देशहित के फैसले में डिजिटल जनमत संग्रह का लिया जाये सहारा 

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लखनऊ। डिजिटल इंडिया का सही फायदा देश को तभी मिलेगा जब इसको इसके सीमित दायरे से निकाल कर जनमत से जोड़ दिया जाए। डिजिटल जनमत संग्रह एक ऐसा टूल हो सकता है, जो देश की प्रगति में जनता को सीधे जोड़ेगी और देशहित में जरूरी हर बड़े फैसले में वह साझीदार होगी।

इससे किसान व अग्निवीर आंदोलन जैसी स्थितियां नहीं पैदा होंगी और विरोध-प्रदर्शनों व आंदोलनों से होने वाले नुकसान से भी देश बच जाएगा।

लखनऊ में स्वंयसेवी संस्था केआईडीएफ (नॉलेज एंड इंफॉर्मेशन डिसीमिनेशन फाउंडेशन) की ओर से आयोजित प्रेसवार्ता में यह विचार बतौर मुख्य अतिथि मौजूद कानपुर और बुंदेलखंड विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति (वाइस चांसलर) डा.जेवीवी  विशमपायन ने रखे।

केआईडीएफ संस्था ने उठायी डिजिटल इंडिया में डिजिटल जनमत संग्रह की मांग 

उन्होंने कहा कि बिहार में मुजफ्फरपुर से बाहर निकलते ही आपको वैशाली का साइनबोर्ड दिखेगा जिसमें लिखा है कि दुनिया का सबसे प्राचीन लोकतंत्र आपका स्वागत करता है।

लोकतंत्र की खूबसूरती यही है कि शासन कौन करेगा यह भले ही मतदान तय करता है लेकिन पिछले कुछ वर्षों से यह देखा गया है कि संवैधानिक रूप से विरोध के कारण विधायी कानूनों को क्रियान्वित नहीं किया जा सका है, जैसे तीन किसान विधेयक सितंबर 2020 में पारित हुए।

इसे तगड़े विरोध के बाद सरकार को वापस लेना पड़ा लेकिन उत्तर प्रदेश चुनाव के बाद सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त समिति की रिपोर्ट जब सार्वजनिक की गई तो निकल कर आया कि 85.7 फीसदी किसान संगठन कृषि कानूनों के समर्थन में थे। पूर्व कुलपति ने आगे कहा कि ताजा मामला केंद्र सरकार द्वारा लाई गई ‘अग्निवीर योजना’ का है।

इसके खिलाफ हिंसक विरोध-प्रदर्शन हुए हैं जिसमें काफी नुकसान भी हुआ है। यहाँ हम योजना के फायदे और नुकसान की चर्चा नहीं कर रहे हैं बल्कि हमारा जोर एक ऐसी प्रक्रिया तैयार करने से है जिसमें एक व्यापक परामर्श आधारित दृष्टिकोण अपनाया जाए, ताकि बड़े पैमाने पर जनता का हित संरक्षित हो सकें।

उन्होंने इसके समाधान पर बात की और कहा कि जनमत संग्रह प्रत्यक्ष लोकतंत्र में लगभग 140 करोड़ की विशाल जनसंख्या वाले देश में एक समय लेने वाली और महंगी प्रक्रिया हो सकती है। लेकिन डिजिटल माध्यमों का सहारा लेकर इसे काफी सस्ता और मुमकिन बनाया जा सकता है।

केआईडीएफ (नॉलेज एंड इंफॉर्मेशन डिसीमिनेशन फाउंडेशन) के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर व सीए मनीष गर्ग ने चर्चा को आगे बढ़ाते हुए कहा कि इस मुद्दे पर सार्वजनिक मंच पर विस्तार से चर्चा की जा सकती है। इसमें टेलीविजन और सोशल नेटवर्किंग प्लेटफॉर्म काफी अहम भूमिका निभा सकते हैं।

सरकार की ओर से बनाए जाने वाले किसी भी कानून को बनाए जाने से पूर्व राजनीतिक दल इस मुद्दे पर स्वयं या अपने माध्यम से बहस कर सकते हैं उनके प्रतिनिधि जो विषय वस्तु के विशेषज्ञ हों। वाद-विवाद के बाद निर्वाचित सदस्यों को 24 घंटे का अवसर दिया जाए जिससे प्रतिनिधि अपने-अपने लोगों से चर्चा करें।

इसके कुछ घंटों की समयावधि देने के बाद मतदान की प्रक्रिया अपनाई जा सकती है। इसमें एक मोबाइल एप्लिकेशन विकसित किया जा सकता है। (पहले से ही ‘सारेगामापा’ जैसे टीवी शो में सार्वजनिक मतदान की व्यवस्था है)। इसके लिए एक एल्गोरिदम विकसित किया जा सकता है, जिसमें जनहित को उचित महत्व दिया जाए।

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मनीष गर्ग ने कहा कि हमारे देश में लगभग 288948 निर्वाचित प्रतिनिधि हैं। स्थानीय सरकार में (283573), राज्य सरकार में (4585) और केंद्र सरकार में (790) प्रतिनिधि शामिल हैं। इसके अतिरिक्त देश में तकरीबन 90 करोड़ पंजीकृत मतदाता भी अपनी भूमिका निभा सकते हैं।

ग्रामीण मतदाताओं को प्रस्तावित कानूनों के बारे में बताने के लिए स्थानीय प्रतिनिधियों से मदद ली जा सकती है। इसके बाद उनकी राय को सरकार से अवगत कराया जा सकता है। इस पारदर्शी व्यवस्था से जनता में सरकार और कानून के प्रति भरोसा बढ़ेगा।

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