नियमित सहजीवी जीवाणु बचाते है कई जानलेवा बीमारियों से : डॉ. बिपिन पुरी

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लखनऊ। सीएसआईआर-एनबीआरआई में राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिवस समारोह के अवसर पर मुख्य अतिथि केजीएमयू के कुलपति ले. जन. (डॉ.) बिपिन पुरी ने मानव शरीर में पाए जाने वाले सहजीवी सूक्ष्मजीवाणुओं के बारे में चर्चा की।

उन्होंने बताया कि जन्म के समय मानव शिशु का शरीर एक निर्जन द्वीप के सामान होता हैं जिसमे कोई भी सहजीवी जीवाणु नही उपस्थित होता हैं। हालांकि समय के साथ हमारे शरीर की आंत में करीब 10 से100 खरब सहजीवी जीवाणु आ जाते हैं।

सीएसआईआर-एनबीआरआई में मनाया गया राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिवस

इन सहजीवी जीवाणुओं का मुख्य उद्देश्य हमारे शरीर के प्रतिरक्षा तंत्र, पाचन तंत्र आदि का सहयोग करना हैं। इन सहजीवी जीवाणुओं की उपस्थिति एवं प्रकार के मामले में लगभग 80 से 90 फीसदी मानव शरीर एक दूसरे से भिन्न होते हैं। हर व्यक्ति की पाचन शक्ति इन्ही सहजीवी जीवाणुओं से निर्धारित होती हैं।

डॉ. पुरी ने बताया कि मानव शरीर इन सहजीवी जीवाणुओं के लिए एक समुदाय तंत्र की तरह काम करता हैं। इन पर हुए शोध से यह पता चला है कि इन सहजीवी जीवाणुओं का सम्बन्ध मानव शरीर में होने वाली अनेकों बीमारियों जैसे पेट दर्द रोग, मधुमेह, मोटापा, ऑटो इम्यून डिसऑर्डर से देखने को मिला हैं।

उन्होने आगे बताया कि मानव शरीर में इन सहजीवी जीवाणुओं की प्रकार एवं उपस्थिति को नियमित कर शरीर को कई जानलेवा बीमारियों से बचाया जा सकता हैं| आज कल डॉक्टर के बिना परामर्श एंटीबायोटिक एवं अन्य दवाओं का इस्तेमाल हमारे शरीर में इन सहजीवी जीवाणुओं के तंत्र को नष्ट कर देता हैं।

इससे शरीर का प्रतिरक्षा तंत्र और पाचन तंत्र बुरी तरह प्रभावित होता हैं जिससे अनेकों अन्य बीमारियाँ उत्पन्न हो जाती हैं। उन्होने कहा कि 90 फीसदी बीमारियाँ कहीं न कहीं आंत के स्वास्थ्य एवं इनमें पाये जाने वाले सूक्ष्म जीवाणुओं से संबन्धित होती पाई जाती हैं।

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ऐसे में आज विभिन्न वैज्ञानिक एवं औषधीय तरीकों से शरीर में इन सूक्ष्म्जीवाणुओं को पुनः स्थापित कर के इन बीमारियों का इलाज किया जा सकता है जो आने वाले समय में मानव स्वास्थ्य एवं बीमारियों से लड़ने की हमारी क्षमता में अभूतपूर्व बदलाव ला सकता है।

सन्दर्भ सामग्री (सीआरएम) उत्पादन हेतु विकसित तकनीक अश्वी टेक्नोलॉजी को हस्तांतरित 

इस अवसर पर संस्थान द्वारा सन्दर्भ सामग्री (सीआरएम) उत्पादन हेतु विकसित तकनीकी को अश्वी टेक्नोलॉजी, अहमदाबाद को हस्तांतरित किया गया। औषधीय एवं सुगन्धित यौगिको के परिक्षण हेतु सन्दर्भ सामग्री पर कार्य कर रहे वैज्ञानिक डॉ.आलोक लहरी ने बताया कि संस्थान पौधों से प्राप्त होने वाले औषधीय एवं सुगन्धित यौगिकों की जांच के लिए संदर्भ सामग्री विकास में कार्य कर रहा हैं।

इन यौगिकों का उपयोग विभिन्न प्रकार के स्वास्थ्य वर्धक उत्पादों, कॉस्मेटिक्स, पेय पदार्थों में किया जा रहा हैं। इनकी गुणवत्ता जाँच हेतु एक प्रमाणित संदर्भ का होना अतिआवश्यक हैं। ऐसे ही प्रमाणित सन्दर्भ यौगिकों के विकास में संस्थान ने पौधों से प्राप्त होने वाले करीब नौ प्रमाणित सन्दर्भ यौगिकों का विकास किया हैं।

इसतमें से अभी 5 सीआरएम विकास तकनीकी को हस्तांतरित किया गया हैं। इस अवसर पर संस्थान के तकनीकी हस्तांतरण एवं व्यवसाय विकास विभाग के डॉ. विवेक श्रीवास्तव, डॉ. मनीष भोयार एवं अश्वी टेक्नोलॉजी, अहमदाबाद के निदेशक एन के पाण्डेय उपस्थित थे।

पूर्वोत्तर भारत में अनुसंधान एवं विकास कार्य को बढ़ावा देने हेतु समझौता

इसके साथ संस्थान द्वारा यूनिवर्सिटी ऑफ़ साइंस एंड टेक्नोलॉजी, मेघालय के साथ पूर्वोत्तर भारत में अनुसंधान एवं विकास कार्य को बढ़ावा देने हेतु एक समझौते पर भी हस्ताक्षर किये गये।

इससे पूर्व अतिथियों का स्वागत करते हुए प्रो. एसके बारिक ने कहा कि आज प्रौद्योगिकी यानि टेक्नोलॉजी की हर क्षेत्र में आवश्यकता है इसका महत्व केवल विज्ञान में ही नहीं बल्कि एक देश को आगे बढ़ाने के हर पहलु पर है| आज प्रत्येक व्यक्ति किसी ना किसी तरह से प्रौद्योगिकी से जुड़ा है।

इस दिवस को मनाने का यह भी उद्देश्य है कि लोग ज्यादा से ज्यादा प्रौद्योगिकी के बारे में जान सकें, उसके प्रति जागरुक हो सकें. आज प्रौद्योगिकी के कारण ही समस्त विश्व एक-दूसरे से जुड़ पाया हैद्ध कार्यक्रम के अंत में मुख्य वैज्ञानिक डॉ. पीए शिर्के ने धन्यवाद प्रस्ताव दिया।

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