संश्लेषणात्मक और औषधीय रसायन विज्ञान में नई रणनीतियों पर हुई चर्चा

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सीटीडीडीआर का शुभारंभ, पहला दिन “संश्लेषणात्मक एवं औषधीय रसायन विज्ञान में नई रणनीतियों” पर केन्द्रित रहा। वैज्ञानिकों ने अपने नवीन शोध निष्कर्षों को प्रतिभागियों के साथ साझा किया। सीएसआईआर-केंद्रीय औषधि अनुसंधान संस्थान, लखनऊ में आज “औषधि खोज अनुसंधान में वर्तमान प्रवृत्तियों पर अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी” के 9वें संस्करण का उद्घाटन किया गया।

सीएसआईआर-सीडीआरआई, लखनऊ की निदेशक डॉ. राधा रंगराजन ने कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि, डीन एवं वरिष्ठ परामर्शदाता, होली फैमिली अस्पताल, नई दिल्ली के प्रो. बलराम भार्गव एवं मुख्य अतिथि, सीएसआईआर की महानिदेशक एवं डीएसआईआर की सचिव,

डॉ. एन. कलैसेल्वी के साथ उपस्थित सभी गणमान्य व्यक्तियों का स्वागत किया। उन्होंने इस महत्वपूर्ण औषधि खोज सम्मेलन के बारे में जानकारी दी और प्रतिभागियों को यह बताया कि वे इस अवसर का उपयोग कैसे सीखने, नेटवर्किंग करने एवं अपने अनुसंधान कौशल को उन्नत करने के लिए कर सकते हैं।

क्वांटम कंप्यूटिंग एवं आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस ड्रग डिस्कवरी में बदलाव लाएगा : प्रो. बलराम भार्गव

कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि, प्रो. बलराम भार्गव, डीन एवं वरिष्ठ परामर्शदाता, होली फैमिली अस्पताल, नई दिल्ली एवं भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर)

के पूर्व महानिदेशक ने भी प्रतिभागियों को संबोधित किया। प्रो. बलराम भार्गव ने भारत की औषधि अनुसंधान क्षमता पर जोर देते हुए कहा कि यह देश अपनी समृद्ध रसायन विज्ञान विरासत के कारण फार्मास्युटिकल नवाचारों का वैश्विक केंद्र बन चुका है।

भारत ने लगातार उच्च गुणवत्ता वाली और किफायती दवाओं के निर्माण की अपनी क्षमता को सिद्ध किया है, जिससे विश्वभर में स्वास्थ्य सुविधाओं की पहुंच सुनिश्चित हो रही है। हालांकि, सक्रिय औषधीय घटकों (APIs) की उपलब्धता एवं नई दवाओं की खोज जैसी चुनौतियाँ अब भी महत्वपूर्ण विषय बनी हुई हैं।

उन्होंने आगे कहा कि क्वांटम कंप्यूटिंग और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का समावेश ड्रग डिस्कवरी में क्रांतिकारी बदलाव लाने वाला है, जिससे अनुसंधान की गति तेज होगी और लागत भी कम होगी। इसके साथ ही उन्होंने आपसी सहयोग को भारत की फार्मास्युटिकल सफलता का एक महत्वपूर्ण आधार बताया।

उन्होंने कहा कि मार्केट शेपिंग (बाजार निर्माण) भी उतना ही महत्वपूर्ण है, जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि नवाचार बड़े पैमाने तक पहुँचें और भारत स्वास्थ्य सेवा में अपनी किफायती नेतृत्व क्षमता बनाए रखे।.

अनुसंधान की सीमा नहीं, परस्पर सहयोग  इसे और अधिक रचनात्मक बनाते हैं: (डॉ. एन. कलैसेल्वी)

कार्यक्रम की मुख्य अतिथि, सीएसआईआर की महानिदेशक एवं डीएसआईआर की सचिव, डॉ. एन. कलैसेल्वी ने प्रतिभागियों को संबोधित किया। उन्होंने इस अवसर पर जोर देकर कहा कि कार्यक्रम कि इस प्रकार के सम्मेलन शोधकर्ताओं, उद्योगपति एवं युवा वैज्ञानिकों को सहयोग के नए अवसर प्रदान करते हैं, जिससे फार्मास्यूटिकल्स और हेल्थकेयर में नवाचार को बढ़ावा मिलेगा।

उन्होंने कहा, “विज्ञान की कोई सीमाएँ नहीं होतीं, जिससे यह कार्यक्रम वैश्विक सहयोग का एक द्वार का काम करेगा।” उन्होंने अनुसंधान एवं विकास में अंतरराष्ट्रीय सहयोग के महत्व को रेखांकित किया। साथ ही छात्रों से आह्वान किया कि वे इन चर्चाओं से प्रेरणा लें और भारत को 2047 तक विज्ञान और प्रौद्योगिकी में वैश्विक नेतृत्व की दिशा में आगे ले जाने के लिए कार्य करें।

दर्द उपचार हेतु औषधि एफटीसी146 के विकास की यात्रा (प्रो. क्रिस्टोफर रॉबर्ट मैककर्डी)

