ब्रज और अवधी भाषा का पंजाबी साहित्य पर है गहरा प्रभाव

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लखनऊ। उत्तर प्रदेश पंजाबी अकादमी की ओर से ‘‘पंजाबी साहित्य में अवधी एवं ब्रज भाषा का प्रभाव‘‘ विषयक संगोष्ठी का आयोजन शुक्रवार को राजाजीपुरम स्थित पंडित दीनदयाल उपाध्याय राजकीय महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय में किया गया।

इसमें वक्ताओं ने कहा कि गुरमति साहित्य का विकास भक्ति आंदोलन के प्रभाव में हुआ। सिख गुरुओं ने भारत के विभिन्न हिस्सों में यात्रा की और वहां की लोक भाषाओं में संदेश दिए, जिससे उनके संदेश अधिक प्रभावी और जनसुलभ बने और उनकी वाणी में विभिन्न भाषाओं का सम्मिश्रण हुआ।

इस अवसर पर कार्यक्रम संयोजक अरविन्द नारायण मिश्र ने संगोष्ठी में आमंत्रित वक्ताओं को अंगवस्त्र और स्मृति चिन्ह भेंट कर सम्मानित भी किया।

नवयुग कन्या महाविद्यालय के दर्शनशास्त्र विभाग की विभागाध्यक्ष मेजर डॉ. मनमीत कौर सोढी ने संगोष्ठी में कहा कि गुरमति साहित्य, विशेष रूप से गुरु ग्रंथ साहिब और सिख धार्मिक साहित्य, अनेक भाषाओं और बोलियों से समृद्ध है। गुरमति साहित्य सिख परंपरा का एक महत्वपूर्ण अंग है,

जिसमें गुरुओं की शिक्षाएँ, भक्तों की वाणियाँ और अन्य धार्मिक एवं दार्शनिक विचार संकलित हैं। यह साहित्य मुख्य रूप से पंजाबी, ब्रज, अवधी, संस्कृत, फारसी, अपभ्रंश और अन्य लोक भाषाओं से समृद्ध है।

इसमें पंजाबी भाषा प्रमुख रूप से प्रयुक्त हुई है, परंतु विभिन्न क्षेत्रों में गुरमत के प्रचार और प्रभाव के कारण इसमें अन्य भारतीय भाषाओं, विशेष रूप से अवधी और ब्रज भाषा का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा है। गुरमति साहित्य का विकास भक्ति आंदोलन के प्रभाव में हुआ।

सिख गुरुओं ने भारत के विभिन्न हिस्सों में यात्रा की और वहां की लोक भाषाओं में संदेश दिए, जिससे उनके संदेश अधिक प्रभावी और जनसुलभ बने और उनकी वाणी में विभिन्न भाषाओं का सम्मिश्रण हुआ।

विशेष रूप से गुरु नानक देव जी, गुरु अर्जुन देव जी, और गुरु तेग बहादुर जी की वाणी में ब्रज, अवधी, सिंधी, फारसी, और संस्कृत के तत्व मिलते हैं। संत कबीर, रविदास, नामदेव और धन्ना जी की अवधी और ब्रजभाषा ने गुरमत साहित्य की भाषा को अधिक सरल, भावपूर्ण और भक्ति रस से ओत प्रोत किया जिससे यह हर वर्ग के लिए सहज रूप से समझने योग्य बनी।

युवा पंजाबी विदुषी रनदीप कौर ने कहा कि गुरमत साहित्य की सबसे बड़ी रचना श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी, जो की मध्ययुगीन साहित्य और समाज का दर्पण है, उसमें ब्रज और अवधी भाषा की झलक स्वाभाविक ही देखने को मिल जाती है।

गुरबाणी में इन बोलियों के मुहावरे लोकोक्तियों का इस्तेमाल सहज ही मिलता है। भाई गुरदास जी द्वारा रचित गुरबाणी की कुंजी और गुरु गोविंद सिंह जी द्वारा रचित दशम ग्रंथ में अवधी और बृज भाषा का जो रचनात्मक प्रयोग हुआ है वह इन ग्रंथों की भाषा को मधुर गायन योग्य बनाता है।

पंडित दीन दयाल उपाध्याय राजकीय महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय के प्रोफेसर डॉ. रमेश चन्द्र वर्मा ने कहा कि पंजाबी साहित्य पर ब्रजभाषा और अवधी भाषा का गहरा प्रभाव रहा है, जो उनकी भाषा, कविता और सामाजिक जीवन को स्पष्ट रूप से दिखता है।

