सीडीआरआई वैज्ञानिकों के शोध से टीएनबीसी के टार्गेट थेरेपी से इलाज में मिलेगी मदद 

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ट्रिपल-नेगेटिव ब्रेस्ट कैंसर (टीएनबीसी/TNBC) की सर्वाधिक व्यापकता के कारण दुनिया भर में भारत को इसके केंद्र के रूप में जाना जाता है। सीमित चिकित्सीय उपचार के कारण टीएनबीसी,स्तन कैंसर के सभी उपप्रकारों में सबसे घातक है।

इस प्रकार के कैंसर में मेटास्टेसिस (कैंसर का फैलना)जल्दी प्रारम्भ हो जाता है, जिसके परिणामस्वरूप पांच साल की जीवित रहने की दर (उत्तरजीविता दर) कम हो जाती है।

डॉ. दीपक दत्ता व उनकी टीम ने खोजा मेटास्टेसिस से बचने के लिए नवीन एवं व्यवहारिक विकल्प
डॉ. दीपक दत्ता

सीएसआईआर-सीडीआरआई, लखनऊ के डॉ. दीपक दत्ता एवं उनकी रिसर्च टीम ने हाल ही में प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय शोध पत्रिका, नेचर कम्युनिकेशंस 13, 7344 (2022) में एक लेख प्रकाशित किया है.

जो एफडीए द्वारा अनुमोदितएक निरोधक दवा,टेजिमेटोसटेट (Tazemetostat) (EPZ6438) द्वारा एपिजेनेटिक मॉड्यूलेटर “एन्हांसर ऑफ ज़ेस्ट होमोलॉग2″जिसेईज़ीएच2 (EZH2) भी कहते हैं, के एंजाइमैटिक फ़ंक्शन को टार्गेट (लक्षित) करने की क्रियाविधि पर प्रकाश डालता है।

एपिजेनेटिक मॉड्यूलेटर जीन एक्टिवेशन (ऑन/ऑफ) को नियंत्रित करता है।अस्पताल/क्लिनिक में टीएनबीसी मेटास्टेसिस (कैंसर का फैलना) को नियंत्रित करने के लिए यह एपिजेनेटिक मॉड्यूलेटर-ईज़ीएच2 एक व्यवहारिक विकल्प हो सकता है।

स्तन कैंसर की सबसे ज्यादा शिकार है भारतीय महिलाए

देखा जाये तो वार्षिक घटनाओं को ध्यान में रखते हुए, स्तन कैंसर अब भारतीय महिलाओं में पहले स्थान पर है। यह कई उपप्रकारों के साथ एक बहुत ही विषम बीमारी है।

तीन अलग-अलग हार्मोन/विकास कारक रिसेप्टर्स (अर्थात, एस्ट्रोजन रिसेप्टर या ईआर(ER), प्रोजेस्टेरोन रिसेप्टर या पीआर (पीआर) और ह्यूमन एपिडर्मल ग्रोथ फैक्टर रिसेप्टर2 या एचईआर2 (HER2) की उपस्थिति प्रमुख रूप से स्तन कैंसर उसके उपप्रकार एवं उसके उपचार के तौर-तरीकों को निर्धारित करती है।

वैसेअधिकांश मामलों में एंटी-हार्मोन / HER2 उपचार कारगर है परंतु,एक उपप्रकार ऐसा है, जिसमें तीनों रिसेप्टर्स के ओवरएक्प्रेशन का अभाव पाया जाता है, जिसे ट्रिपल नेगेटिव ब्रेस्ट कैंसर अथवा टीएनबीसी के रूप में जाना जाता है।टीएनबीसीसभी स्तन कैंसर उपप्रकारों में सबसे घातक है क्योंकि इसमें पारंपरिक लक्षित उपचार काम नहीं करते हैं।

मेटास्टेसिस का अन्य अंगों में फैल जाना 90 फीसदी मृत्यु दर और रुग्णता का जिम्मेदार 
डॉ आयुषी वर्मा

दुर्भाग्य से, भारत को इसकी उच्च व्यापकता के कारण दुनिया की टीएनबीसी राजधानी के रूप में जाना जाता है।मेटास्टेसिस (अंतःसंक्रमण)या ट्यूमर का अन्य अंगों (जैसे यकृत एवं प्लीहा) में फैल जाना नब्बे फ़ीसदी (90%) रोगी मृत्यु दर और रुग्णता के लिए जिम्मेदार है।

टीएनबीसी अन्य स्तन कैंसर उपप्रकारों की तुलना में अधिक मेटास्टेसाइज या तेजी से फैलता है, जिसके परिणामस्वरूप निदान के बाद 5 साल जीवित रहने की दर कम हो जाती है। डॉ दत्ता के अनुसार,हम टीएनबीसी मेटास्टेसिस (अंतःसंक्रमण)के आणविक विवरण के बारे में ज्यादा नहीं जानते हैं।

इस अध्ययन से हम उन आणविक प्रक्रियाओं की पहचान करने का प्रयास कर रहे हैं जो टीएनबीसीके प्रसार/फैलाव के लिए जिम्मेदार हैं।हमारे अध्ययनों से पता चलता है कि ईज़ीएच2 की अतिसक्रियता स्तन से यकृत एवं प्लीहा (पेरिटोनियल मेटास्टेसिस) में फैलने में महत्वपूर्ण है।

