जनजातीय भागीदारी उत्सव में दिखी जनजाती संस्कृति की उन्नत परंपरा

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लखनऊ। “जनजाति भागीदारी उत्सव” की चौथी शाम शनिवार को आदिवासी संस्कृति की अनुपम छटा देखने को मिली। इसके साथ ही ‘जनजाति शिल्प पर विमर्श’ सत्र में बताया गया कि आज भी आदिवासी, रासायनिक खादों से दूर हैं।

21 नवम्बर तक गोमती नगर स्थित उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी परिसर में आयोजित इस समारोह में शनिवार के मुख्य अतिथि उत्तर प्रदेश सरकार में मुख्य सचिव दुर्गा शंकर मिश्र रहे।

इसके साथ ही विशिष्ट अतिथियों में संस्कृति एवं पर्यटन विभाग के प्रमुख सचिव मुकेश मेश्राम और भातखंडे संस्कृति विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो.मांडवी सिंह उपस्थित रहीं।

चौथी संध्या के मुख्य अतिथि उत्तर प्रदेश सरकार के मुख्य सचिव दुर्गा शंकर मिश्र ने कहा कि जिस तरह से जनजातियों ने प्रकृति के अनुरूप अपने को ढाला है वह अनुपम है। मुख्य सचिव दुर्गा शंकर मिश्र ने कहा कि इस उत्सव को देख कर यह आसानी से समझा जा सकता है कि किस तरह जनजातियों ने प्रकृति के अनुरूप अपने को ढाला है।

यह अपने में अनुपम है। उनके वाद्य यंत्र से लेकर उनकी कलाएं तक प्रकृति से सामंजस्य स्थापित करती हैं। संस्कृति एवं पर्यटन विभाग के प्रमुख सचिव मुकेश मेश्राम और भातखंडे संस्कृति विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो.मांडवी सिंह विशिष्ट अतिथि रहीं।

उन्होंने बताया कि जनजाति लोकनायक बिरसा मुंडा की 148वीं जयंती के अवसर पर केन्द्रीय स्तर पर विकसित भारत यात्रा भी शुरू की गई है। इस यात्रा के माध्यम से देश भर में संचालित विकास योजनाओं को शहरों से लेकर गांवों तक पहुंचाया जा रहा है।

समरीन के संचालन में संवरी शनिवारीय शाम को यादगार बनाते हुए उत्तर प्रदेश का शैला नृत्य, गौड़ी नृत्य और सखिया नाच देखने को मिला।

गुजरात के डांडिया की तरह ही उत्तर प्रदेश में भी अपने खास अंदाज में पुरुष हाथों में डंडे लेकर गोले में नृत्य किया जबकि थारू सखिया नाच में महिलाओं ने हाथों में झालर से सजे मंजीरे लेकर नृत्य किया वहीं पुरुष कलाकारों ने पारंपरिक ढोल जिसे मांदल कहते हैं का वादन किया।

‘जनजाति शिल्प पर विमर्श’ सत्र में बताया गया कि आज भी आदिवासी रासायनिक खादों से दूर 

उत्तराखंड का ताँदी नृत्य और हारूल नृत्य भी देखते ही बना। तांदी नृत्य में लोग एक दूसरे का हाथ पकड़कर घेरे में नृत्य करते दिखे वहीं हारूल नृत्य में संतुलन और प्रतिभा का बेहतरीन संगम प्रस्तुत किया गया। बात झारखण्ड के पाइका नृत्य की करें तो पाइका में पुरुष कलाकारों ने घुंघरु पहनकर तलवार और ढाल के साथ प्रभावी नृत्य किया।

छत्तीसगढ़ के कर्मा नृत्य के साथ ही गैड़ी नृत्य बांस पर खड़े होकर किया गया। मध्य प्रदेश का पारंपरिक गुदुम बाजा नृत्य भी दर्शकों को आकर्षित करने में सफल रहा। इसमें नर्तक कमर के सामने गुदुम बाजा बांधकर उसे बजाते हुए जोशीले अंदाज में नाचे।

कौड़ियों से सजी उनकी वेशभूषा और वाद्य अन्य आकर्षण बने। सुदूर सिक्किम का सिंघीछम-याकछम नृत्य में नर्तकों ने शेर की पोशाक पहन कर नृत्य किया। कालबेलिया और सहरिया स्वांग नृत्य ने भी इस शाम का आकर्षण बढ़ाया। इसके साथ ही वहां 18 से 21 तक बीन वादन, जादू और कठपुतली शो का भी आयोजन किया जा रहा है।

उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी गोमती नगर लखनऊ में चल रहे जनजातीय भागीदारी उत्सव के तहत आयोजित ‘जनजातीय शिल्प पर विमर्श’ सत्र की अध्यक्षता करते हुए लोक एवं जनजाति संस्कृति संस्थान के निदेशक अतुल द्विवेदी ने बताया कि जनजातीय क्रॉफ्ट को प्रचारित करने का एक सशक्त माध्यम भेंट हो सकता है।

इस दिशा में वह लगातार प्रयास भी कर रहे हैं। इस उत्सव में वह अपने अतिथियों का स्वागत मूंज से बनी गणेश जी की मूर्ति, स्मृति चिन्ह के रूप में भेंट कर रहे हैं। संगोष्ठी का संचालन करते हुए जनजाति विकास विभाग की उप निदेशक डॉ.प्रियंका वर्मा, ने बताया कि जनजातीय क्रॉफ्ट को विश्वपटल पर पहुंचाने के लिए ई-कॉमर्स की तैयारी की जा रही है।

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सोनभद्र से आई कमला देवी ने बताया कि वह वनों उत्पाद का काम कर रही हैं वो भी बिना रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग किए। जनजातीय शोध एवं विकास संस्थान के सचिव बृजभान मरावी ने कहा कि शिल्पकारों के लिए प्रशिक्षण की व्यवस्था होनी चाहिए।

वाराणसी के वैद्य हीरामन ने आयुर्वेद के संरक्षण और प्राकृतिक औषधियों की ओर लौटने का संदेश दिया। इस अवसर पर टीआरआई के नोडल अधिकारी डॉ.देवेंद्र सिंह, जिला समाज कल्याण अधिकारी शिवम सागर, ट्रायफेड लखनऊ के प्रभारी राम करण, सहित अन्य उपस्थित रहे। इस क्रम में रविवार की दोपहर जनजाति स्वास्थ्य पर परिचर्चा का भी आयोजन किया जाएगा जबकि शाम को सांस्कृतिक संध्या होगी।

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