पंजाबी और हिंदी के कई रूप, जैसे ब्रज और अवधी, आपस में काफी मिलते-जुलते थे और इस प्रभाव की वजह से पंजाबी साहित्य में भी ऐसे पहलू हैं जो ब्रज और अवधी से प्रभावित हुए हैं। ब्रज भाषा एक प्राचीन हिंदी उपभाषा है, जो मुगलों के समय में काफी लोकप्रिय थी।

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पंजाबी साहित्य में ब्रज भाषा का प्रभाव विशेष रूप से कबीर, सूरदास और गुरु नानक जी के समय में दिखता है। ब्रज भाषा की कविताओं का असर पंजाबी कविताओं पर भी पड़ा,

खास कर संत कवियों की कविताओं में इनका प्रयोग दिखता है। गुरु नानक देव जी ने अपने भजनों में ब्रज और अवधी भाषा का उपयोग किया था, जो पंजाबी भक्ति कविताओं को प्रभावित कर गया। पंजाबी साहित्य में ब्रजभाषा की मुक्त और स्पर्शभूत भाषा का इस्तेमाल किया गया, जो कहानियाँ और कविताओं को एक अलग ही रंग देती थी।

पंडित दीन दयाल उपाध्याय राजकीय महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय के हिन्दी विभाग की प्रोफेसर डॉ. सुरंगमा यादव ने कहा कि अवधी भाषा, एक अन्य हिंदी उपभाषा है जिसका प्रभाव भी पंजाबी साहित्य पर देखा गया है। अवधी की कविताओं में लोकगीत, कहानियाँ और प्रेम कहानियाँ होती थीं, जिनका असर पंजाबी लोकगीत और कहानियों पर भी पड़ा।

अवधी का प्रेम और विरह कविताओं का प्रभाव पंजाबी कविताओं में देखा गया। जैसे पंजाबी साहित्य में प्रेम, दर्द और विरह के गीत काफी प्रचलित हैं, जो अवधी भाषा से प्रभावित थे। पंजाबी लोकगीत में अवधी का प्रभाव भी देखा गया, खास कर उस समय के लोकगीत और कहानियों में जो रीति-रिवाज और प्रेम की कहानियां बयान करते थे।

पंडित दीन दयाल उपाध्याय राजकीय महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय के इतिहास विभाग की प्रोफेसर डॉ. प्रीति बाजपेई ने कहा कि पंजाबी साहित्य ने ब्रज और अवधी भाषा को अपनाया और उनकी प्रशंसा की। दोनों भाषाओं का प्रभाव पंजाबी कविताएँ, भक्ति साहित्य और लोकगीतों में देखने को मिलता है।

ऐसे में पंजाबी भाषा अपने आपको एक नए रूप में प्रगतिशील बना रही थी, जिसमें ब्रज और अवधी से अनेक रुचि और प्रभाव मिल रहे थे। इस प्रकार ब्रज और अवधी भाषाओं का पंजाबी साहित्य पर गहरा और व्यापक प्रभाव रहा जो आज भी पंजाबी साहित्य के विभिन्न रूपों में दिखता है।

उक्त संगोष्ठी कार्यक्रम में मंच संचालन वरिष्ठ विदुषी एवं लेखिका डॉ. रश्मि शील द्वारा किया गया। अन्त में कार्यक्रम कॉर्डिनेटर अरविन्द नारायण मिश्र द्वारा संगोष्ठी पर अपने विचारों को व्यक्त करते हुये कहा कि गुरु नानक ने धार्मिक और सामाजिक बदलावों को देखते हुए गुरमति साहित्य में कई भाषाओं का प्रयोग किया। इनमें पंजाबी के साथ ब्रज, अवधी और खड़ी बोली शामिल थीं।

ब्रज भाषा हिंदी साहित्य के काव्य की सबसे समृद्ध भाषा है, जिसका उपयोग 13 वीं शताब्दी के अंत में संत कवियों ने सर्वाधिक उपयोग किया है।

गुरमत साहित्य में भी इसकी झलक आमतौर पर देखने को मिल जाती है फिर चाहे श्री गुरु ग्रंथ साहिब में लिखे गए श्री गुरु तेग बहादुर जी, भक्त सूरदास जी और भगत कबीर जी के श्लोक हो या श्री गुरु गोविंद सिंह जी द्वारा रचित महाकाव्य ग्रंथ दशम ग्रंथ ही क्यों ना हो, बृज भाषा का इससे उत्कृष्ट उदाहरण कहीं और मिल ही नहीं सकता। कार्यक्रम में मीनू पाठक, महाविद्यालय के अध्यापक गण, शोधार्थियों आदि सहित पंजाबी संगत उपस्थित रही।

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