अगर इरादे मजबूत हों तो कोई भी मुश्किल रास्ता रोक नहीं सकती। दिल्ली की बीच वॉलीबॉल टीम की कप्तान बबीता ने अपने संघर्ष और सफलता की ऐसी ही कहानी बयां की है।
38वें राष्ट्रीय खेल के तहत शिवपुरी स्थित गंगा तट पर आयोजित बीच वॉली बॉल प्रतियोगिता में भाग लेने पहुंची बबीता ने बताया कि वह पिछले 11 वर्षों से वॉलीबॉल खेल रही हैं। लेकिन इस सफर में आर्थिक तंगी ने कई बार उनके रास्ते में रुकावटें डालीं।
उनके पिता दिल्ली के संगम विहार इलाके में रिक्शा चलाते हैं, जबकि मां गृहिणी हैं। परिवार में माता-पिता के अलावा तीन बहनें और एक भाई हैं। कठिन परिस्थितियों के बावजूद बबीता ने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी बनने का सपना नहीं छोड़ा।
कक्षा छह से शुरू किया सफर
बचपन से ही खेलों में रुचि रखने वाली बबीता ने कक्षा छह से ही प्रतियोगिताओं में भाग लेना शुरू कर दिया था। अपने गुरुजनों और कोच की मदद से उन्होंने वॉली बॉल में खुद को निखारा और आज दिल्ली राज्य की बीच वॉली बॉल टीम की कप्तान के रूप में पहचान बनाई।
उन्होंने कहा, “यदि मन में किसी लक्ष्य को पाने का जज़्बा हो, तो मेहनत के दम पर उसे हासिल किया जा सकता है।” बबीता का अगला लक्ष्य राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में मेडल जीतना और सरकारी नौकरी हासिल करना है। उन्होंने बताया कि राष्ट्रीय खेल में प्रदर्शन करने का यह सुनहरा मौका उनकी मेहनत और धैर्य का ही परिणाम है।
बीच वॉली बॉल का दोगुना मजा
दिल्ली की कप्तान बबीता ने उत्तराखंड के माहौल की सराहना करते हुए कहा कि यहां का खेल के अनुकूल वातावरण प्रतियोगिता के आनंद को बढ़ा देता है। उन्होंने कहा, “उत्तराखंड में ताजी हवा, सुंदर सैंड बीच और सुहावना मौसम खेल के अनुभव को दोगुना कर रहे हैं।”
खिलाड़ियों के लिए उम्दा इंतजाम
दिल्ली टीम की दूसरी खिलाड़ी को हिना गोयल ने राष्ट्रीय खेल के आयोजन की सराहना की। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड सरकार ने खिलाड़ियों के लिए बेहतरीन व्यवस्थाएं की हैं। खिलाड़ियों के लिए उच्च गुणवत्ता वाले होटलों की बुकिंग की गई है, जहां स्वस्थ और पौष्टिक भोजन उपलब्ध कराया जा रहा है।
होटल से खेल मैदान तक पहुंचने के लिए ट्रांसपोर्ट की भी उत्तम व्यवस्था की गई है। साथ ही, खिलाड़ियों की सुरक्षा के भी पुख्ता इंतजाम किए गए हैं।
संघर्ष से सफलता की ओर
बबीता की कहानी उन सभी युवा खिलाड़ियों के लिए प्रेरणा है, जो कठिनाइयों के बावजूद अपने सपनों को पूरा करने का जज़्बा रखते हैं। उनकी मेहनत और समर्पण ने साबित कर दिया कि सपने सिर्फ देखे नहीं जाते, उन्हें हकीकत में बदला भी जाता है। अब उनकी निगाहें राष्ट्रीय खेल में मेडल जीतने और सरकारी नौकरी पाने पर टिकी हैं।
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