13 साल की उम्र में मां-बाप ने बेचा, 14 साल की उम्र में बनी मां, जाने पहलवान नीतू की कहानी

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पणजी: महान महिला मुक्केबाज एमसी मैरी कॉम ने खिलाड़ियों की एक पीढ़ी को प्रेरित किया है। खासकर महिला एथलीटों को। इनमें एक पहलवान नीतू सरकार भी हैं, जिन्होंने सदियों पुरानी पितृसत्ता और वित्तीय बाधाओं से जूझते हुए 14 साल की उम्र में जुड़वां बच्चों को जन्म देने के बाद भी अपनी खुद की एक अलग राह चुनी।

नीतू का उन मुश्किलों से बाहर आना अपने आप में कई खिलाड़ियों के लिए एक प्रेरणा है। उन्होंने गोवा में जारी 37वें राष्ट्रीय खेलों में महिलाओं के 57 किग्रा भार वर्ग में रजत पदक जीता है। उनकी सफलता यह याद दिलाती हैं कि खेल और जिंदगी में कोई भी चीज मुफ्त नहीं मिलती है।

मौजूदा समय में एसएसबी में कार्यरत नीतू ने कहा, ” मैं बहुत कुछ झेल चुकी हूं। मैं उस विषय पर बात भी नहीं करना चाहती। जीवन हर किसी को दूसरा मौका देता है, और आज मैं गर्व से कह सकती हूं कि मैंने अपना प्रत्येक पदक पूरी मेहनत और खेल के प्रति समर्पण से जीता है।

राष्ट्रीय खेलों में तीसरा पदक जीतकर पहलवान नीतू सरकार ने पेश की मिसाल

भिवानी में पैसों की तंगी से जूझ रहे परिवार में जन्मी, नीतू अपनी किशोरावस्था के दौरान अपने जीवन के सबसे कठिन दौर से गुजर चुकी हैं। वह जब 13 साल की थी तब ही उन्हें “मानसिक समस्याओं” के कारण 43 साल के एक व्यक्ति के हाथों बेच दिया गया था, लेकिन वह किसी तरह से अपने माता-पिता के पास वापस आने में सफल रही।

नीतू को हालांकि उस समय थोड़ी राहत मिली, जब उनके माता-पिता ने जल्द ही उनके लिए एक और दूल्हा ढूंढ लिया। दूसरा पति बेरोजगार था और वह अपनी मां की पेंशन पर घर चलाता था।

उन्होंने कहा, ” हमारे लिए आर्थिक रूप से चीजों को मैनेज करना बहुत मुश्किल था। घर चलाने के लिए हमारे पास केवल मेरी सास की पेंशन थी। मैंने छोटी-मोटी नौकरी करने का फैसला किया और एक ब्यूटीशियन, एक नौकरानी, एक दुकान क्लर्क और यहां तक कि दर्जी के रूप में काम करने से पहले मैंने जमीन पर टाइलें लगाने का भी काम किया।

एक साल के अंदर ही नीतू ने जुड़वां लड़कों को जन्म दिया। इस प्रकार उनके युवा कंधों पर जिम्मेदारी और ज्यादा बढ़ गई। जुड़वां बच्चे होने से अपने खेल को आगे बढ़ाने के उनके सपनों पर पानी फिर गया। लेकिन गांव में एक योग टीचर से अचानक मुलाकात के बाद उनका जीवन हमेशा के लिए बदल गया।

योग टीचर ने उन्हें कुश्ती कोच जिले सिंह के पास भेजा, जिन्होंने खेल को आगे बढ़ाने के लिए नीतू के सपनों को प्रेरित करने के लिए एमसी मैरी कॉम की कहानी सुनाई। लेकिन जब नीतू ने अपनी इच्छा जाहिर की तो उन्हें अपने पति से बहुत कम सहयोग मिला।

उन्होंने कहा, ” शुरुआत में मेरे पति ने खेल को अपनाने की मेरी योजना को सपोर्ट नहीं किया और इसे एक पागलपन बताया। मैं हमेशा समझती थी कि जब तक आप चुनौतियां नहीं लेंगी तब तक जीवन सहज और आसान नहीं होगा। मैं नहीं चाहती थी कि मेरे लड़के भी अपने जीवन में इस तरह की मुश्किल हालातों से गुजरें।

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नीतू ने कहा, ” चूंकि मैंने केवल सातवीं कक्षा तक पढ़ाई की थी, मुझे पता था कि मैं अपनी पढ़ाई की योग्यता के आधार पर किसी भी नौकरी के लिए योग्य नहीं हो पाऊगी। और शुक्र है कि मेरे पति कुछ समझाने-बुझाने के बाद मेरी मदद करने के लिए तैयार हो गए। लेकिन उनकी एक शर्त थी कि मैं परिवार और गांव के अन्य सदस्यों के जागने से पहले अपनी ट्रेनिंग पूरी कर लूंगी।

उन्होंने कहा, ” मैं सुबह करीब 3:30 बजे लगभग 10 किलोमीटर की जॉगिंग शुरू कर देती थी और जब मैं घर लौटती थी, तब तक मैं खुद को रोज के कामों में व्यस्त कर लेती थी।

नीतू जब 17 साल की थीं, तब उन्होंने खेल को गंभीरता से लिया और 19 साल की उम्र में सीनियर वर्ग में राष्ट्रीय पदक विजेता बन गईं। दो साल बाद उन्होंने ब्राजील में जूनियर विश्व चैंपियनशिप में भारत का प्रतिनिधित्व किया और वापसी की।

इसके बाद 2015 में केरल में आयोजित राष्ट्रीय खेलों में भी उन्होंने कांस्य पदक जीता। नीतू ने पिछले साल गुजरात में आयोजित खेलों के 36वें संस्करण में 57 किग्रा वर्ग में रजत पदक जीता था। वह अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं से भी पदक लेकर लौटी हैं।

जहां तक उनके परिवार का सवाल है, उनके बेटे अब करनाल और रोहतक में रहते हैं, और उनमें से एक भाला फेंक रहा है। मौजूदा समय में एसएसबी में एक कांस्टेबल के रूप में कार्यरत, नीतू की नजरें अब पेरिस ओलंपिक 2024 के लिए ट्रायल पर लगी हैं।

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