हमें आपसी सद्भाव, सहयोग और समृद्धि के मार्ग पर अग्रसर होना है : सीएम योगी

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लखनऊ। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान पर्व, स्वतंत्रता दिवस के उत्सव के अवसर पर संस्कृति विभाग उत्तर प्रदेश द्वारा एक भारत श्रेष्ठ भारत के अंतर्गत अनेक कार्यक्रम हुए। आज मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने आज 77वें स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर विधान भवन, लखनऊ में ध्वजारोहण किया।

उन्होंने इस अवसर पर स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों एवं भारत माता के वीर सपूतों को नमन करते हुए उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित की।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने तिरंगा फहराकर दी आज़ादी की बधाई एवं शुभकामनाएँ

उन्होंने कहा कि यह दिन हमारे देश की आज़ादी की प्राप्ति की महत्वपूर्ण स्मृति को ताजगी देने वाला है और हमें याद दिलाता है कि हमें अपनी स्वतंत्रता की क़ीमत समझनी चाहिए। उन्होंने बताया कि हमारे प्रजातंत्र का मूल आधार भारतीय संस्कृति है, यह वही संस्कृति है जो हमें संस्कारित करती है।

स्वतंत्रता दिवस के इस अवसर पर, हमें यह समझना है कि हमारे पास विभिन्न चुनौतियों का सामना करने का अद्वितीय और साहसी अवसर है। हमें आपसी सद्भाव, सहयोग, और समृद्धि के मार्ग पर अग्रसर होना है।

संस्कृति विभाग उत्तर प्रदेश के कार्यक्रमों में दिखी ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ की झलक

इस पावन अवसर पर संस्कृति विभाग उत्तर प्रदेश द्वारा आयोजित कार्यक्रमों में ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ की अनुपम झलक देखने को मिली। यह दिव्य छटा पूरे देश को एक ऐसे अटूट बंधन में जोड़ देती है, जिससे हमारी एकता को अखंडता नई मज़बूती मिलती है।

‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ का उद्देश्य एकता की उस शक्ति को जागृत करना है जिससे हमारा देश को समृद्धि, सामाजिक समानता, और सांस्कृतिक संवर्धन की दिशा में महत्वपूर्ण ऊँचाई मिले।

सांस्कृतिक कार्यक्रमों के क्रम में सिक्किम राज्य से आए लोक कलाकारों ने तमांग सीलो लोकनृत्य का प्रदर्शन कर लोगों का मनमोह लिया।

यह नृत्य तामांग जाति की परंपरागत नृत्य तमांग सीलो, सिक्किम की एक प्रमुख जाति की परंपरा का एक उत्कृष्ट नृत्य है, जो उनके सांस्कृतिक विरासत, धर्म और परंपरा का प्रतीक है। तामांग सीलो को अधिकतर सोनम लोचर के अवसर पर प्रदर्शित किया जाता है, जो तामांग जमात द्वारा मनाया जाता है।

‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ के अंतर्गत गुजरात से आए लोककलाकारों ने गोप रास एवं मिश्र रास से दर्शकों को आनंदित किया। गोप रास गुजरात की प्रमुख परंपरागत नृत्य और गीत की एक आदर्श उदाहरण है, जिसे कृष्ण भक्ति के रूप में प्रस्तुत किया जाता है।

यह नृत्य गोपियों की कृष्ण से प्रेम और उनकी लीलाओं की प्रतिष्ठा को दर्शाता है। मिश्र रास गुजरात की रिच और विविध संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो गुजरात के परंपरागत नृत्य-संगीत के विशेष वर्ग को प्रतिनिधित्व करता है।

मिश्र रास एक परिकल्पनात्मक नृत्य है, जिसमें विभिन्न रागों, नृत्यों, और गानों का संयोजन होता है और इसके माध्यम से भगवान श्रीकृष्ण की विभिन्न लीलाएँ प्रस्तुत की जाती हैं।

इस दौरान थारु जनजाति का झींझी लोकनृत्य भी मुख्य आकर्षण का केंद्र रहा। यह लोकनृत्य एक ऐसा पारंपरिक लोक नृत्य है जो थारू समुदाय के लोगों में मनाया जाता है।

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यह कार्यक्रम नई फसल आ जाने के उपलक्ष में मारवा भादो के महीने में गांव के प्रत्येक घर-घर जाकर महिलाओं व पुरष वर्ग द्वारा मनाया जाता है। इस क्रम में उत्तर प्रदेश के ढ़ेढ़िया लोकनृत्य, फरुवाही लोकनृत्य, राई लोक नृत्य, कथक एवं भारत नाट्यम की प्रस्तुति सभी को राष्ट्र्भक्ति के रंग में सराबोर कर दिया।

विभिन्न राज्याें की संस्कृति के प्रतीक नृत्यों की झलक

सिक्किम (तमांग सीलो) : तामांग जाति की परंपरागत नृत्य तमांग सीलो, सिक्किम की एक प्रमुख जाति की परंपरा का एक उत्कृष्ट नृत्य है, जो उनके सांस्कृतिक विरासत, धर्म और परंपरा का प्रतीक है। तामांग सीलो को अधिकतर सोनम लोचर के अवसर पर प्रदर्शित किया जाता है, जो तामांग जमात द्वारा मनाया जाता है।

गुजरात (गोप रास) : गोप रास गुजरात की प्रमुख परंपरागत नृत्य और गीत की एक आदर्श उदाहरण है, जिसे कृष्ण भक्ति के रूप में प्रस्तुत किया जाता है।

