लखनऊ। पितृपक्ष में पुरखों के सिखाये गीतों गाकर उनका स्मरण किया गया। लोक संस्कृति शोध संस्थान द्वारा आयोजित लोक चौपाल में इस बार माता पिता और पुरखों की थाती विषय पर पर चर्चा हुई।
शुक्रवार को इंजीनियरिंग कालेज चौराहा स्थित रिध्या वेंचर परिसर में हुई लोक चौपाल में चौधरी के रूप में संगीत विदुषी प्रोफेसर कमला श्रीवास्तव ने लोगों का मार्गदर्शन किया। वरिष्ठ लोक गायिका इन्दु सारस्वत ने अपनी नानी के सिखाये गीतों की प्रस्तुति के साथ अपने विचार रखे।
लोक संस्कृति शोध संस्थान का आयोजन
कार्यक्रम का शुभारम्भ संगीता खरे ने देवी गीत शीतला माई की जय जय बोलो से की। संगीत विदुषी प्रो. कमला श्रीवास्तव ने लोक गीतों की बारीकियां समझायीं। अरुणा उपाध्याय ने देवी मैया झूलना झूल रहीं, रीता पांडेय ने माने न बतिया हमार हो, सुषमा प्रकाश ने घिर आई बदरिया गाया।
अंशुमान मौर्य ने बारहमासा नीक ना लगे अंगनइया बलम छोड़ गइले बिदेसवा, सौरभ कमल स्नेही ने चारबाग वाली रेवड़ी ले आना बलम जब लखनऊ से आना, कंचन त्रिपाठी ने कारी बदरिया बरसन लागी, मीनू पाण्डेय झूलने में झूले मइया, इन्दु सारस्वत ने हमे तो गोरी तोहरे मिलन की याद आवे सुनाया।
पुरखों के सिखाये गीतों से सजी लोक चौपाल
ज्योति किरन रतन ने निर्गुण गाया तथा गीतों पर नृत्य की मनमोहक प्रस्तुति दी वहीं दिलीप श्रीवास्तव ने भी लोकगीत सुनाया। नीलम वर्मा ने ढोलक पर संगत की। आशीष गुप्त ने अतिथियों का स्वागत किया। कार्यक्रम में राजनारायण वर्मा, शिवेन्द्र पटेल, शम्भुशरण वर्मा, गगन यादव, माधुरी आदि की प्रमुख उपस्थिति रही।
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लोक संस्कृति शोध संस्थान की सचिव श्रीमती सुधा द्विवेदी ने बताया कि 19 से 25 सितम्बर तक प्रो. कमला श्रीवास्तव के निर्देशन में मां दुर्गा के नौ स्वरुपों पर केन्द्रित गीतों की आनलाइन कार्यशाला की जा रही है जिसकी प्रस्तुति एक अक्टूबर को की जायेगी। इच्छुक प्रतिभागी 6387779125 पर सम्पर्क कर सकते हैं।