लखनऊ। विश्व हेपेटाइटिस दिवस के अवसर पर हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट ने ऑनलाइन जागरूकता उद्बोधन कार्यक्रम का आयोजन किया। कार्यक्रम केक मुख्य वक्ता डॉक्टर गिरीश गुप्ता (M.D. (Hom.) Ph.D., मुख्य चिकित्सक, गौरांग क्लीनिक एंड सेंटर फॉर होम्योपैथिक रिसर्च) ने हेपेटाइटिस के बारे में लोगों को अवगत कराया।
इसका प्रसारण ट्रस्ट के फेसबुक पेज पर पर भी किया गया। डॉ गिरीश गुप्ता ने अपने संबोधन में बताया कि हेपेटाइटिस का मतलब है लीवर में सूजन या लीवर में इंफेक्शन। इनमें से मुख्य होता है वायरल इन्फेक्शन। हेपेटाइटिस में वायरस कई तरीके के होते हैं जैसे हेपेटाइटिस ए, हेपेटाइटिस बी, हेपेटाइटिस सी, हेपेटाइटिस डी, हेपेटाइटिस ई।
वैसे और भी कई तरह के वायरस होते हैं परंतु ये पाच वायरस प्रमुख हैं। इनमें से हेपेटाइटिस ए और ई ज्यादातर खाने से या पानी के माध्यम से हमारे शरीर में प्रवेश कर जाता है जिसके कारण लीवर में सूजन आ जाती है और अधिकतर इसमें बाद में पीलिया हो जाता है। हेपेटाइटिस ए और ई का उपचार आसान है।
अगर मरीजों को उचित सलाह दी जाए, उनको आराम दिया जाए, खाने में कार्बोहाइड्रेट की मात्रा बढ़ा दी जाए और अगर बुखार या कोई और लक्षण है तो उसका इलाज किया जाए तो ये बहुत जल्दी दो से चार हफ्ते के अंदर ठीक हो जाता है। जैसा कि सबको पता है कि पीलिया में शरीर पीला हो जाता है, आंखें पीली हो जाती हैं, पेशाब पीली होने लगती है।
इसका मुख्य कारण है कि लीवर में एंजाइम बनते हैं जिनमें मुख्य होता है – बिलीरुबिन जोकि पीले रंग का होता है और पीलिया में ये एंजाइम लीवर से आतो में न जाकर खून में जाने लगता है इसलिए पीलिया के मुख्य लक्षण जैसे भूख न लगना, जी मिचलाना, उल्टी होना, बुखार, थकान व कमजोरी आना मरीज में दिखाई देने लगते हैं।
हेपेटाइटिस बी और सी ये बहुत ही गंभीर प्रकार के वायरल इन्फेक्शन होते हैं। ये खाने या पानी के माध्यम से नहीं आते
बल्कि सीधा खून में प्रवेश करते हैं। ज्यादातर देखा गया है कि हेपेटाइटिस बी और सी द्वारा ग्रसित रोगियों को लगाई गई सिरिंज या सुई यदि किसी स्वस्थ व्यक्ति के लगा दी जाती है तो हेपेटाइटिस बी या सी हो जाता है।
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इसमें ध्यान देने योग्य यह है कि जब भी हम रक्तदान करें या इंजेक्शन लगवाएं उसमें हमेशा नई या स्ट्रैनलाइज़्ड सुई का प्रयोग करना चाहिए। अगर कोई व्यक्ति हेपेटाइटिस बी या सी से संक्रमित हो तो उसे आराम करना चाहिए, अपने आपको आइसोलेट करना चाहिए व अपने इस्तेमाल में लाई चीजों से दूसरे लोगों को दूर रखना चाहिए।
यहां बताना चाहूंगा कि हेपिटाइटिस ए, बी, सी, डी और ई का इलाज एलोपैथी और होम्योपैथी दोनों में संभव है। जहां तक होम्योपैथी पद्धति का सवाल है तो मैंने अपने 40 साल के चिकित्सकीय अनुभव में हजारों लोगों को हेपेटाइटिस जैसी गंभीर बीमारी से आरोग्य किया है।
हेपेटाइटिस के उपचार के ऊपर मेरा पेपर भी “एडवांसमेंट इन होम्योपैथिक रिसर्च जैर्नल” में प्रकाशित हो चुका है जिसमें मैंने हेपेटाइटिस बी के मरीजों के केसेज में होम्योपैथी पद्धति कहां तक कारगर है इसका साक्ष्य आधारित लेख लिखा है। मैंने हेपेटाइटिस सी पर भी काम किया है “क्रोनिक हेपेटाइटिस सी के रोगियों में होम्योपैथिक दवाओं की भूमिका”।
इन दोनों लेखो में मेरा साक्ष्य आधारित अध्ययन से यह प्रमाणित होता है कि होम्योपैथी चिकित्सा पद्धति हेपेटाइटिस बी और सी को दूर करने में कारगर है।्र
इसलिए हेपेटाइटिस बी और सी संक्रमित होने पर पैनिक नहीं करना चाहिए बल्कि कुशल चिकित्सकों (होम्योपैथिक और एलोपैथिक) से परामर्श लेकर बीमारी का इलाज करना चाहिए।