ऋतु गीतों से गुलजार हुई लोक चौपाल, बसंत गीतों की लोक परंपरा पर भी चर्चा

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लखनऊ। बसन्त ऋतु की लोक परम्पराओं पर आधारित लोक संस्कृति शोध संस्थान की मासिक लोक चौपाल में मंगलवार को खूब धूम मची। आनलाइन हुए कार्यक्रम में वसन्त ऋतु के व्रत, पर्व, त्यौहार, ऋतु अनुकूल खान-पान की चर्चा के साथ ही गीतों की मनभावन प्रस्तुतियां हुईं।

कार्यक्रम का शुभारम्भ चौपाल चौधरी प्रो. कमला श्रीवास्तव ने लोक गायन शैली फाग, चैता, चैती की चर्चा से की। लोक साहित्य अध्येता एवं वरिष्ठ साहित्यकार डा. रामबहादुर मिश्र ने बसन्त ऋतु की लोक परम्पराओं को रस से परिपूर्ण बताते हुए चालीस दिन तक गाने वाले फाग परम्परा की पंक्ति गड़िगै बसन्त कै ढाह बिना होरी खेले न जाबै का उल्लेख किया।

वरिष्ठ लोक गायिका इन्द्रा श्रीवास्तव ने होरी खेलत चारो भइया हो रामा, इन्दु सारस्वत ने कान्हा ने भिगोई मोरी सारी, चित्रा जायसवाल ने आया बसन्त ऋतुराज व पिया संग होरी खेलबै हो रामा, सुषमा प्रकाश ने विरह गीत का से होली खेलूं हो रामा, रीता पाण्डेय ने सखी बरसे झमाझम पानी नथुनिया से बूंद टपके गाया।

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पल्लवी निगम ने छोड़ो नौकरिया घर आओ, डा. विनीता सिंह ने घावत राम बकइयां हो रामा, अपर्णा सिंह ने वृन्दावन श्याम खेलैं होरी, रेखा मिश्रा ने टीका के रसवा ले भागा तथा गंगा तोरी निर्मल धार, संगीता खरे ने आइल बसन्त हमरी दुअरा, डा. भक्ति शुक्ला ने चइत मासे चइती हम गावैं हो रामा गाया।

अरुणा उपाध्याय ने प्रीत किये पछतानी कन्हइया मोरा अंखिया पिरानी, सरिता श्रीवास्तव ने यमुना तट श्याम, डा. सुरभि सिंह ने कोयल कूके, ज्योति किरन रतन ने देखो सखी खिल आई, सुषमा अग्रवाल ने चइत महीनवा महान हो रामा, हरीतिमा पन्त ने रंगइबे हम चुनरी, शकुन्तला श्रीवास्तव ने चले हैं दो राजकुंवर गाया।

सुधा द्विवेदी ने अउर महीनवा में बरसे न बरसे, कल्पना सक्सेना ने टुट गई नाक के नथुनिया हो रामा, पूनम सिंह नेगी ने ऋतु बसन्त आई मनभावन, अंजलि सिंह ने फगुआ के खेलन हारे, सरिता अग्रवाल ने मैं तो नवल बसन्त मनाय रही तथा सुमति मिश्रा ने होरी खेल रहे नन्दलाल जैसे गीत प्रस्तुत किये। लोक संस्कृति शोध संस्थान की सचिव सुधा द्विवेदी ने चौपाल में शामिल लोगों के प्रति आभार जताया।

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