लखनऊ। सीएसआईआर-केन्द्रीय औषधीय एवं सगंध पौधा संस्थान (सीमैप), लखनऊ में सिडबी के सहयोग से तीन दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का शुभारंभ मंगलवार को किया गया।
सिडबी द्वारा सीएसआईआर-सीमैप को लगभग 25 वर्ष पूर्व एक एमओयू के तहत कार्पस फंड औषधीय व सुगंधित पौधों के उत्पादन, प्राथमिक प्रसंस्करण व विपणन विषय पर कौशल सह तकनीकी कार्यक्रम आयोजित करने के लिए उपलब्ध कराया गया था। इसकी सफलता को देखते हुये इस एमओयू को पुनः आगे जारी रखने के लिए सिडबी ने सहमति दी।
भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक (सिडबी) ने सीएसआईआर-सीमैप के साथ बढ़ाया समझौता
इस अवसर पर श्रीकांत दास-उप महाप्रबंधक, सिडबी, लखनऊ ने प्रतिभागियों को सिडबी द्वारा प्रदत्त सेवाओं के बारे में विस्तार से चर्चा की तथा उन्होंने सीमैप के निदेशक डॉ.प्रबोध कुमार त्रिवेदी के साथ एमओयू का आदान-प्रदान किया।
आगामी 26 मई तक चलने वाले इस प्रशिक्षण में देश के 16 राज्यों के 44 जनपदों से 63 प्रतिभागियों ने भाग लिया । इस अवसर पर सीमैप के निदेशक डॉ. प्रबोध कुमार त्रिवेदी ने प्रतिभागियों को संबोधित करते हुये कहा कि औषधीय एवं सगंध पौधों की विश्व स्तरीय मांग को देखते हुए इनकी खेती को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।
औषधीय एवं सगंध पौधों की उन्नत कृषि प्रौद्योगिकियों पर किसानों के लिए प्रशिक्षण शुरू
इसी क्रम में सीएसआईआर-सीमैप, लखनऊ के वैज्ञानिकों के प्रयासों द्वारा किसानों के लिये औषधीय एवं सगंध पौधों की उन्नत प्रजातियाँ विकसित की गयी हैं जिनसे किसानों को अधिक पैदावार व लाभ मिलेगा। उन्होने आगे कहा कि 80 के दशक तक भारत में मेंथाल मिंट का उत्पादन नहीं होता था।
इसके बाद सीएसआईआर-सीमैप के प्रयासों से मेंथा की नई प्रजातियों को विकसित किया गया । और इन प्रजातियों को किसानों तक पहुंचाया गया। इसके फलस्वरूप आज भारत मेंथाल मिंट के उत्पादन व निर्यात में विश्व में प्रथम स्थान पर है, और कुल उत्पादन का लगभग 80 प्रतिशत उत्तर प्रदेश द्वारा किया जाता है।
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सीएसआईआर-सीमैप एवं सहयोगी प्रयोगशालाओं के द्वारा चलाये जा रहे सीएसआईआर एरोमा मिशन के अन्तर्गत किसानों को वृहत रूप से जोड़ा गया है के फलस्वरूप आज भारत नीबूघास व पामारोजा के तेल के उत्पादन में आत्मनिर्भर बन निर्यात करने की ओर अग्रसर है।
उन्होने आगे कहा कि इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में सीमैप के वैज्ञानिक आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण औषधीय एवं सगंध पौधों की खेती पर विस्तार से चर्चा करेंगे तथा साथ ही प्रसंस्करण एवं भंडारण की तकनीकियों पर भी चर्चा करेंगे जिससे किसानों के उत्पादन को राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तर की गुणवत्ता को बनाया जा सके।
इसके साथ उसका अधिक तथा उचित मूल्य किसानों को मिल सकें । इन औषधीय एवं सगंध फसलों में मुख्यतः नीबूघास, पामारोजा, जिरेनियम, तुलसी इत्यादि हैं। वर्तमान में इनके तेलों की मांग विश्व बाज़ार में अधिक है।
प्रशिक्षण के दौरान आज डॉ. संजय कुमार, नोडल प्रशिक्षण कार्यक्रम व वरिष्ठ प्रधान वैज्ञानिक ने संस्थान की गतिविधियों तथा प्रदत्त सेवाओं के बारें में प्रतिभागियों को जानकारी दी ।
आज के तकनीकी सत्र में दीपक कुमार वर्मा ने प्रतिभागियों को प्रक्षेत्र का भ्रमण कराया व पौधों की पहचान कराई। डॉ. संजय कुमार ने रोशाघास व नीबूघास के उत्पादन की उन्नत कृषि तकनीकी प्रतिभागियों से साझा की।
डॉ. राजेश वर्मा ने जिरेनियम तथा खस की वैज्ञानिक खेती के बारें में प्रतिभागियों को जानकारी दी । कार्यक्रम का संचालन डॉ. ऋषिकेश भिसे, वैज्ञानिक द्वारा किया गया तथा डॉ.आरके श्रीवास्तव द्वारा धन्यवाद ज्ञापन किया गया। इस अवसर पर सीएसआईआर-सीमैप के विभिन्न वैज्ञानिक, तकनीकी अधिकारी व शोधार्थी आदि उपस्थित रहे।