आर्टिकल 370 : तथ्यों को सिनेमा के तड़के के साथ दिखाया, फिल्म से ज्यादा लगी डाक्यूमेंट्री

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साभार : गूगल

सच्ची घटना से प्रेरित आर्टिकल 370 रिलीज हो गई है। कश्मीर में हालात खराब हो रहे थे, सरकार को ध्यान देना था कि वहां खून न गिरे और इस प्रावधान को हटाया जाए।

PM0 की अधिकारी राजेश्वरी स्वामीनाथन (प्रियामणि) के कहने पर जूनी को NIA का एजेंट बनाकर दोबारा कश्मीर भेजा जाता है। जूनी को जिम्मेदारी मिलती है कि वो वहां के राजनेताओं, अलगाववादियों और उपद्रवियों से निपटकर हालात नॉर्मल करे।

यामी ने उरी- द सर्जिकल स्ट्राइक के बाद शानदार काम किया है। उन्होंने NIA एजेंट के रोल में अच्छा-खासा एक्शन किया है। PM0 की सेक्रेटरी बनीं प्रियामणि ने संजीदगी से अपना रोल निभाया है। उन्हें जैसा रोल मिला है, वो उसमें सटीक बैठती हैं।

गृह मंत्री अमित शाह का रोल निभा रहे एक्टर किरण करमाकर फिल्म के सरप्राइज एलिमेंट हैं। उन्होंने अमित शाह के बॉडी लैंग्वेज को क्या खूब पकड़ा है। आर्टिकल 370 हटाते वक्त गृह मंत्री अमित शाह ने संसद में जो भाषण दिया था, किरण ने उसी अंदाज में उसे रिपीट किया है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भूमिका में अरुण गोविल थोड़े हल्के लगे हैं। आर्मी ऑफिसर के रोल में वैभव तत्ववादी ने प्रभावित किया है। आदित्य सुहास जामभले फिल्म के डायरेक्टर हैं। निर्देशन में काफी सारी खामियां हैं।

यह फिल्म डॉक्यूमेंट्री ज्यादा लगती है। कई सीन फेक लगते हैं। संसद भवन देखने में ही नकली लगता है। फिल्म की लेंथ 2 घंटे 40 मिनट है, तथ्यों को जल्दी-जल्दी समेटने की कोशिश हुई। कई-कई जगह डायरेक्टर इंटरेस्ट बनाने में कामयाब हुए हैं।

फिल्म में एक ही गाना है, जो कि बैकग्राउंड में बजता है। इतना प्रभावशाली नहीं है जिसकी चर्चा की जाए। फिल्म देखने के बाद इसका म्यूजिक या बैकग्राउंड स्कोर याद नहीं रहता।

आर्टिकल 370 हटाने के पीछे स्ट्रैटजी क्या थी, तो अपना नॉलेज बढ़ाने के लिए फिल्म को देख सकते हैं। तथ्यों को सिनेमाई अंदाज में पेश किया गया है, जो कि खटक सकती है। इतने बड़े मुद्दे को हल्के अंदाज में दिखा दिया गया है, इसके बावजूद फिल्म वन टाइम वॉच जरूर है।

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