यह नृत्य गोपियों की कृष्ण से प्रेम और उनकी लीलाओं की प्रतिष्ठा को दर्शाता है। गोप रास को गुजरात के प्रमुख पर्वों और त्योहारों में प्रस्तुत किया जाता है, और इसका मुख्य उद्देश्य है कृष्ण भक्ति और रासलीला का प्रस्तावना करना।

मिश्र रास : मिश्र रास गुजरात की रिच और विविध संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो गुजरात के परंपरागत नृत्य-संगीत की एक विशेष वर्ग को प्रतिनिधित्व करता है। मिश्र रास एक परिकल्पनात्मक नृत्य है, जिसमें विभिन्न रागों, नृत्यों, और गानों का संयोजन होता है और इसके माध्यम से भगवान श्रीकृष्ण की विभिन्न लीलाएँ प्रस्तुत की जाती हैं।

थारु झींझी लोकनृत्य : झींझी नृत्य एक ऐसा पारंपरिक लोक नृत्य है जो थारू समुदाय के लोगों में मनाया जाता है यह कार्यक्रम नई फसल आ जाने के उपलक्ष में मारवा भादो के महीने में गांव के प्रत्येक घर-घर जाकर महिलाओं व पुरष वर्ग द्वारा मनाया जाता है।

झींझी नृत्य मै घड़ा सिर पर रख कर प्रत्येक घर से आटे का चावल का दान देकर सभी घरों में झींझी खेलने के बाद उस आटे व चावल को इकट्ठा कर झींझी को एक देवीय रूप मान कर उसे सभी महिलाएं विसर्जन करने के लिए नदी में जाती हैं और उसे विसर्जन कर और आटे का चावल का पकवान बनाकर थारू पकवान खाते है।

ढ़ेढ़िया लोकनृत्य : ऐसी मान्यता है कि जब भगवान श्री राम चौदह वर्ष का बनवास पूर्ण कर के अयोध्या लौट रहे थे तब सर्वप्रथम प्रयाग की पावन धरती पर संगम दर्शन एव मां गंगा की पूजन अर्चन के लिए पधारे थे प्रयाग की स्त्रियों ने तीनों बनवासियो की आरती उतारी और स्वागत किया।

वहीं कुछ स्त्रियो को संदेह हुआ की कहीं भगवान राम के पीछे शनि देव न आगए हों तो प्रयाग की स्त्रियों ने मिट्टी की छिद्र दार हांडी में दिए रखकर तीनो बनवसियो की नजर उतारी थी तब से यह प्रथा ढेड़िया के नाम से जाना जाता है। मूलतः यह पर्व द्वाबा क्षेत्र का ही है अश्विनी शुक्ल चतुर्दशी के दिन यह पर्व प्रयागराज में मनाया जाता है।

फरुवाही लोकनृत्य : फरुवाही लोकनृत्य अवध क्षेत्र (अयोध्या) का पारंपरिक लोक नृत्य है यह नृत्य कई सदियों से होता चला आ रहा है जिसमें हमेशा प्रभु राम के नाम के गीत अथवा श्री राम का नाम अवश्य होता है यह नृत्य की सबसे बड़ी पहचान है और इन्हीं गीतों पर फरुवाही नृत्य किया जाता है।

इसमें जिसमें लाठी-डंडों के माध्यम से एवं फरी करके नृत्य प्रस्तुत किया जाता है। यह नृत्य ग्रामीण क्षेत्रों में ज्यादातर होता है यह नृत्य शादी विवाह एवं फसल कटाई की खुशी में भी किया जाता है।

इस नृत्य के माध्यम से अयोध्या का वर्णन नृत्य के माध्यम से कोरियोग्राफी बनाते हैं किया जाता है इसमें नक्कारा करताल बांसुरी हारमोनियम मजीरा ढोलक जैसे वाद्य यंत्रों का प्रयोग किया जाता है।

भारत नाट्यम : भरतनाट्यम् या सधिर अट्टम मुख्य रूप से दक्षिण भारत की शास्त्रीय नृत्य शैली है। इस नृत्यकला में भावम्, रागम् और तालम् इन तीन कलाओ का समावेश होता है। भावम् से ‘भ’, रागम् से ‘र’ और तालम् से ‘त’ लिया गया है। इसलिए भरतनात्यम् यह नाम अस्तित्व में आया है।

राई : राई लोकनृत्य, जिसे राई दांस भी कहा जाता है, उत्तर प्रदेश राज्य के प्रमुख लोकनृत्यों में से एक है। यह उत्तर प्रदेश के पूर्वी भाग, विशेष रूप से भदोही, संत कबीर नगर, बस्ती, सोनभद्र, गोरखपुर आदि क्षेत्रों में प्रचलित है।

कथक : कथक लोकनृत्य भारतीय संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा है और यह उत्तर प्रदेश के अलावा भारत के विभिन्न भागों में भी प्रसिद्ध है। कथक नृत्य एक शास्त्रीय भारतीय नृत्य प्रणाली है जिसमें भव्यता, ग्रेसफुलनेस और तालमीश्रित नृत्य तकनीकों का प्रदर्शन किया जाता है।

इसका मुख्य ध्येय दर्शकों को कथा (कहानी) के माध्यम से आनंद प्राप्त करना और भव्य नृत्य की सुंदरता का आनंद उठाना होता है।

कथक नृत्य के दो प्रमुख घराने होते हैं – लखनऊ घराना और जयपुर घराना। ये घराने आपसी प्रतिस्पर्धा में अद्वितीयता और उनिकता के साथ प्रस्तुतिकरण करते हैं।

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