आने वाली नस्लों को बचाने के लिए जैव ईंधन अपनाना होगा : डॉक्टर सुधीर मल्होत्रा

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लखनऊ। हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट ने “विश्व जैव ईंधन दिवस- 2022” के अवसर पर ऑनलाइन उद्बोधन विषयक: “जैव ईंधन :संभावनाएं एवं चुनौतियां” का आयोजन किया गया। इस अवसर पर डॉ.सुधीर मेहरोत्रा (प्रोफेसर, जीव रसायन (बायोकेमिस्ट्री) विभाग, लखनऊ विश्वविद्यालय) ने जैव ईंधन से होने वाले लाभों से अवगत कराया।

उन्होंने कहा कि  सभी लोग जानते हैं कि हम सभी लोगों के जीवन में वाहनों जैसे कार, स्कूटर, मोटरसाइकिल का बहुत महत्व है।

सभी पेट्रोल और डीजल से चलते हैं जो नॉन रिन्यूएबल सोर्सेस आफ एनर्जी है क्योंकि लाखों करोड़ों साल पहले जो पेड़ पौधे थे, जीव जंतु थे जब उनकी मृत्यु हो गई और वह चट्टानों के संपर्क में आए तो अत्यधिक हाई तापमान में उनका फर्टिलाइजेशन हुआ और वह लिक्विड फ्यूल्स में कन्वर्ट हो गए जो आज हमें पेट्रोल और डीजल के रूप में मिलते हैं।

हेल्प यू ट्रस्ट ने “विश्व जैव ईधन दिवस -2022” पर आयोजित की ऑनलाइन संगोष्ठी

इसको हम पेट्रोल पंप पर अपनी गाड़ी में भरते हैं जिससे उसमे हाइड्रोकार्बन के कन्वर्जन से एनर्जी मिलती है जिससे गाड़ी चलती है | इनको बनने में लाखों करोड़ों वर्ष लगे हैं आज हम जिधर भी अपनी नजर दौड़ाते हैं तो हमें हर तरफ कार और स्कूटर ही चलते हुए सड़कों पर दिखाई देते हैं। इनको चलाने वाली ऊर्जा पेट्रोल और डीजल से प्राप्त होती है जिसे बनने में लाखों-करोड़ों साल लगे हैं।

उन्होंने कहा कि जिस तरह पूरी दुनिया में गाड़ियों की संख्या में वृद्धि हो रही है, वह दिन दूर नहीं कि आने वाले 100 -200 वर्षों में जब हम और आप जीवित नहीं होंगे तो पेट्रोल और डीजल का भंडार पूरी तरह से समाप्त हो जाएगा। इसलिए यह  आवश्यक है कि हम उसके विकल्पों पर विचार करें, इस पर रिसर्च करें और अनुसंधान पर जोर दें।

उन्होंने कहा कि पारंपरिक जीवाश्म ईंधन के विकल्प के रूप में गैर जीवाश्म ईंधन के महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाने हेतु प्रतिवर्ष 10 अगस्त को जैव ईंधन दिवस मनाया जाता है। इतिहास देखे तो 1893 में  इसी दिन जर्मनी के निवासी सर रुडोल्फ डीजलपहली बार मेकेनिकल इंजन को peanut oil मतलब vegetable oil से चला कर दिखाया था।

उन्होंने कहा कि पेट्रोल व डीजल का भंडार है और जिस तेजी से हम इस्तेमाल कर रहे हैं वो आने वाले 100 या 200 साल में खत्म हो जाएगा। यहां  एक बात और है जहां मैं आपका ध्यान आकर्षित करना चाहता हूं कि विश्व में कुछ देश ऐसे हैं जिनमें पेट्रोल-डीजल का अकूत भंडार है जैसे खाड़ी देश, कुवैत, ईरान, इराक आदि।

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हालांकि लेकिन विश्व के ज्यादातर देशों में पेट्रोल डीजल का उत्पादन नहीं होता है वह अन्य देशों से पेट्रोल-डीजल का आयात करते हैं, जिसमें बहुत विदेशी मुद्रा का भुगतान करना होता है। हमारे देश में फलों और सब्जियों को ट्रकों के द्वारा   पूरे देश में भेजा जाता है।

अब जैसे ही पेट्रोल डीजल के दाम बढ़ जाते हैं उसका असर हर घर में किचन के बजट पर पड़ता है, जो अमीर हैं उन पर कोई असर नहीं पड़ता लेकिन गरीब पर असर पड़ता है। बायोफील्ड में मैं सबसे पहले एथेनाल का जिक्र करना चाहूंगा जो गन्ने की शर्करा से बनाया जाता है। उन्होंने कहा कि बायोफ्यूल की जो सबसे बड़ी विशेषता है कि यह इको फ्रेंडली फ्यूल है।

उन्होंने कहा कि  आज से 22 साल पहले यानी सन 2000 तक पेट्रोल में लेड मिलाया जाता था जिससे वायु प्रदूषण फैलता था तब डॉ विपुल वेंकटेश, जिन्हें “लेड मैन ऑफ इंडिया” भी कहा जाता है उनके प्रयासों से पेट्रोल में लेड मिलना बंद हो गया। अब जो पेट्रोल हमारे पेट्रोल पंप पर मिलता है वह अनलेडेड पेट्रोल मिलता है।

वैसे दुनिया में पाये जाने वाले वायु प्रदूषण में से 65% प्रदूषण वाहनों से निकलने वाले काले धुएँ के कारण होता है। कार्बन डाइऑक्साइड एक ग्रीनहाउस गैस है। ग्रीनहाउस गैस ग्लोबल वार्मिंग करती है जिससे विश्व में तापमान सभी जगह बढ़ रहा है और इससे बहुत सारी बीमारियों का प्रादुर्भाव हो रहा है।

ग्लोबल वार्मिंग के बहुत सारे दुष्प्रभाव हैं। एक बहुत बड़ी ग्रीनहाउस गैस है जो कि कार्बन डाइऑक्साइड से निकलती है, कार्बन मोनोऑक्साइड जो कि एक जहरीली गैस है। यदि हम कार्बन मोनोऑक्साइड को इन्हेल कर लें और हमारे रक्त में मोनोऑक्साइड निश्चित मात्रा से ऊपर हो जाए तो हमारी मृत्यु हो जाती है।

अब जैसे-जैसे प्रदूषण बढ़ रहा है देखा गया है कि 5 से 10 साल पहले लोगों की मृत्यु हो रही है | जिस आदमी की मृत्यु 70 साल में हो रही थी, वायु प्रदूषण की वजह से उसकी मृत्यु 60 साल में हो रही है, तो वायु प्रदूषण को कम करना हम सभी का नैतिक कर्तव्य है जिसमें जैव ईंधन बहुत बड़ी भूमिका निभा सकता है।

उन्होंने अंत में कहा कि 400-500 साल बाद जब हम जीवित नहीं होंगे और पेट्रोल, डीजल का अकूत भंडार भी खत्म हो जाएगा तो हमारी आने वाली नस्लें हमें माफ नहीं करेंगी। वहीं आज हमारी हवा जहरीली हो गई है जिससे लोगों को सांस की बीमारी हो रही है जिसका सबसे बड़ा कारण वायु प्रदूषण है। अतः परंपरागत की जगह जैव ईंधन अपनाना होगा।

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