क्रियाविधि अनुरूप अध्ययन पर, हमने पाया कि वर्तमान में प्रचलित दमनात्मक (सप्रेसिव) क्रियाविधि के बजाय, ईज़ीएच2 का कार्यात्मक सक्रियण विशिष्ट जीन की अभिव्यक्ति को बढ़ावा दे सकता है जैसे कि KRT14 ट्रांसक्रिप्शनल अपरेगुलेशन जोकि टीएनबीसी के पेरिटोनियल मेटास्टेसिस को नियंत्रित करनेमें एक अहम भूमिका निभाता है।

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शोध से यह पता चला कि ईज़ीएच2अवरोधक दवा टेजिमेटोस्टेट (EPZ6438) सबसे आक्रामक टीएनबीसी के खिलाफ एक आशाजनक चिकित्सीय विकल्प हो सकता है, जहाँ लक्षित चिकित्सा के लिए अभी भी शोध जारी है।

दूसरी ओर जैसा पहले कहा गया है, दुनिया के अन्य क्षेत्रों (8-15%) की तुलना में भारत में टीएनबीसी की घटना अधिक (18-31%) है। ये आंकड़े डराने वाले हैं।

भारत में टीएनबीसी की उच्च दर के जिम्मेदार है कई जोखिम कारक

भारत में टीएनबीसी की उच्च दर कई स्पष्ट जोखिम कारकों से जुड़ी हुई है, जिनमें से सबसे महत्वपूर्ण जीवनशैली में बदलाव, मोटापा, बीमारी का पारिवारिक इतिहास, एक उच्च माइटोटिक इंडेक्स और बीआरसीए1 जीन म्यूटेशन हैं।एक अन्य महत्वपूर्ण पहलू यह है कि टीएनबीसी युवा महिलाओं में अधिक प्रचलित है

स्तन कैंसर के अन्य उप प्रकारों के उपचार हेतु लक्षित चिकित्सा (टार्गेटेड थेरेपी)उपलब्ध है परंतु टीएनबीसी के लिए नियमित कीमोथेरेपी एकमात्र उपचार विकल्प है जिसके साथ अनेक दुष्प्रभाव (जैसे, थकान, बालों का झड़ना, एनीमिया आदि)जुड़े होते हैं। इसके अलावा, अधिकांश मामलों में, यह रोगियों को दीर्घकालिक लाभ देने में विफल रहता है।

इसलिए, इस घातक स्तन कैंसर उपप्रकार के खिलाफ एक लक्षित चिकित्सा की खोज की अति आवश्यकता है।
क्योंकि एपिजेनेटिक मॉड्यूलेटर,ईज़ीएच2 का कार्यात्मक अतिसक्रियण टीएनबीसी का स्तन से यकृत और प्लीहा (पेरिटोनियम) तक फैलने को नियंत्रित करता है।

 अध्ययन के निष्कर्ष

अध्ययन से पता चला है कि टीएनबीसी का स्तन से यकृत और प्लीहा (पेरिटोनियम)में फैलनाएक एपिजेनेटिक मॉड्यूलेटर ईज़ीएच2 (एन्हांसर ऑफ ज़ेस्ट होमोलोग2) के कार्यात्मक अति सक्रियता द्वारा स्पष्ट रूप से नियंत्रित किया जाता है। यह ईज़ीएच2 जीन एक एंजाइम को कोड करता है,

जो हिस्टोन के मिथाइलेशन (मेथिलिकरण) में भाग लेता है जिसके परिणामस्वरूप क्रोमैटिन संघनन और अन्य जीनों का ट्रांसक्रिप्शनल दमन होता है। हमने पाया है कि ईज़ीएच2 फंक्शनल ओवरएक्प्रेशन या हिस्टोन ट्राइमेथाइलेशन (H3K27me3) मार्क, मानव टीएनबीसी पेरिटोनियल मेटास्टेसिस के मामले में तेजी से बढ़ जाता है।

पारंपरिक रूप से ट्राईमिथाइलेशन को जीन अभिव्यक्ति का दमन कराने के लिए जाना जाता है। परंतु इस शोध में हमने पाया कि ट्राईमिथाइलेशन आश्चर्यजनक रूप से KRT14 या साइटोकैटिन-14 जीन अभिव्यक्ति को बढ़ाता है एवं टीएनबीसी पेरिटोनियल मेटास्टेसिस के महत्वपूर्ण नियामकों में से एक है।

हम निर्णायक साक्ष्य सामने रखते हैं कि एफडीए द्वारा अनुमोदित दवाटेजिमेटोस्टेट जैसे अवरोधकों द्वारा ट्यूमर कोशिकाओं में ईज़ीएच2 के आनुवंशिक नुकसान या ईज़ीएच2 (H3K27me3 mark) के एंजाइमैटिक फ़ंक्शन का निषेध टीएनबीसी पेरिटोनियल मेटास्टेसिस को रोकने के लिए जन्तु मॉडल में प्रभावी है।

कार्यप्रणाली

प्रमुख अध्ययन निष्कर्ष टीएनबीसी के प्रीक्लिनिकल एनिमल मॉडल पर आधारित हैं। यहां शोधकर्ताओं ने लाइव एनिमल इमेजिंग तकनीक का उपयोग करके प्राथमिक ट्यूमर साइट से दूर के अंगों (जैसे यकृत एवं प्लीहा) में ट्यूमर के फैलाव का अध्ययन किया हैं। कुल मिलाकर, अत्याधुनिक जैविक तकनीकों का उपयोग प्रस्तुत शोध पत्र के निष्कर्ष निकालने के लिए किया गया है।

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