संगोष्ठी का दूसरा दिन औषधि प्रतिरोध, CAR-T सेल थेरेपी, परजीवी रोग, वायरल रोग एवं प्राकृतिक उत्पाद रसायन विज्ञान की दवा खोज में प्रगति और चुनौतियों पर केन्द्रित रहा।
आज, सीएसआईआर-केंद्रीय औषधि अनुसंधान संस्थान, लखनऊ में आयोजित “नवीनतम औषधि अनुसंधान प्रवृत्तियों पर अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी (CTDDR-2025)” के दूसरे दिन प्रख्यात वैज्ञानिकों द्वारा महत्वपूर्ण वैज्ञानिक चर्चाएँ की गईं। शोधकर्ताओं एवं छात्रों ने अपने कार्यों को आकर्षक पोस्टरों के माध्यम से प्रस्तुत करते हुए अपने ज्ञान का आदान-प्रदान किया।
ग्राम-नेगेटिव बैक्टीरिया के पैन-औषधि-प्रतिरोधी आइसोलेट्स जीवन के लिए जोखिम : सचिन एस. भागवत
संगोष्ठी के दूसरे दिन, वैज्ञानिक सत्र में हाल ही में स्वीकृत दवा β-लैक्टम + β-लैक्टम एन्हांसर संयोजन WCK 5222 की खोज पर वॉकहार्ट रिसर्च सेंटर, औरंगाबाद, भारत के डॉ. सचिन एस. भागवत ने व्याख्यान दिया।
उन्होंने बताया आधुनिक चिकित्सा में एंटीबायोटिक्स की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है एंटिमाइक्रोबियल रेजीस्टेंट (AMR) के कारण मौजूदा एंटीबायोटिक्स तेजी से अप्रभावी हो रहे हैं
साथ ही मल्टी-ड्रग रेजीस्टेंट (MDR), एक्सटेंडेड-ड्रग रेजीस्टेंट (XDR) और पैन-ड्रग रेजीस्टेंट (PDR) ग्राम-नेगेटिव बैक्टीरिया, विशेष रूप से कार्बापेनेम प्रतिरोधी स्ट्रेन्स, आज की प्रमुख चिकित्सा चुनौतियों में से एक हैं।
ये संक्रमण प्रति वर्ष लगभग 8.85 लाख मौतों के लिए जिम्मेदार हैं, जबकि 9.6 लाख अतिरिक्त मौतें सेप्सिस से जुड़ी होती हैं। आईसीएमआर के आंकड़ों के अनुसार, भारत में कार्बापेनेम की प्रतिरोध दर एसीनेटोबेक्टर में 90%, पी ऐरिजिनोसा में 45%, और क्लेबसिएला में 69% है जो की उच्च स्तर पर है।
इस कारण, डॉक्टरों को कम प्रभावी या असुरक्षित दवा संयोजनों का उपयोग करना पड़ रहा है। उन्होंने बताया कि उनकी टीम ने β-लैक्टम एन्हांसर ज़ाइडेबैक्टम विकसित किया है, जिसे सेफेपाइम (WCK 5222) के साथ संयोजित किया गया और इसने 35,000 वैश्विक पैन-ड्रग प्रतिरोधी ग्राम-नेगेटिव स्ट्रेन्स के खिलाफ उच्च प्रभावशीलता प्रदर्शित की।
प्रारम्भिक स्तर पर अभी यह संयोजन 45 से अधिक मरीजों की जान बचाने में मदद कर चुका है और गंभीर कार्बापेनेम-प्रतिरोधी संक्रमणों में सफल परीक्षण पूरे कर चुका है। यह खोज गंभीर बैक्टीरियल संक्रमणों के उपचार में नए युग की शुरुआत कर सकती है।
*CAR-T सेल थेरेपी: कैंसर के इलाज की नई राह होगा: प्रो. राहुल पुरवार*
आईआईटी बॉम्बे के प्रो. राहुल पुरवार ने भारत में विकसित पहली CAR-T सेल थेरेपी की यात्रा साझा की, जो कैंसर उपचार में क्रांतिकारी बदलाव ला सकती है। उन्होंने बताया कि कैंसर एक वैश्विक स्वास्थ्य संकट बना हुआ है, एवं भारत में दूसरा सबसे बड़ा मृत्यु दर का कारण है।
