेलॉक्सिफ़ेन दो एनैन्शियोओमर्स (डेक्स्ट्रो एवं लेवो ) का मिश्रण है, यानी समान रासायनिक संरचना वाले लेकिन मिरर इमेज (दर्पण छवि) युक्त त्रि-आयामी (थ्री-डाइमेंशनल) संरचनाओं वाले यौगिक।

प्रीक्लिनिकल अध्ययनों में पाया गया कि ऑरमेलॉक्सिफ़ेन की प्रभावकारिता (एफ़िकेसी) मुख्यतः इसके “लेवो” रूप से प्रेरित है इसलिए, सीएसआईआर-सीडीआरआई और सिप्ला लिमिटेड ने गर्भनिरोधक उपयोग के लिए लेवोर्मेलॉक्सिफ़ेन को अलग से विकसित करने के लिए एक समझौता किया।

सीएसआईआर-सीडीआरआई की निदेशक डॉ. राधा रंगराजन ने कहा, “अलग से शुद्ध एनैन्शियोमर विकसित करने का उद्देश्य उपयोगकर्ताओं यानि कि प्रजनन आयु की महिलाओं के लिए समग्र रासायनिक बोझ को कम करना है”।

सिप्ला लिमिटेड एवं सीएसआईआर-सीडीआरआई के बीच न सिर्फ भारत बल्कि वैश्विक स्तर पर सुलभ एवं सस्ती दवाओं का विकास करने के लिए काफी लंबी एवं दीर्घकालिक साझेदारी रही है।

ओर्मेलोक्सीफेन के डेक्स्ट्रो-ओर्मेलोक्सीफेन एवं लेवो-ओर्मेलोक्सीफेन (लेवोर्मेलॉक्सिफ़ेन) नामक दो प्रतिरूप (एनैन्शियोओमर्स) हैं।

ओर्मेलोक्सीफेन की प्रभाकरिता या एफीकेसी मुख्यतः इस लेवो प्रतिरूप यानि की लेवोर्मेलॉक्सिफ़ेन की वजह से है इस लिए इस नए शोध में सिर्फ लेवोर्मेलॉक्सिफ़ेनको ही शुद्ध रूप में गर्भनिरोधक के रूप में इस्तेमाल किया जाएगा।

इससे डेक्स्ट्रो-ओर्मेलोक्सीफेन के अनावश्यक उपयोग को कम किया जा सकेगा और इस प्रकार महिलाओं को अनावश्यक केमिकल बर्डन से बचाया जा सकेगा।

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