लखनऊ। सीएसआईआर-केंद्रीय औषधि अनुसंधान संस्थान, लखनऊ में 8वीं “ड्रग डिस्कवरी रिसर्च में वर्तमान रुझानों पर अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी” के तीसरे दिन मुख्य रूप से औषधीय अनुसंधान हेतु जीपीसीआर जीपीसीआर सिग्नलिंग एवं सिंथेटिक बायलोजी एवं मेडिसिनल केमिस्ट्री पर चर्चा हुई।
इस दौरान सीएसआईआर-सीडीआरआई, लखनऊ के डॉ संजय बत्रा, ने दर्द के इलाज के बीटा-कार्बोलिन डेरिवेटिव के संभावित उपयोग पर अपने शोध को साझा किया। प्राकृतिक बीटा (β) – कार्बोलिन मुख्य रूप से मस्तिष्क के कार्यों को प्रभावित करते हैं, लेकिन साथ ही एंटीऑक्सिडेंट के तौर पर भी कार्य कर सकते हैं।
सीटीडीडीआर-2022 (#CTDDR2022): औषधि अनुसंधान का आठवां महा संगम
सिंथेटिक रूप से डिज़ाइन किए गए बीटा कार्बोलिन डेरिवेटिव को हालिया शोध के मुताबिक न्यूरोप्रोटेक्टिव, संज्ञानात्मकत बढ़ाने और एंटी-कैंसर गुण युक्त पाया गया है। डॉ बत्रा ने अपने एनाल्जेसिक प्रभावों के साथ दर्द के इलाज के लिए इन डेरिवेटिव की संभावित उपयोगिता को स्थापित करने के लिए अपने हालिया शोध को साझा किया।
वर्तमान में अनुमोदित 50 प्रतिशत से अधिक दवाओं का टार्गेट जीपीसीआर्स: डॉ ब्रायन रोथ
डॉ ब्रायन रोथ, निदेशक, एनआईएमएच साइकोएक्टिव ड्रग स्क्रीनिंग प्रोग्राम यूएसए ने संरचना-निर्देशित दवा की खोज को गति देने के लिए जीपीसीआर के महत्व के बारे में दिलचस्प जानकारी दी। जी प्रोटीन युग्मित रिसेप्टर्स (जीपीसीआर) व्यापक रूप से मानव शरीर में पाये जाते हैं और विभिन्न प्रकार के बाहरी उद्दीपनों (स्टिमुलाइ) के लिए सेलुलर प्रतिक्रियाओं को ट्रिगर करते हैं।
डॉ ब्रायन रोथ ने एलएसडी जैसी साइकेडेलिक या हेलुसीनोजेनिक दवाओं के बारे में चर्चा की। उनके शोध से यह समझने में मदद मिलती है कि ये दवाएं चिंता के खिलाफ और उनके दुष्प्रभावों के बारे में कैसे काम करती हैं।
सिज़ोफ्रेनिया से स्पष्ट रूप से सोचने, महसूस करने और व्यवहार की क्षमता पर असर : डॉ सेलिन
ड्रग डिस्कवरी बायोलॉजी, मोनाश विश्वविद्यालय, ऑस्ट्रेलिया की डॉ सेलिन वैलेंट ने सिज़ोफ्रेनिया के उपचार के लिए तृतीय चरण के नैदानिक परीक्षणों में प्रवेश कर चुकी उनकी एक दवा जेनोमेलिन के बारे में जानकारी दी।
सिज़ोफ्रेनिया एक गंभीर मानसिक विकार है जो किसी व्यक्ति की स्पष्ट रूप से सोचने, महसूस करने और व्यवहार करने की क्षमता को प्रभावित करता है। उन्होने आगे बताया की यदि उनका यह क्लीनिकल परीक्षण यदि सफल होता है तो जेनोमेलिन, विगत लगभग 50 वर्षों में पहली नवीन एफडीए-अनुमोदित एंटीसाइकोटिक दवा होगी।
जीपीसीआर और एसीआर की इस तरह है इलाज में महत्वपूर्ण भूमिका: प्रो अरुण शुक्ला
जीपीसीआर और एसीआर के सक्रियण, सिग्नलिंग और विनियमन की मानव रोगों के चिकित्सीय निहितार्थों में महत्वपूर्ण भूमिका है। आईआईटी, कानपुर के प्रोफेसर अरुण शुक्ला ने नॉन-केनोनिकल सात ट्रांसमेम्ब्रेन रिसेप्टर्स की क्रियाविधि पर प्रकाश डाला।