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CAR-T सेल थेरेपी एक प्रभावी लेकिन अत्यधिक महंगी तकनीक (5 लाख अमेरिकी डॉलर प्रति मरीज) है, जो भारत में उपलब्ध नहीं थी।
उनकी टीम ने सुरक्षित एवं किफायती CAR-T तकनीक विकसित किया, जिसका फेज I और फेज II क्लिनिकल ट्रायल सफलतापूर्वक किया गया। इसके बाद, CD19 CAR-T थेरेपी को अक्टूबर 2023 में CDSCO द्वारा व्यावसायिक उपयोग के लिए मंजूरी दी गई। आज, भारत में 300 से अधिक मरीज इस उपचार से लाभान्वित हो चुके हैं।
HACK-सूचकांक: अगली पीढ़ी के प्रोबायोटिक्स का चयन: डॉ. तारिणी शंकर घोष
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इंद्रप्रस्थ सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान, दिल्ली के डॉ. तारिणी शंकर घोष ने आंत्र (गट) माइक्रोबायोम के स्वास्थ्य-संबंधी प्रमुख घटकों (HACK- Health-Associated Core-Keystones) की पहचान करने के प्रयासों को साझा किया।
उन्होंने 127 वैश्विक अध्ययनों के डेटा का विश्लेषण कर 196 टैक्सा की पहचान की, जो मानव स्वास्थ्य और गट माइक्रोबायोम की स्थिरता को प्रभावित करते हैं।
इस अध्ययन के आधार पर HACK-इंडेक्स विकसित किया गया, जिससे नए प्रोबायोटिक्स और चिकित्सीय उत्पादों की पहचान करने में मदद मिलेगी। यह तकनीक पाचन स्वास्थ्य सुधारने और रोगों की रोकथाम में मददगार हो सकती है।
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यूनिवर्सिटी ऑफ जिनेवा, स्विट्ज़रलैंड की प्रो. डोमिनिक सोल्डाटी-फेवरे ने अपने व्याख्यान में टॉक्सोप्लाज्मा गोंडाई माइटोराइबोसोम पर अपनी शोध साझा की। उन्होंने बताया कि एपिकॉम्प्लेक्सन परजीवी गंभीर मानव रोगों जैसे मलेरिया, टॉक्सोप्लाज़मोसिस और बेबेसियोसिस के लिए जिम्मेदार होते हैं।
इन परजीवियों का माइटोकॉन्ड्रियल जीनोम छोटा होता है, लेकिन इसमें खंडित माइटोराइबोसोमल आरएनए मौजूद होते हैं, जिससे माइटोराइबोसोम असेंबली की प्रक्रिया को समझना चुनौतीपूर्ण बन जाता है। उनकी टीम ने एपिकोप्लास्ट-रहित टी गोंडाई परजीवियों का उपयोग करते हुए ऐसी दवाओं की पहचान की जो विशेष रूप से माइटोकॉन्ड्रियल ट्रांसलेशन को प्रभावित करती हैं। यह दृष्टिकोण नई चिकित्सा विकसित करने की रोमांचक संभावनाएँ प्रदान करता है।
संक्रामक रोगों के लिए होस्ट-डायरेक्टेड थेरेपी: नई उपचार प्रक्रिया : प्रो. क्रिश्चियन ड्योरिग
रॉयल मेलबर्न इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी यूनिवर्सिटी, ऑस्ट्रेलिया के प्रो. क्रिश्चियन डोरिग ने होस्ट-डायरेक्टेड थेरेपी पर अपना व्याख्यान दिया। उन्होंने बताया कि यह चिकित्सा पद्धति नए उपचार लक्ष्य प्रदान करती है, जो मौजूदा एंटीमाइक्रोबियल दवाओं के प्रति क्रॉस-रेसिस्टेंस को सीमित करती है और डि-नोवो रेजीस्टेंस (नव विकसित प्रतिरोध) को कम करने में सहायक हो सकती है।
उन्होंने बताया कि मानव सिग्नलिंग प्रोटीन के विरुद्ध विकसित एंटीबॉडी माइक्रोएरे का उपयोग करके, उनकी टीम ने संभावित एंटीवायरल लक्ष्य और प्रमुख यौगिकों की पहचान की।
इसके अलावा, उन्होंने बताया कि प्लाज्मोडियम फाल्सीपेरम संक्रमण के दौरान सक्रिय होने वाले कुछ एरिथ्रोसाइटिक काइनेज़ की पहचान की गई है। यह तकनीक इन काइनेज़ को लक्ष्य करने वाले अवरोधक परजीवियों की वृद्धि को रोकने में बेहद प्रभावी साबित हुए हैं
विसरल लीशमैनियासिस प्रबंधन में सिंगल-डोज़ LAmB प्रभावी : प्रो. श्याम सुंदर*
बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी के प्रो. श्याम सुंदर ने विसरल लीशमैनियासिस (वीएल) महामारी की यात्रा, इसके उद्गम से लेकर भारत में इसके उन्मूलन तक की कहानी साझा की।
उन्होंने (वीएल) के उपचार में सिंगल-डोज़ लिपोसोमल एंफोटेरिसिन-बी (LAmB) को एक गेम चेंजर बताया, जिसने भारत में इस बीमारी के प्रबंधन में क्रांतिकारी बदलाव किया है। प्रो. सुंदर ने यह भी जोर दिया कि विसरल लीशमैनियासिस उन्मूलन का लक्ष्य 2025 तक बनाए रखना आवश्यक है, ताकि डबल्यूएचओ प्रमाणन प्राप्त किया जा सके।
DNDi-6510: ओरल SARS-CoV2 एंटीवायरल की खोज : डॉ. पीटर जो*
आज के चौथे सत्र में ड्रग्स फॉर नेगलेक्टेड डिजीजेस इनिशिएटिव (DNDi), स्विट्ज़रलैंड के डॉ. पीटर सोज़ ने विस्तृत स्पेक्ट्रम वाले मौखिक एंटीवायरल दवाओं की आवश्यकता पर प्रकाश डाला।
उन्होंने “कोविड मूनशॉट” (COVID Moonshot) परियोजना के परिणाम साझा किए, जो एक पूर्णत: ओपन-साइंस, क्राउड-सोर्स्ड और संरचना-आधारित ड्रग खोज अभियान था, जिसका लक्ष्य SARS-CoV-2 के मेन प्रोटीएज़ को टारगेट करना था।
त्वरित उपचार विकल्प के लिए नए एंटीवायरल विकसित करना आवश्यक : प्रो. सुधांशु व्रति
रीजनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी (RCB), फरीदाबाद के प्रो. सुधांशु व्रति ने गंभीर वायरल संक्रमणों के लिए तत्काल उपचारात्मक समाधान प्रदान करने हेतु नई एंटीवायरल दवाओं की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने बताया कि नए वायरल पैथोजेन्स लगातार उभर रहे हैं और निकट भविष्य में महामारियों का गंभीर खतरा उत्पन्न कर सकते हैं।
उन्होंने एंटीवायरल विकास के विज्ञान की पृष्ठभूमि को समझाते हुए, चिकनगुनिया वायरस के खिलाफ विकसित की गई एक नई एंटीवायरल दवा का उदाहरण प्रस्तुत किया, जिसे उनकी प्रयोगशाला में विकसित किया गया है।
डेंगू ज़िका एवं चिकनगुनिया के लिए नए रैपिड एंटीजन टेस्ट का विकास : प्रो. गौरव बत्रा*
ट्रांसलेशनल हेल्थ साइंस एंड टेक्नोलॉजी इंस्टीट्यूट (THSTI), फरीदाबाद के प्रो. गौरव बत्रा ने डेंगू, ज़िका एवं चिकनगुनिया जैसी आर्बोवायरल (Arboviral) संक्रमणों के निदान पर अपने नवीन निष्कर्ष प्रस्तुत किए। उन्होंने एलाइजा और त्वरित एनएस1 परीक्षणों (Rapid NS1 tests) के विकास से संबंधित डेटा साझा किया, जो उच्च संवेदनशीलता और सेरोटाइप-परिणाम प्रदान करते हैं।
