भारतीय नौसेना के लिए 26 राफेल मरीन फाइटर जेट खरीदने की मंजूरी पीएम मोदी की अध्यक्षता वाली कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी ने दी है। ये अत्याधुनिक युद्धक विमान देश के पहले स्वदेशी विमानवाहक पोत INS विक्रांत पर तैनात होंगे। इस बड़े रक्षा सौदे पर जल्द ही हस्ताक्षर होने की उम्मीद है।
राफेल मरीन एक ट्विन-इंजन, डेक-बेस्ड फाइटर जेट है जिसे समुद्री अभियानों के लिए विशेष रूप से डिजाइन किया गया है। फ्रांस की नौसेना इसका उपयोगअपने विमानवाहक पोत ‘चार्ल्स डी गॉल’ पर कर रही है। जुलाई 2023 में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की अध्यक्षता में हुई डिफेंस एक्विजीशन काउंसिल की बैठक में नौसेना के इस प्रस्ताव को मंजूरी मिली थी।
रक्षा सौदा के तहत हथियार प्रणाली, सिम्युलेटर, स्पेयर पार्ट्स, अन्य जरूरी उपकरण, क्रू ट्रेनिंग और लॉजिस्टिक सपोर्ट भी है, जो फ्रांस सरकार से मिलेगा। राफेल मरीन जेट की खरीद को भारतीय नौसेना की तत्काल जरूरतों को पूरा करने के लिए एक अंतरिम व्यवस्था माना जा रहा है।
जब तक भारत अपना खुद का ट्विन-इंजन डेक-बेस्ड फाइटर विकसित नहीं कर लेता, तब तक यह विमान महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। राफेल M में विमानवाहक संचालन के लिए असाधारण रूप से मजबूत एयरफ्रेम और अंडरकैरिज है।
राफेल मरीन का एयरफ्रेम और लैंडिंग गियर काफी मजबूत हैं, ताकि वह विमानवाहक पोत से टेकऑफ और लैंडिंग की कठिन परिस्थितियों को सह सके। इसमें करप्शन-प्रतिरोधी मिश्रधातुएं और कंपोजिट मटीरियल्स का इस्तेमाल किया गया है, जिससे यह ट्रॉपिकल जलवायु में भी बेहतरीन प्रदर्शन करता है।
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INS विक्रांत को कोचीन शिपयार्ड में 20,000 करोड़ रुपये की लागत से बनाया गया है। यह एक “शॉर्ट टेक ऑफ बट अरेस्टेड रिकवरी” (STOBAR) आधारित एयरक्राफ्ट कैरियर है। इसमें फाइटर जेट्स स्की-जंप की मदद से टेकऑफ करते हैं और अरेस्टर वायर के जरिए लैंड करते हैं।
राफेल मरीन इस प्रणाली के अनुरूप पूरी तरह फिट बैठता है। भारतीय वायुसेना पहले ही फ्रांस से खरीदे गए 36 राफेल जेट्स का संचालन कर रही है, जिसकी लागत 59,000 करोड़ रुपये थी। नौसेना के लिए राफेल मरीन की खरीद से ट्रेनिंग, रखरखाव और लॉजिस्टिक्स के मामले में समरूपता मिलेगी, जिससे संचालन आसान और अधिक प्रभावी होगा।