अपने विस्तृत व्याख्यान के माध्यम से उन्होने इन जीपीसीआर के सक्रियण और सिग्नलिंग के संरचनात्मक आधार तथा अनेक मानव रोगों के निदान में उनकी उपयोगिता के बारे में चर्चा की। ये ट्रांसमेम्ब्रेन रिसेप्टर्स कंजेस्टिव हार्ट फेलियर, उच्च रक्तचाप, अस्थमा, एलर्जी, सिज़ोफ्रेनिया, पार्किंसंस रोग और कैंसर में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
कैथेप्सिन एस इनहिबिटर्स एएए नामक रोग के उपचार में उपयोगी: डॉ प्रभाकर
बाद में ड्रग डिस्कवरी के लिए सिंथेटिक बायलोजी एवं मेडिसिनल केमिस्ट्री पर केन्द्रित सत्र में, मिंगहुई फार्मास्युटिकल (शंघाई) लिमिटेड, अमेरिका के डॉ प्रभाकर के जाधव ने “एब्डोमिनल एओर्टा एन्यूरिज्म (एएए)’ के उपचार के लिए कैथेप्सिन एस इनहिबिटर एलवाई 3000328 की खोज विषय पर एक व्याख्यान दिया।
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एब्डोमिनल एओर्टा एन्यूरिज्म बीमारी, पेट की एक मुख्य धमनी (एओर्टा) जो मुख्य रक्त वाहिका है एवं शरीर को रक्त पहुंचाती है, के आकार में वृद्धि होने के कारण होती है। ये बीमारी प्राणघातक भी हो जाती है यदि यह मुख्य धमनी (एओर्टा) फट जाती है। यह रोग अधिक उम्र के पुरुषों और धूम्रपान करने वालों में आम है तथा अक्सर लक्षणों के बिना, धीरे-धीरे बढ़ता है।
पीठ, पेट या वक्ष में दर्द अक्सर एओर्टा के अत्यधिक बढ़ने या फटने का संकेत हो सकता है। डॉ प्रभाकर ने अपने प्रस्तुतीकरण में दिखाया कि कैसे कैथेप्सिन एस इनहिबिटर एब्डोमिनल एओर्टा एन्यूरिज्म में सुधार के लिए तथा एओर्टा के साइज को कम करने में कार्य करते हैं। उनकी टीम ने एक अत्यधिक प्रभावी और चयनात्मक कैथेप्सिन एस इंहिबिटर विकसित किया है अभी क्लीनिकल ट्रायल में है।
समापन औषधि अनुसंधान में चुनौतियां और अवसर विषय पर ब्रेन स्टॉर्मिंग
डॉ. राम विश्वकर्मा, सीएसआईआर, प्रख्यात वैज्ञानिक, की अध्यक्षता में पेनल डिस्कशन किया गया जिसमे मुख्य पेनलिस्ट आईआईएससी, बेंगलुरु से प्रो. टी.के. चक्रवर्ती, ऑरिजीन डिस्कवरी टेक्नोलॉजीज, बेंगलुरु से डॉ. मुरली रामचंद्र, जेएनसीएएसआर, बेंगलुरु से प्रो. तपस के. कुंडू, स्पार्क, बड़ौदा से टी. राजमन्नार, एवं सीएसआईआर-सीडीआरआई, लखनऊ डॉ. डी.एस. रेड्डी थे।
भारत दुनिया की फार्मेसी बना लेकिन औषधि अनुसंधान और विकास पर काफी काम की दरकार
पेनल डिस्कशन में मुख्य रूप से एक के बात उभर कर आई कि, भारत दुनिया की फार्मेसी तो बन गया है लेकिन औषधि अनुसंधान और विकास की स्थिति अभी भी विकास के चरण में ही है। इस क्षेत्र में भी शीर्ष पर पहुँचने के लिए न केवल राष्ट्रवार बल्कि विश्व स्तर पर उद्योग और अकेदडेमिया के बीच सहयोग में सुधार की तत्काल आवश्यकता है।
चेयरमेन, डॉ. राम ने विश्व स्तर पर इंडस्ट्री-रिसरचर्स-अकेदडेमिशियन के साथ समन्वयन एवं सहयोग हेतु सीमाओं से परे मिल कर कार्य करने कि आवश्यकता पर जोर दिया।
सत्र के अंत में समापन समारोह का आयोजन किया गया और युवा नवोदित वैज्ञानिकों को सर्वश्रेष्ठ पोस्टर पुरस्कार और सर्वश्रेष्ठ फ्लैश टॉक पुरस्कार से सम्मानित किया गया। संगोष्ठी का समापन डॉ. पी.एन. यादव और डॉ. दीपांकर कोले, आयोजन सचिव और आयोजन सह-सचिव के धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ।