सीटीडीडीआर संगोष्ठी के तीसरा दिन मुख्य रूप से केंद्रीय तंत्रिका तंत्र (सीएनएस), हृदयवाहिनी तंत्र (सीवीएस), हड्डी विकार, प्रजनन स्वास्थ्य, तथा कैंसर विरोधी उपचारों पर रहा।
आज, सीएसआईआर-सेंट्रल ड्रग रिसर्च इंस्टीट्यूट, लखनऊ में आयोजित “औषधि अनुसंधान में वर्तमान प्रवृत्तियों पर 9वीं अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी” के तीसरे दिन प्रतिष्ठित वैज्ञानिकों द्वारा केंद्रीय तंत्रिका तंत्र (सीएनएस), हृदयवाहिनी तंत्र (सीवीएस), हड्डी विकार, प्रजनन स्वास्थ्य, तथा कैंसर जैसे विकारो पर विचार-विमर्श किया गया।
कंपन आयन विशेष रूप से बीके चैनलों की कार्यक्षमता में गड़बड़ी से जुड़ाव : प्रो. मार्क ए. हॉलीवुड
#सीटीडीडीआर 2025 के तीसरे दिन, सातवा सत्र केंद्रीय तंत्रिका तंत्र (सीएनएस) एवं हृदय प्रणाली (सीवीएस) विकारों के लिए उभरते चिकित्सीय तरीकों पर केंद्रित था। डंडाल्क इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, आयरलैंड के प्रोफेसर मार्क ए. हॉलीवुड ने “एलआईएनजीओ परिवार के नियामक सबयूनिट्स द्वारा बीके चैनल फ़ंक्शन का मॉड्यूलेशन” विषय पर व्याख्यान दिया।
उन्होंने बताया कि कंपन का संबंध आयन चैनलों, विशेष रूप से बीके चैनलों की कार्यक्षमता में गड़बड़ी से है। कंपन एक न्यूरोलॉजिकल स्थिति है, जिसमें शरीर के एक या अधिक भागों में झटके या कांपने जैसी हरकतें होती हैं, जो आमतौर पर व्यक्ति के हाथों को प्रभावित करती हैं। उनके शोध में पाया गया कि बीके चैनल की एक असंबंधित प्रोटीन एलआईएनजीओ 1 के साथ हुई अंतःक्रिया कंपन उत्पन्न करने का कारण बनती है।
हनोवर मेडिकल स्कूल, जर्मनी के प्रो. अमर दीप शर्मा ने अपने व्याख्यान में यकृत रोगों के उपचार के लिए पुनर्योजी चिकित्सा आधारित दृष्टिकोणों के विकास पर चर्चा की। उनके शोध दल ने छोटे नॉन-कोडिंग आरएनए की खोज की है, जो तीव्र यकृत विफलता के नियामक और बायोमार्कर के रूप में कार्य करते हैं तथा यकृत पुनर्जनन को बढ़ावा देने में सहायक हैं।
उन्होंने माइक्रोआरएनए (microRNA) को तीव्र यकृत विफलता के एक महत्वपूर्ण नियामक के रूप में प्रस्तुत किया। उन्होंने अपने शोध में माइक्रो आरएनए125बी -5पी के संभावित चिकित्सीय उपयोग के लिए यूरोप, अमेरिका और चीन में पेटेंट प्राप्त किया है।
न्यूरॉन-गट मेटाबॉलिज्म सिग्नलिंग का उम्र बढ़ने पर प्रभाव डॉ. अर्णब मुखोपाध्याय का शोध
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ इम्यूनोलॉजी नई दिल्ली के डॉ. अर्णब मुखोपाध्याय ने लंबी उम्र को नियंत्रित करने वाली न्यूरॉन-गट सिग्नलिंग धुरी पर अपने शोध पर चर्चा की।
सी एलिगेन्स को मॉडल ऑर्गेनिज़्म के रूप में प्रयोग करते हुए, उन्होंने विटामिन B12 की भूमिका को चयापचय व्यवहार और उम्र बढ़ने के नियमन में साबित किया। उन्होंने न्यूरॉन-गट सिग्नलिंग अक्ष के माध्यम से व्यवहार और दीर्घायु को नियंत्रित करने के लिए सूक्ष्म पोषक तत्व-मध्यस्थ संचार की वर्तमान समझ को भी साझा किया।
प्लेनरी व्याख्यान में, बायलर कॉलेज ऑफ मेडिसिन, यूएसए के प्रोफेसर मार्टिन एम. मात्ज़ुक ने “ड्रग डिस्कवरी के लिए डीएनए-एनकोडेड केमिस्ट्री टेक्नोलॉजी” पर अपना शोध साझा किया।