उद्घाटन कार्यक्रम में, फ्लोरिडा विश्वविद्यालय, अमेरिका के प्रोफेसर एवं द फ्रैंक ए. डकवर्थ एमिनेंट स्कॉलर चेयर प्रो. क्रिस्टोफर रॉबर्ट मैककर्डी ने उद्घाटन भाषण दिया। उनका व्याख्यान “दर्द को समझना: प्रयोगशाला से क्लिनिक तक, एक औषधीय रसायनज्ञ की यात्रा” विषय पर आधारित था।

उन्होंने दर्द के प्रसंस्करण में सिग्मा-1 रिसेप्टर्स की भूमिका पर प्रकाश डाला। उन्होंने एफटीसी146 (FTC146) अणु की खोज एवं विकास की यात्रा साझा की, जो सिग्मा-1 रिसेप्टर्स के लिए एक चयनात्मक लिगैंड के रूप में कार्य करता है।

उन्होने बताया यह अणु परिधीय तंत्रिकाओं में होने वाली क्षति के स्थान को खोज सकता है, जिससे बेहतर दर्द प्रबंधन संभव हो सकता है और कुछ मामलों में दर्द पूरी तरह समाप्त भी किया जा सकता है। इस ट्रेसर का पहला मानव नैदानिक परीक्षण (फेज-1 क्लिनिकल ट्रायल) पूरा हो चुका है तथा यह दर्द प्रबंधन रणनीतियों में एक बड़ी उपलब्धि साबित हो सकता है।

नई एंटीमाइक्रोबियल औषधियों के विकास हेतु कोफैक्टर बायोसिंथेसिस को लक्षित करना महत्वपूर्ण

कार्यक्रम के दूसरे सत्र में, अमेरिका के मिनेसोटा विश्वविद्यालय के प्रो. कोर्टनी सी. एल्ड्रिच ने ऑनलाइन प्रस्तुति दी। उन्होंने नए एंटीमाइक्रोबियल एजेंटों के विकास के लिए कोफैक्टर बायोसिंथेसिस को लक्षित करने के नवीन दृष्टिकोणों पर चर्चा की।

उन्होंने दो ऐसे जटिल लक्ष्यों (टार्गेट्स) के खिलाफ एंटी-ट्यूबरकुलर एजेंट विकसित करने के प्रयास साझा किए, जिनके लिए अभी तक प्रभावी छोटे अणु उपलब्ध नहीं हैं। उनके शोध दल ने प्रभावी अवरोधक (इनहिबिटर) संरचनाओं की खोज की और उनके जैविक प्रभाव तथा औषधीय गुणों को अनुकूलित किया।

उन्होंने अपने अनुकूलन अभियान (ओप्टीमाइजेशन केंपेन में आई चुनौतियों को भी साझा किया और यह बताया कि कैसे उन्होंने क्रियाविधि अध्ययन के माध्यम से इन बाधाओं को कैसे पार किया। उन्होंने अपने नवीनतम शोध कार्य के तहत रिफामाइसिन के अगली पीढ़ी के व्युत्पन्नों के विकास पर भी चर्चा की, जो विभिन्न प्रतिरोध तंत्रों को मात देने में सक्षम हो सकते हैं।

सीएसआईआर-भारतीय रासायनिक जीवविज्ञान संस्थान (IICB), कोलकाता के डॉ. अरिंदम तालुकदार ने TLR7 (टोल-लाइक रिसेप्टर 7) मॉड्यूलेटर में एगोनिज़्म (उत्तेजना) और एंटागोनिज्म (प्रतिरोध) को प्रभावित करने वाले जटिल रासायनिक घटकों पर अपने शोध निष्कर्ष प्रस्तुत किए।

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TLR7 एक एंडोसोमल रिसेप्टर प्रोटीन है, जो शरीर को वायरस तथा बैक्टीरिया की पहचान करने एवं उनके खिलाफ प्रतिक्रिया देने में मदद करता है। उन्होंने बताया कि एगोनिस्ट और एंटागोनिस्ट अक्सर अपने लक्ष्य अणु में समान बाइंडिंग साइट साझा करते हैं। इसलिए, एगोनिस्टिक (उत्तेजक) रासायनिक संरचनाओं का उपयोग एंटागोनिस्ट (प्रतिरोधक) विकसित करने के लिए किया जा सकता है।

सीटीडीडीआर-2025 के प्रमुख वक्ताओं ने अपने ज्ञानवर्धक व्याख्यानों से प्रतिभागियों में वैज्ञानिक जिज्ञासा की लौ प्रज्वलित की। ये प्रस्तुतियाँ नवीनतम शोधों से भरपूर थीं, जो प्रतिभागियों के लिए अनुसंधान और नवाचार के नए द्वार खोलने का कार्य करेंगी।

आने वाले सत्रों में और भी अत्याधुनिक वैज्ञानिक चर्चाएँ होंगी, जो इस मंच पर जुटे वैज्ञानिकों एवं शोधकर्ताओं को नई ऊर्जा तथा नए अनुसंधान दिशा-निर्देश प्रदान करेंगी।

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