लखनऊ। भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान (आईआईएसआर), लखनऊ में “चीनी और एकीकृत उद्योगों की स्थिरता: मुद्दे और पहल” विषय पर चार दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन -शुगरकॉन 2022 के दूसरे दिन सोमवार को देश-विदेश के 52 वैज्ञानिकों ने विभिन्न विषयों पर मौखिक रूप से शोध पत्र प्रस्तुत किए।
गन्ना प्रजनन संस्थान, कोयंबटूर की निदेशक डॉ.जी हेमप्रभा ने मूल बीज उत्पादन द्वारा बीजगन्ना की एक हेक्टेयर में 6 से 8 टन मात्रा को मात्र 30 ग्राम तक कम करके बीजगन्ना पर होने वाले भारी खर्च को कम करके किसानों के आय में वृद्धि होने की तकनीक की संभावना पर प्रकाश डाला।
अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन के दूसरे दिन गन्ना शोध पर गहन विचार विमर्श
इसके अलावा डॉ. नीमल कुमारसिंघे (निदेशक, एसआरई, श्रीलंका) ने श्रीलंका में कृषि विकास हेतु गन्ना उद्योग के लिए रणनीतिगत विकल्प प्रस्तुत किए। गन्ना प्रजनन संस्थान, कोयंबटूर के डॉ. आर. विश्वनाथन ने गन्ने की फसल में उभर रहे नए रोगों तथा उनके प्रबंधन पर विस्तार से चर्चा की।
इसी संस्थान की डॉ.पी मालती ने गन्ना के लाल सड़न रोग के प्रबंधन के लिए समेकित तकनीक अपनाने का सुझाव दिया।
भारतीय चारा एवं चारागाह अनुसंधान संस्थान, झांसी के निदेशक, डॉ. अमरेश चंद्रा ने किसानों को गन्ना के अगोला को हरे चारे के रूप में प्रयोग करके पशुओं के दुग्ध उत्पादन को बढ़ाकर आय में भारी वृद्धि करने की सलाह दी।
सम्मेलन के आयोजक सचिव डॉ. एके साह ने बताया कि दक्षिण एशिया में किसानों को गन्ने के विभिन्न बेधक कीटों को फेरोमोन ट्रैप द्वारा प्रबंधन करना चाहिए। भारत के उपोष्ण क्षेत्र में गन्ना में सिंचाई प्रबंधन के लिए भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान द्वारा विकसित मोबाइल एप “इक्षु केदार” का प्रयोग करके जल की बड़ी मात्रा में बचत करने की जा सकती है।
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गन्ने के चोटी बेधक, पोरी बेधक तथा प्ररोह बेधक कीटों पर नाइट्रोजन, पोटाश व फास्फोरस के प्रयोग करने पर कीटों का अधिक प्रकोप तथा गोबर की खाद के प्रयोग से कम प्रकोप होता है। चुकंदर की सूखा सहनशील क़िस्मों का चयन करके सूखा प्रभावित अथवा जल की कमी की दशाओं में चुकंदर की खेती करके अधिक आर्थिक लाभ कमाया जा सकता है।
गन्ने की पत्तियों को प्रायः किसानों द्वारा जलाकर नष्ट करने से पर्यावरणीय प्रदूषण होता है। अतः गन्ने की सूखी पत्तियों को बगैर जलाए भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान द्वारा विकसित मशीन द्वारा इसका उचित प्रबंधन किया जा सकता है।
समेकित पद्धति अपनाकर गन्ने में जल उत्पादकता में वृद्धि की जा सकती है।
अपराहन में लगभग 40 वैज्ञानिकों ने पोस्टर के माध्यम से गन्ने एवं अन्य शर्करा फसलों पर अपनी शोध उपलब्धियों पर प्रकाश डाला। आज प्रदर्शनी में राज्य सभा सांसद अशोक बाजपेई ने भी भ्रमण किया।
सम्मेलन में प्रस्तुत विभिन्न शोध पत्रों में निम्नलिखित संस्तुतियाँ
उपोष्ण भारत में शरदकालीन गन्ना आधारित समेकित फसल प्रणाली में गन्ना + सब्जी (लहसुन, मेंथी, धनिया, टमाटर, फूलगोभी, पालक। गाजर, बांकला, प्याज, बैंगन, हरी मिर्च, पत्ता गोभी, मटर, सोया, सौंफ, लौकी, भिंडी, लोबिया, खीरा, मक्का) तथा करोंदा, पपीता व केला व पिछवाड़े में मुर्गी पालन + मछली पालन – वर्मिकम्पोस्ट उत्पादन+ मधुमक्खी पालन + मशरूम उत्पादन तथा बसंतकालीन गन्ना आधारित समेकित फसल प्रणाली में गन्ना + सब्जी (लौकी, तरोई, टमाटर, बैंगन, कददों, प्याज, मक्का, मेंथी, ब्रोकली) तथा औध्यनिक फसलों में करोंदा, पपीता व केला व पिछवाड़े में मुर्गी पालन + मछली पालन – वर्मीकम्पोस्ट उत्पादन+ मधुमक्खी पालन + मशरूम उत्पादन द्वारा एकल गन्ने की तुलना में दो लाख रुपए से अधिक की अतिरिक्त आय अर्जित की जा सकती है।