फंक्शनल जीनोमिक्स का उपयोग करके, उन्होंने प्रजनन क्षमता से संबंधित आवश्यक मार्गों की जांच की और 300 से अधिक अद्वितीय ट्रांसजेनिक माउस मॉडल विकसित किए, जिससे प्रजनन, विकास और डिम्बग्रंथि (ओवेरियन) कैंसर का अध्ययन किया जा सके।
उनकी टीम ने 70 से अधिक डीएनए-एनकोडेड केमिकल लाइब्रेरी बनाई हैं, जिनमें 7 बिलियन से अधिक विविध छोटे अणु शामिल हैं, ताकि नैनोमोलर स्तर के ड्रग-जैसे अवरोधक एवं नए रासायनिक तत्व खोजे जा सकें। उन्होंने टीजीएफ़ बीटा सुपरफैमिली काइनेज रिसेप्टर्स, और विभिन्न मार्गों में शामिल प्रोटीएज़ के लिए अनूठे छोटे अणु अवरोधकों को विकसित करने के अपने कार्य को प्रस्तुत किया।
उनके बाद सिडनी विश्वविद्यालय, ऑस्ट्रेलिया के प्रो. आर्थर डी. कोनिग्रेव ने कैल्शियम-सेंसिंग रिसेप्टर से जुड़े एल-अमीनो एसिड-आश्रित सिग्नलिंग पर अपना शोध प्रस्तुत किया।
उन्होंने बताया कि यह रिसेप्टर बाह्य कैल्शियम (Ca2+) की संवेदनशीलता और एमिनो एसिड सांद्रता में परिवर्तन के प्रति प्रतिक्रिया देता है, जो ग्लूटाथियोन के उत्पादन और एंजाइमों द्वारा उसकी निकासी पर निर्भर करता है।
हेनरी फोर्ड अस्पताल, डेट्रॉइट, यूएसए के प्रो. सुधाकर डी. राव ने “ऑस्टियोपोरोसिस प्रबंधन की दुविधा” विषय पर चर्चा की। उन्होंने बताया कि हड्डी पुनर्निर्माण, कंकाल की संरचनात्मक अखंडता बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है इसके अलावा उन्होंने ऑस्टियोपोरोसिस के लिए नवीन दवाओं के विकास हेतु सुझाव भी दिए।
इंस्टीट्यूट ऑफ नैनो साइंस एंड टेक्नोलॉजी मोहाली की डॉ. दीपा घोष ने कार्टिलेज मैट्रिक्स क्षरण को रोकने की नवीन रणनीतियों पर चर्चा की। उनके दल ने उन आणविक लक्ष्यों की पहचान की है, जो कार्टिलेज के टूटने में शामिल हैं, जिससे नवीन उपचार विकसित किए जा सकें।
सत्र का पहला व्याख्यान ऑक्सफोर्ड ट्रांसलेशनल मायलोमा सेंटर (OTMC), यूके के प्रोफेसर अंजन ठाकुर्ता ने दिया, जिसमें उन्होंने “चिकित्सीय प्रतिरोध: मायलोमा में सेरेब्लोन टार्गेटिंग एजेंट्स” विषय पर चर्चा की। उनका व्याख्यान इम्यूनोमॉड्यूलेटरी दवाओं के प्रति प्रतिरोध के आनुवंशिक तंत्र पर केंद्रित था, जो मायलोमा थेरेपी का आधार है।
इसके बाद, इंस्टीट्यूट ऑफ मॉलिक्यूलर मेडिसिन, डेनमार्क के प्रोफेसर विजय तिवारी ने जीन रेगुलेटरी कोड को समझकर कैंसर मेटास्टेसिस पर अपने शोध को साझा किया।
मेटास्टेसिस, प्राथमिक ट्यूमर की उत्पत्ति की परवाह किए बिना, कैंसर से संबंधित मृत्यु दर का एक प्रमुख कारण बना हुआ है। उन्होंने प्रतिभागियों के साथ अपने निष्कर्ष साझा किए,
जिसमें उन्होंने सिंगल-सेल ट्रांसक्रिप्टोम विश्लेषण के माध्यम से विभिन्न प्रकार के कैंसर में मेटास्टेसिस के विभिन्न चरणों को नियंत्रित करने वाले मूल जीन नियामक कार्यक्रम की जांच की। कार्यक्रम मे आगे, औरिजीन ऑन्कोलॉजी लिमिटेड, बेंगलुरु के डॉ. मुरली रामचंद्र ने पैन-केआरएएस डिग्रेडर की खोज और विकास पर अपने हालिया शोध को साझा किया।
केआरएएस विभिन्न प्रकार के कैंसर में सबसे अधिक उत्परिवर्तित (म्यूटेटेड) ओंकोजीन में से एक है। अपनी स्वामित्व वाली संरचना-आधारित डायरेक्टेड नियो-सब्सट्रेट डिग्रेडर (DNsD) प्लेटफॉर्म का उपयोग करते हुए, उन्होंने कैंसर उपचार के लिए अत्यधिक वांछनीय विशेषताओं वाले एक विकासशील उम्मीदवार की पहचान की है।
