खो-खो से पीएचडी तक: वी. नवीन कुमार की प्रेरक यात्रा

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दिल्ली/हैदराबाद : तेलंगाना के खो-खो खिलाड़ी वी. नवीन कुमार की यात्रा इस बात की प्रेरणादायक मिसाल है कि कैसे देसी खेल न सिर्फ मैदान में, बल्कि जीवन के हर क्षेत्र में बदलाव ला सकते हैं।

साधारण परिवार से आने वाले कुमार के माता-पिता बीड़ी मज़दूर थे, लेकिन उन्होंने कठिनाइयों को पीछे छोड़ते हुए सरकारी नौकरी हासिल की, भारत का अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिनिधित्व किया, और अब हाल ही में फिज़िकल एजुकेशन में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की है।

34 वर्षीय कुमार ने खो-खो से कक्षा 7 में परिचय प्राप्त किया और आर्थिक तंगी के बावजूद खेलना जारी रखा। उन्होंने कहा, “मेरे लिए खो-खो खेलते रहना आसान नहीं था।

कुमार को उस्मानिया विश्वविद्यालय से मिली फिज़िकल एजुकेशन में डॉक्टरेट की उपाधि 

कई बार हमारे परिवार के लिए जरूरी ज़रूरतें पूरी करना भी मुश्किल हो जाता था, लेकिन मैंने हार नहीं मानी। खो-खो की वजह से ही मैं आज अपने जीवन की दिशा खुद तय कर सका हूं।”

वे आगे कहते हैं, “अब मैं स्कूल के बच्चों को खो-खो सिखाता हूं, और 2025 के वर्ल्ड कप के बाद युवाओं में इस खेल को लेकर बहुत रुचि बढ़ी है।”

कुमार का शोध कार्य “तेलंगाना राज्य के खो-खो खिलाड़ियों में अंतराल प्रशिक्षण (इंटरवल ट्रेनिंग) के शारीरिक फिटनेस और शारीरिक परिवर्तनीयताओं पर प्रभाव” विषय पर आधारित है, जो इस बात पर ज़ोर देता है कि पारंपरिक खेलों में भी आधुनिक खेल विज्ञान का सफलतापूर्वक प्रयोग किया जा सकता है।

कुमार मानते हैं कि इस तरह का एकीकरण न केवल खिलाड़ियों के लिए, बल्कि मनोविज्ञान, शरीर क्रिया विज्ञान (फिजियोलॉजी) और खेल चिकित्सा (स्पोर्ट्स मेडिसिन) जैसे क्षेत्रों के लिए भी फायदेमंद हो सकता है। उन्होंने कहा, “देशी खेलों का अध्ययन खेल विज्ञान के क्षेत्र में नए दृष्टिकोण ला सकता है, जो परिवर्तनकारी सिद्ध हो सकते हैं।”

खो-खो फेडरेशन ऑफ इंडिया (केकेएफआई) के अध्यक्ष सुधांशु मित्तल ने कुमार को बधाई देते हुए कहा, “खो-खो खिलाड़ियों की कहानियाँ हिम्मत और दृढ़ संकल्प की मिसाल होती हैं। वे असली योद्धा होते हैं। आज खो-खो में खेल विज्ञान का समावेश हो चुका है और यह खेल अब किसी भी आधुनिक प्रतिस्पर्धी खेल के बराबर है।

यह सुनकर बहुत खुशी होती है कि खो-खो अब शोध और डॉक्टरेट अध्ययन का विषय बन चुका है। यह हमारे खिलाड़ियों के लिए प्रेरणा है — कि वे खेल में ही नहीं, बल्कि पढ़ाई में भी उत्कृष्टता प्राप्त कर सकते हैं।”

खो-खो फेडरेशन ऑफ इंडिया के संगठन एवं प्रशासन समिति के अध्यक्ष डॉ. एम.एस. त्यागी ने कहा, “ऐसे और भी अध्ययन किए जाने चाहिए। ये न केवल खेल और खिलाड़ियों को लाभ पहुंचाएंगे, बल्कि आधुनिक खेल विज्ञान को भी नए दृष्टिकोण, आंकड़े और निष्कर्ष प्रदान करेंगे।”

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2012 से 2017 के बीच वी. नवीन कुमार ने अपने राज्य का छह सीनियर नेशनल चैंपियनशिप में प्रतिनिधित्व किया और ऑल इंडिया मेन्स इंटर यूनिवर्सिटी खो-खो चैंपियनशिप में हिस्सा लिया। उनके करियर की सबसे बड़ी उपलब्धि जनवरी 2017 में नवी मुंबई में आयोजित भारत बनाम इंग्लैंड खो-खो टेस्ट सीरीज़ में गोल्ड मेडल जीतना रहा।

उनकी खेल प्रतिभा के बल पर उन्हें खेल कोटे से भारतीय सेना में स्थान मिला, और बाद में वे तेलंगाना के एक सरकारी स्कूल में फिजिकल डायरेक्टर के पद पर नियुक्त हुए।

कुमार की कहानी इस बात का सशक्त प्रमाण है कि खो-खो जैसे देशी खेल न केवल अंतरराष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी, बल्कि विद्वान, मार्गदर्शक और समाज के नेता भी तैयार कर सकते हैं।

जैसे-जैसे यह खेल राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लोकप्रिय हो रहा है, कुमार की यात्रा हमें यह याद दिलाती है कि सही समर्थन और दृढ़ निश्चय के साथ खो-खो जीवन के हर क्षेत्र में सफलता का माध्यम बन सकता है।

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