इसलिए जरुरी है बुनियादी शोध से उत्पन्न अवधारणाएं एवं विचार : प्रो शाह

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लखनऊ। संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा वर्ष 2022 को सतत विकास हेतु बुनियादी विज्ञान (बेसिक साइंस) के अंतर्राष्ट्रीय वर्ष (IYBSSD2022) के रूप में चुना गया है। इस उपलक्ष्य में भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी (इन्सा) के लखनऊ चैप्टर ने डॉ. समन हबीब की अध्यक्षता में सीएसआईआर-सीडीआरआई में एक लघु संगोष्ठी का आयोजन किया।

आईएनएसए के लखनऊ चैप्टर के सहयोग से सीएसआईआर-सीडीआरआई में लघु संगोष्ठी

इस अवसर  पर सीडीआरआई के निदेशक डॉ.डी श्रीनिवास रेड्डी ने अतिथियों का स्वागत किया। इस संगोष्ठी में इन्सा के डॉ. सीएम नौटियाल ने वैज्ञानिक सोच और इसे पोषित करने और बढ़ावा देने के महत्व के बारे में बात की। उन्होंने कई उदाहरण देकर कहा कि प्रगति के लिए विज्ञान का प्रभावी संचार आवश्यक है।

उन्होंने IYBSSD2022 के लक्ष्यों पर चर्चा की और बताया कि उन्हें प्राप्त करने के लिए बुनियादी विज्ञान कितना महत्वपूर्ण रहा है।

प्रगति के लिए विज्ञान का प्रभावी संचार आवश्यक : डॉ.डी श्रीनिवास रेड्डी

अपने सम्बोधन में प्रोफेसर चंद्रिमा शाह, अध्यक्ष-इन्सा ने कहा कि बुनियादी शोध से उत्पन्न अवधारणाएं एवं विचार अनुप्रयोगों में तब्दील (अनुवादित) करने हेतु बेहद महत्वपूर्ण हैं। प्रो. शाहा ने कहा कि भौतिक विकास ने हमारे जीवन को आरामदायक बना दिया है और हमारे जीवन स्तर को ऊंचा किया है।

हालाँकि, मानव जाति ने भी पृथ्वी को इतनी बेरहमी से लूटा है कि हम सोचने पर मजबूर हो गए हैं कि क्या हम वास्तव में प्रगति कर चुके हैं।

डॉ पीके सेठ और डॉ मधु दीक्षित की अध्यक्षता में वैज्ञानिक सत्रों में डॉ वंदना प्रसाद, निदेशक, बीरबल साहनी इंस्टीट्यूट ऑफ पेलियोसाइंसेज ने 230 मिलियन से अधिक वर्षों से एंजियोस्पर्म (फूलों के पौधे) के विकास के अन्वेषण के बारे में बताया।

उन्होने दक्षिणी ध्रुव से वर्तमान स्थान तक महाद्वीपीय बदलाव (कॉन्टिनेन्टल शिफ्ट) के परिप्रेक्ष्य में किस प्रकार भारत में अनेक पौधों और जानवरों की प्रजातियां दिलचस्प तौर से प्रकट हो गईं या गायब हो गई, पर भी विस्तृत चर्चा की।

एनबीआरआई के डॉ. पीके सिंह ने कपास के विकास पर अपने काम के बारे में चर्चा की जो सफेद मक्खी (व्हाइट फ्लाई) के संक्रमण के लिए प्रतिरोधी है। उनकी टीम ने एक खाद्य फर्न से एक नए कीटनाशक जीन का क्लोन तैयार किया और इसे कपास के पौधों में व्हाइट फ्लाई के नियंत्रण के लिए प्रस्तुत किया।

डॉ. सब्यसाची सान्याल ने मधुमेह संबन्धित चूहों पर अध्ययन के बारे में बताया कि मादा चूहे कुछ चरणों को छोड़कर समान आयु वर्ग के नर चूहों की तुलना में अधिक तंदुरुस्त (फिट) होते हैं। आईआईटी-कानपुर के प्रो. हर्षवर्धन वानारे ने बताया कि कैसे प्रकाश और इसकी तरंग दैर्ध्य विविधताओं ने पृथ्वी के दृश्य और थर्मल रंगों को बदल दिया।

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आईआईटी-कानपुर के प्रो. केएस वेंकटेश ने विज्ञान के विकास और एक उद्यम के रूप में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की कुछ सीमाओं के बारे में कहा कि इन सीमाओं में से कुछ अंतर्निहित हैं, और इसलिए हमेशा हमारे साथ रहने वाली हैं तथा विज्ञान एवं तकनीक द्वारा संचालित समाज की ‘अंतहीन’ प्रगति की क्षमता को सीमित कर देंगी।

उन्होंने कहा कि सभी की सबसे बुरी समस्या यह है कि एक प्रजाति के रूप में हमारी राजनीतिक परिपक्वता अभी भी बेहद कम है, जो हमें सामाजिक अशांति की एक सतत स्थिति में रहने के लिए मजबूर करती है, जो बड़े पैमाने पर असमान सामाजिक संबंधों से उत्पन्न होती है।

अनुभवी पत्रकार सुश्री कनिका गुप्ता ने संघर्ष क्षेत्रों, विशेष रूप से अफगानिस्तान से अपने अनुभव साझा किए और बताया कि कि किस प्रकार वैज्ञानिक स्वभाव/सोच की कमी समाज की अनेक समस्याओं की जड़ हो सकती है।

व्याख्यानों के बाद लखनऊ के राष्ट्रीय अनुसंधान संस्थानों (सीडीआरआई, एनबीआरआई, सीआईएमएपी, आईआईटीआर और बीएसआईपी) के 12 शोध छात्रों ने स्वास्थ्य, स्वच्छ जल और स्वच्छता, जैव विविधता, नवाचार और जलवायु परिवर्तन में बुनियादी विज्ञान की भूमिका को प्रस्तुत किया।

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