सत्र के अंतिम चरण में, सीएसआईआर-सीडीआरआई, लखनऊ के डॉ. नीरज जैन ने बी सेल लिंफोमा में कीमोथेरेपी प्रतिरोध और इम्यून एस्केप सिग्नेचर पर प्रकाश डाला। उन्होंने लक्षित दवा खोज को सुविधाजनक बनाने के लिए कीमोथेरेपी प्रतिरोध सिग्नेचर और ओंकोजेनिक सिग्नलिंग मार्गों की पहचान की है।
दसवे सत्र में सीडीआरआई भूतपूर्व छात्रो ने अगली पीढ़ी को प्रोस्त्सहित किया
सीटीडीडीआर2025 के दसवे सत्र में सीडीआरआई के पूर्व छात्रों ने अपने हालिया शोध प्रस्तुत किए। आईआईटी गुवाहाटी की डॉ. स्वप्निल सिन्हा ने “नवाचार को क्रियान्वयन में बदलना: वैज्ञानिक विचारों को व्यावसायिक प्रभाव में परिवर्तित करने की प्रक्रिया” पर अपने विचार साझा किए।
डॉ. रेड्डीज लैबोरेट्रीज़, हैदराबाद के डॉ. राकेश्वर बंदीछोर ने ” प्लेरिक्साफोर के सिंथेटिक रणनीतियों के साथ साथ हेमटोपोएटिक स्टेम सेल मोबिलाइज़र” पर अपना नवीनतम शोध प्रस्तुत किया। आईआईएसईआर भोपाल की डॉ. डिम्पी कालिया ने “प्रोटीन बायोकंजुगेशन और बैक्टीरिया के सी-डीआई जीएमपी सिग्नलिंग की केमिकल बायोलॉजी” विषय पर चर्चा की।
वहीं, टैरोस केमिकल, जर्मनी के डॉ. अरुणेंद्र पाठक ने “सक्रिय फार्मास्युटिकल संघटकों (APIs) में नाइट्रोसामाइन अशुद्धियाँ और उनका नियामक परिदृश्य” पर अपने विचार प्रस्तुत किए। सभी पूर्व छात्रों ने अपने करियर निर्माण में सीएसआईआर-सीडीआरआई की भूमिका के लिए आभार व्यक्त किया।
#सीटीडीडीआर2025 का ग्यारहवां सत्र स्टार्ट-अप्स के लिए समर्पित
इस सत्र में, सेककेई बायो, चेन्नई के डॉ. अनिरुद्ध रंगनाथन ने मधुमेह के उपचार के लिए ओरल इंसुलिन के विकास और आवश्यकता पर चर्चा की। ओरल इंसुलिन मधुमेह अनुसंधान में एक लंबे समय से चली आ रही चुनौती रही है, जिसका समाधान दुनियाभर के लाखों मधुमेह रोगियों के लिए लाभकारी होगा।
उन्होंने एक नए प्रकार के इंसुलिन एनालॉग के विकास पर अपना शोध साझा किया, जो आंतों में जीवित रहने एवं प्रभावी रहने की क्षमता रखता है। इस उम्मीदवार दवा ने पशु परीक्षणों में उत्साहजनक परिणाम दिखाए हैं और इसके 2026 में क्लिनिकल परीक्षणों में प्रवेश करने की उम्मीद है।
इसके बाद, श्रावथि एआई टेक्नोलॉजी प्राइवेट लिमिटेड, बेंगलुरु के डॉ. दीपक अग्रवाल ने अपने हालिया शोध पर चर्चा की, जिसका विषय था “मॉलिक्युलर ग्लू-डिज़ाइन-इवैल्यूएटर (एमओएलडीई): इन-सिलिको मॉलिक्युलर ग्लू डिज़ाइन का एक उन्नत तरीका”।
यह मॉडल ड्रग डिज़ाइन के इन-सिलिको दृष्टिकोण में महत्वपूर्ण योगदान देगा। सत्र के आगे बढ़ने पर ज़ाइडस रिसर्च सेंटर, अहमदाबाद के डॉ. मुकुल जैन और एल्सेवियर के डॉ. मंदार बोडस ने अपनी वार्ताएँ प्रस्तुत कीं। डॉ. जैन ने “डेसिडुस्टैट” पर अपने हालिया शोध को साझा किया, जो एनीमिया के प्रबंधन में एक नया आयाम प्रस्तुत करता है। वहीं, डॉ. बोडस ने दवा खोज और विकास को आगे बढ़ाने के लिए एआई-संचालित डेटा समाधानों पर चर्चा की।
दिन के आखरी सत्र का समापन फ्लैश टॉक्स सत्र के साथ हुआ, जिसमें चयनित छात्रों और युवा संकाय सदस्यों ने अपने नवीनतम शोध निष्कर्ष साझा किए। इसके अलावा, पोस्टर सत्र में युवा शोधकर्ताओं द्वारा 180 से अधिक पोस्टर प्रदर्शित किए गए, जो उनके नवाचारपूर्ण अनुसंधान को उजागर करते हैं।
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