वायु प्रदूषण से हर साल भारत में होती है 20 लाख लोगों की मौत: डॉ सूर्य कान्त

0
34

सीएसआईआर–सेंट्रल ड्रग रिसर्च इंस्टिट्यूट (सीडीआरआई), लखनऊ के सभागार में “वायु प्रदूषण : स्वास्थ्य के लिए बड़ी चुनौती” विषय पर एक विशेष व्याख्यान का आयोजन किया गया।

इस अवसर पर मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थित थे डॉ. सूर्य कान्त, प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष, श्वास रोग विभाग, किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (केजीएमयू), लखनऊ तथा नेशनल कोर कमेटी सदस्य, डॉक्टर्स फॉर क्लीन एयर एंड क्लाइमेट एक्शन।

डॉ. सूर्य कान्त ने अपने संबोधन में कहा कि मानव जीवन के लिए हीमोग्लोबिन और ऑक्सीजन अत्यंत आवश्यक हैं, किंतु यदि हम प्रदूषित वायु में सांस लेते हैं तो यह प्रदूषित ऑक्सीजन रक्त वाहिकाओं के माध्यम से शरीर के विभिन्न अंगों तक पहुँचकर अनेक बीमारियों का कारण बनती है।

सीडीआरआई में “वायु प्रदूषण : स्वास्थ्य के लिए बड़ी चुनौती” : विशेष व्याख्यान व हिंदी कार्यशाला

उन्होंने बताया कि वायु प्रदूषण से निमोनिया, क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) तथा फेफड़ों के कैंसर जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है।

पैसिव स्मोकिंग (परोक्ष धूम्रपान) के खतरों पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा – “सिगरेट का केवल 30% धुआं पीने वाला व्यक्ति अंदर लेता है, शेष 70% वातावरण को प्रदूषित कर आसपास के लोगों को नुकसान पहुंचाता है।”

डॉ. सूर्य कान्त ने बताया कि वायु प्रदूषण बच्चों के लिए भी अत्यंत हानिकारक है, जिससे कुपोषण, मोटापा और विकास अवरोध (स्टंटिंग) जैसी स्थितियाँ उत्पन्न होती हैं।

उन्होंने कहा कि गर्भवती महिलाएँ और नवजात शिशु इस प्रदूषण के प्रति सबसे अधिक संवेदनशील होते हैं, जिससे गर्भ के अंदर शिशु का विकास रुक जाना (IUGR) तथा जन्मजात बीमारियाँ और संक्रमण जैसी समस्याएँ उत्पन्न होती हैं।

उन्होंने वायु प्रदूषण के प्रमुख स्रोतों का उल्लेख करते हुए कहा कि वाहन उत्सर्जन, खुले में कचरा जलाना, औद्योगिक धुआँ, निर्माण कार्यों से निकलने वाली धूल तथा घरों में लकड़ी या कोयला जलाना प्रमुख कारण हैं।

डॉ सूर्य कान्त ने उपस्थित वैज्ञानिकों, तकनीकी एवं गैर-तकनीकी कर्मचारियों को विभिन्न व्यक्तिगत एवं संस्थागत स्तर पर उठाए जाने वाले उपायों पर चर्चा की, जिससे वायु प्रदूषण कम किया जा सके, जैसे कि पास में रहने वाले कर्मचारियों द्वारा साइकिल या पैदल चलकर आने की पहल।

कागज़ का कम उपयोग और ईमेल सिग्नेचर में “कृपया इस ईमेल को प्रिंट न करें – कागज़ बचाएँ” जैसी पंक्तियों का प्रयोग।

वाहन पूलिंग (कार शेयरिंग) द्वारा ईंधन की बचत।
दिवाली, नव वर्ष या अन्य किसी भी अवसर पर पटाखों का उपयोग न करना।
बिजली की बचत की आदतें अपनाना।

सीडीआरआई द्वारा कैंपस में उगाए गए फूलों से हरित गुलदस्ता (Green Bouquet) तैयार करने और प्लास्टिक के न्यूनतम उपयोग की डॉ सूर्य कान्त ने सराहना की।

इस अवसर परआयोजित हिन्दी कार्यशाला में डॉ. सूर्य कान्त ने हिन्दी भाषा के महत्व पर भी प्रकाश डाला और कहा कि बच्चों को अपनी मातृभाषा में शिक्षा देने से उनकी समझ और अभिव्यक्ति की क्षमता बढ़ती है तथा सांस्कृतिक पहचान सशक्त होती है।

उन्होंने वैज्ञानिकों को समाज के लिए उपयोगी विषयों पर हिंदी भाषा में लिखने का आह्वाहन किया। डॉ सूर्य कान्त ने उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान से प्रकाशित अपनी पुस्तक खर्राटे हैं खतरनाक संस्थान के पुस्तकालय के लिए भेंट की।

कार्यक्रम के अंत में डॉ. रश्मि राठौर ने डॉ. सूर्य कान्त का आभार व्यक्त किया और कहा कि उनके सुझाव हम सभी को वायु प्रदूषण को कम करने एवं सतत अनुसंधान की दिशा में कार्य करने की प्रेरणा देते हैं।

इस अवसर पर बिहारी कुमार, डॉ. कंचन, डॉ. आकाश शर्मा, नवीन पाण्डेय (राज्य समन्वयक – उत्तर प्रदेश, लंग केयर फाउंडेशन) सहित सीडीआरआई के वैज्ञानिक, तकनीकी एवं गैर-तकनीकी कर्मचारी उपस्थित रहे।

कार्यक्रम का समापन सभी प्रतिभागियों द्वारा वायु प्रदूषण कम करने एवं विशेष अवसरों पर वृक्षारोपण करने की सामूहिक प्रतिज्ञा के साथ हुआ, जिससे पर्यावरण संरक्षण और जनस्वास्थ्य के प्रति संस्थान की प्रतिबद्धता और भी सुदृढ़ हुई।

ये भी पढ़ें : विज्ञान में उत्कृष्ट योगदान, डॉ. आर. रविशंकर को अब एनएएसआई फेलोशिप

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here