विशेष रूप से, डेंगू वायरस के माध्यमिक संक्रमणों के बेहतर पता लगाने में इन परीक्षणों ने उल्लेखनीय सुधार दिखाया है। ये उन्नत नैदानिक विधियां, नैदानिक परीक्षणों की रूपरेखा, रोगी चयन एवं उपचार मूल्यांकन में सुधार कर सकती हैं, जिससे बेहतर चिकित्सीय रणनीतियाँ और सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रतिक्रियाएँ संभव हो सकेंगी।
*#CTDDR2025 का पाँचवाँ समांतर सत्र नवीन दवाओं के लिए प्राकृतिक उत्पाद रसायन पर केंद्रित थ
*प्रो. इंदर पाल सिंह* ने सीबकथॉर्न पौधों (हिप्पोफी रेम्नोइड्स) से घाव भरने एवं सूजन-रोधी फार्मूलेशन के विकास पर अपने शोध को साझा किया। उन्होंने एक लागत प्रभावी पौधों के अर्क निष्कर्षण विधि विकसित की, जिससे सीबकथॉर्न फल तेल (IPHRFH) को अलग किया गया, जिसने घाव भरने में प्रभावी प्रक्रिया दिखाई। इसे क्रीम और जेल फॉर्मूलेशन में विकसित किया गया है।
*डॉ. चंद्र कांत कटियार* ने “औषधीय पौधों से नवीन औषधि अनुसंधान: समस्याएँ, चुनौतियाँ” विषय पर अपने विचार साझा किए। उन्होंने फॉरवर्ड फार्माकोलॉजी (जहाँ यौगिकों की जैविक गतिविधि के लिए स्क्रीनिंग की जाती है) एवं रिवर्स फार्माकोलॉजी (जो पारंपरिक ज्ञान पर आधारित होती है) के दृष्टिकोण को समझाया।
इसके अलावा, उन्होंने एनएमआर एवं मास स्पेक्ट्रोमेट्री जैसी उन्नत विश्लेषणात्मक तकनीकों, बायोएक्टिविटी-गाइडेड विभाजन, जीनोम माइनिंग, मल्टी-ओमिक्स विश्लेषण और नेटवर्क फार्माकोलॉजी पर चर्चा की, जिससे प्राकृतिक उत्पाद अनुसंधान में क्रांति आई है।
उन्होंने जोर दिया कि पारंपरिक ज्ञान को तकनीकी नवाचारों और नियामक मानकों के साथ जोड़कर, औषधीय पौधे वैश्विक स्तर पर अधूरे चिकित्सा जरूरतों को पूरा करने में योगदान कर सकते हैं।
*डॉ. आशुतोष पांडे*, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ प्लांट जीनोम रिसर्च (एनआईपीजीआर), नई दिल्ली से, ने “स्वास्थ्य-लाभकारी प्राकृतिक उत्पादों के मूल्यवर्धन के लिए फसलों का जैव-अभियांत्रिकीकरण: मौलिकता से अनुप्रयोगों तक” विषय पर अपना व्याख्यान प्रस्तुत किया।
उन्होंने बताया कि पौधों के मेटाबोलाइट्स (चयापचय उत्पाद) किस प्रकार कोशिकीय सिग्नलिंग मार्गों के साथ परस्पर क्रिया करते हैं, उन्हें नियंत्रित करते हैं और जीन अभिव्यक्ति को संशोधित करते हैं। इसके अलावा, उन्होंने ट्रांसक्रिप्शनल फैक्टर्स की विनियामक भूमिकाओं और उनके परस्पर प्रभावों पर चर्चा की, जो कृषि संबंधी महत्वपूर्ण फसलों जैसे चना और केला में फ्लेवोनॉइड बायोसिंथेसिस को बेहतर बनाने में मदद कर सकते हैं।
इस ज्ञान का आनुवंशिक संशोधन के लिए उपयोग किया जा सकता है, जिससे फसलों के पोषण मूल्य को बढ़ाया जा सके। *फ्लैश टॉक्स और पोस्टर सत्र में युवा शोधकर्ताओं ने अपनी नवीन खोजें प्रस्तुत कीं।*
फ्लैश टॉक सत्र में, औषधि विकास से संबंधित विभिन्न वैज्ञानिक क्षेत्रों के चयनित छात्र और युवा वैज्ञानिकों ने अपनी नवीन खोजें प्रस्तुत कीं। साथ ही, आज के पोस्टर सत्र में, युवा शोधकर्ताओं द्वारा अपने शोध पर आधारित 180 से अधिक पोस्टर प्रस्तुत किए गए।