उत्तर प्रदेश में इस दीवाली बंदियों द्वारा निर्मित वस्तुओं से बिखेरिए रोशनी

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उत्तर प्रदेश की विभिन्न जेलों में इस वर्ष दिवाली का उत्सव खास रहेगा, जहां बंदियों द्वारा निर्मित पारंपरिक और हस्तशिल्प वस्तुओं का उपयोग कर दीपोत्सव मनाया जाएगा। जिला जेल उन्नाव, आगरा, मथुरा और बाराबंकी में बंदियों ने गाय के गोबर से निर्मित दियों का निर्माण किया है, जिससे पर्यावरण अनुकूल दीयों का उपयोग सुनिश्चित होगा।

गाज़ियाबाद में मिट्टी व बिजली के दीये, कैंडल और झालर कारागार उपयोग व उपहार हेतु बनाये जा रहे हैं। वहीं अलीगढ़ जेल में महिल बंदियों द्वारा मिट्टी के दीयों पर नक़्क़ाशी की गई है।

गोरखपुर में टेराकोटा दिये बनाये जा रहे हैं। इन जेलों में इन दीयों को जेल परिसर में दीप जलाने के लिए एवं कारागार गेट के पास स्‍टॉल लगवाकर मुलाकातियों व आमजन को बिक्री हेतु उपलब्‍ध कराये जायेंगे।

जिला कारागार अयोध्‍या में बंदियों द्वारा निर्मित लगभग 10,000 दीपक आसपास स्थित मंदिरों में भेंट किये जायेंगे।
हरदोई जिला जेल में बंदियों द्वारा लगभग 11,000 कुल्हड़ और गुल्लक तैयार किए जा रहे हैं, जो इस उत्सव को और भी खास बनाएंगे।

इसी प्रकार, जिला जेल रायबरेली में मिट्टी से बने दीये, गणेश-लक्ष्मी की मूर्तियाँ और गमले जैसे मिट्टी कला के उत्पाद तैयार किए गए हैं। यह उत्पाद “एक जेल, एक उत्पाद” योजना के अंतर्गत बनाए जा रहे हैं, जो जेल के विक्रय केन्‍द्र पर प्रदर्शिनी के माध्‍यम से विक्रय की जायेंगी।

फतेहगढ़ जेल में मोमबत्तियाँ और डिजाइनर दीयों का निर्माण किया गया है, जो जेल स्‍तर से बंदी उत्‍पाद केन्‍द्र से विक्रय किये जायेंगे। मथुरा जेल में बंदियों द्वारा मोमबत्‍ती व गाय के गोबर के दीपक बनाये जा रहे हैं। जिला जेल कानपुर नगर में देवी-देवताओं के आसन और पूजा की चुनरी का निर्माण जॉबवर्क पर किया जा रहा है, जो दीपावली की पूजा के लिए विशेष रूप से तैयार किए गए हैं।

इसके अतिरिक्त, देवरिया जिला जेल में कौशल विकास मिशन के अर्न्‍तगत इलेक्‍ट्रॉनिक्‍स में प्रशिक्षण प्राप्‍त बंदियों द्वारा इलेक्ट्रिक झालरों का निर्माण किया गया है, जिनसे जेल परिसर को सजाया जाएगा। कन्नौज में अबतक 960 इलेक्ट्रिक झालरें बनायी जा चुकी हैं जो बाजार में खूब पसंद की जा रही हैं, मोमबत्‍ती आरै दीयों को स्‍थानीय बाजार में बिक्री हेतु तैयार किया जा रहे हैं।

इस पहल का उद्देश्य न केवल बंदियों की रचनात्मकता को बढ़ावा देना है, बल्कि उनके पुनर्वास और समाज से जुड़ने के लिए सकारात्मक दिशा में प्रेरित करना है। दिवाली के इस अवसर पर बंदियों द्वारा तैयार की गई वस्तुएं न केवल जेलों में बल्कि बाहर भी सराही जा रही हैं।

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