लखनऊ : अपनी रिलीज के साथ फिल्म आदिपुरुष विवादों में है. फिल्म के आपत्तिजनक डायलॉग के मामले से जुड़ी याचिका पर इलाहाबाद हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान बड़ी टिप्पणी करते हुए बोला कि हर बार हिंदुओं की ही सहनशक्ति की परीक्षा क्यों ली जाती है? भगवान का शुक्र है कि उन्होंने (हिंदुओं ने) किसी कानून को नहीं तोड़ा है.
कोर्ट ने आगे बोला कि हमने खबरें पढ़ी हैं कि कुछ लोगों ने सिनेमा हॉल में जहां यह फिल्म प्रदर्शित हो रही थी, वहां जाकर हॉल को बंद करने के लिए मजबूर किया. वे इसके अलावा भी बहुत कुछ कर सकते थे. कोर्ट ने बोला कि ये याचिका इसी को लेकर है कि जिस तरह से यह फिल्म बनाई गई है.
धार्मिक ग्रंथ ऐसे हैं, जो लोगों के लिए पूज्नीय हैं. बहुत सारे लोग घरों से निकलने से पहले रामचरित मानस को पढ़ते हैं. ऐसे में पूज्यनीय धार्मिक पात्रों को आपत्तिजनक तरीके से पेश करना गलत है. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भगवान राम और भगवान हनुमान सहित धार्मिक पात्रों को आपत्तिजनक तरीके से पेश करने पर आदिपुरुष फिल्म के निर्माताओं की जमकर आलोचना की.
कोर्ट ने ये भी बोला कि जो सज्जन हैं उन्हें हमेशा दबाना सही है क्या? यह तो अच्छा है कि यह एक ऐसे धर्म को लेकर है, जिसके मानने वालों ने फिल्म को लेकर पब्लिक ऑर्डर से जुड़ी प्राब्लम क्रिएट नहीं की. इसके लिए हमें उनका बहुत आभारी होना चाहिए.
इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने याचिकाकर्ता प्रिंस लेनिन और रंजना अग्निहोत्री की याचिका पर सुनवाई करते हुए बोला कि क्या सेंसर बोर्ड ने अपनी जिम्मेदारी सही से निभाई है?
फिल्म निर्माता भगवान हनुमान और मां सीता को ऐसा दिखाकर समाज में क्या संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं. साथ ही सॉलिसटर जनरल से जवाब मांगते हुए बेंच ने बोला कि यह मामला गंभीर है. क्या आप सेंसर बोर्ड से यह पूछ सकते हैं कि यह कैसे किया गया? क्योंकि राज्य सरकार इस मामले पर कुछ नहीं कर सकती है.