सीएसआईआर-सेंट्रल ड्रग रिसर्च इंस्टीट्यूट (सीडीआरआई), लखनऊ द्वारा अपनी 75वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में “चिकित्सा में नवाचार: छात्रों द्वारा और छात्रों के लिए संगोष्ठी” (Innovations in Medicine: Symposium for and by Students) नामक एक अनूठी संगोष्ठी (symposium) का आयोजन किया गया।
यह पूरी संगोष्ठी छात्रों द्वारा आयोजित एवं संचालित की गई, जिसका उद्देश्य था आधुनिक औषधि अनुसंधान की जटिल प्रक्रिया को गहराई से समझना और यह संदेश देना कि हर दवा के पीछे वर्षों का परिश्रम और सैकड़ों वैज्ञानिकों की समर्पित मेहनत होती है।
संगोष्ठी की शुरुआत दवा अनुसंधान की मूल अवधारणाओं से हुई, जिसमें यह बताया गया कि किसी भी दवा को बाजार तक पहुँचने में लगभग 10 से 15 वर्ष लगते हैं, और यह प्रक्रिया लगभग 10,000 संभावित अणुओं की स्क्रीनिंग से शुरू होती है, जिनमें से केवल एक या दो ही अंततः दवा के रूप में मान्यता प्राप्त करते हैं।
यह पूरी प्रक्रिया विभिन्न क्षेत्रों के वैज्ञानिकों—रसायनज्ञों, जैव वैज्ञानिकों, विषविज्ञों, क्लिनिकल विशेषज्ञों और नियामक अधिकारियों—की सामूहिक मेहनत से पूरी होती है।
संगोष्ठी के पहले सत्र में अमेरिका में हाल ही में एफडीए द्वारा अनुमोदित दवा रेस्मेटिरोम (Resmetirom) की वैज्ञानिक यात्रा पर गहन चर्चा हुई।
इस सत्र की शुरुआत श्वेच्छा सिंह ने की, जिन्होंने मेटाबॉलिक डिसफंक्शन से जुड़ी स्टिएटोहेपेटाइटिस (MASH) और फैटी लिवर रोग (MASLD) जैसी बीमारियों की वर्तमान चिकित्सा जरूरतों को रेखांकित किया और यह बताया कि रेस्मेटिरोम (Resmetirom) कैसे इस रिक्तता को भरने में सक्षम है।
इसके पश्चात आस्था सिंह ने इस बात को स्पष्ट किया कि कैसे यह दवा फैटी लिवर से फाइब्रोसिस की चुनौती को चिकित्सा समाधान प्रदान करती है।
प्रियंका ने रेस्मेटिरोम (Resmetirom) की थायरॉयड हार्मोन मिमिक आधारित औषधीय रसायनशास्त्र को सरल ढंग से समझाया, जबकि नेहा अग्रवाल ने इसके क्लिनिकल परीक्षणों और चिकित्सकीय प्रभावशीलता की व्याख्या की।
दूसरे सत्र में हाल ही में एफडीए द्वारा स्वीकृत एक अन्य दवा सुज़ेट्रिजीन (Suzetrigine) पर केंद्रित प्रस्तुतियाँ दी गईं, जो दर्द प्रबंधन के लिए विकसित की गई है। आर्द्रा चक्रवर्ती ने सुज़ेट्रिजीन (Suzetrigine) की चिकित्सा पृष्ठभूमि और इसके विकास की पूरी यात्रा को प्रस्तुत किया।
इसके बाद लवली दीक्षित ने इस दवा की रासायनिक संरचना और उसके चयनात्मक प्रभावों को विस्तृत रूप में समझाया। आशुतोष शर्मा ने प्रीक्लिनिकल मॉडल्स, उनके मेट्रिक्स, और सुज़ेट्रिजीन (Suzetrigine) के कार्यविधियों की चर्चा की, जबकि स्तांज़िन नुर्बू ने इसके क्लिनिकल ट्रायल्स और प्रभावशीलता को दर्शाते हुए निष्कर्ष साझा किए।
इस संगोष्ठी की मुख्य अतिथि डॉ. गीता वानी रायसम (वरिष्ठ वैज्ञानिक, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार) थीं। उन्होंने छात्रों द्वारा किए गए इस प्रयास की सराहना करते हुए कहा कि यह देखकर अत्यंत गर्व होता है कि हमारे युवा वैज्ञानिक आज इतने परिपक्व और गहराई से विज्ञान को समझ रहे हैं।
उन्होंने कहा, “नवाचार के क्षेत्र में छात्रों की सहभागिता न केवल प्रेरणादायक है बल्कि समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाने की दिशा में भी महत्वपूर्ण है।” उन्होंने जिज्ञासु बने रहने, मिलजुल कर कार्य करने और अपने शोध के सामाजिक पक्ष को न भूलने का संदेश दिया।
इस संगोष्ठी का संचालन और मार्गदर्शन संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिकों डॉ. अनिल गायकवाड़, डॉ. आमिर नज़ीर, डॉ. कुमारवेलु जे., डॉ. अजय श्रीवास्तव, और डॉ. पी. एन. यादव के कुशल निर्देशन में हुआ।
छात्रों की सक्रिय भागीदारी, शोध की गंभीरता और श्रोताओं की सकारात्मक प्रतिक्रियाओं को देखते हुए, यह पहल अब सीडीआरआई में एक वार्षिक परंपरा के रूप में जारी रखी जाएगी। यह संगोष्ठी निश्चित रूप से आने वाले वर्षों में युवा वैज्ञानिकों को दवा अनुसंधान और विकास के क्षेत्र में योगदान देने के लिए प्रेरित करती रहेगी।
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