एपिजेनेटिक मॉड्यूलेटर्स से दूर होंगे सायनैप्स, मेमोरी, व्यवहार संबंधी दोष : प्रो. कुंडू

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लखनऊ। मस्तिष्क के सामान्य विकास के लिए कई अन्तर्ग्रथनी (सायनैप्टिक) प्रोटीनों का समन्वित रूप से कार्य करना आवश्यक है। इन सायनैप्टिक प्रोटीनों के लिए जिम्मेदार इन एन्कोडिंग जीनों में उत्परिवर्तन, मस्तिष्क के विकास को बाधित करता है।

#CTDDR2022 : दूसरा दिन

ये बात 8वीं ड्रग डिस्कवरी रिसर्च में वर्तमान रुझानों पर अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी” के दूसरे दिन प्रो.तपस कुमार कुंडू (प्रोफेसर, जेएनसीएएसआर, बेंगलुरु एवं पूर्व निदेशक, सीडीआरआई) ने बौद्धिक विकलांगता/ ऑटिज्म को लक्षित करने के लिए एपिजेनेटिक मॉड्यूलेटर्स पर व्याख्यान में कही।

बौद्धिक विकलांगता (आईडी) / ऑटिज्म के उपचार में हो सकते है सहायक

उन्होंने इसके साथ ये भी बताया कि मानसिक मंदता, बौद्धिक अक्षमता (आईडी) या ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर (एएसडी) एवं अन्य न्यूरोडेवलपमेंटल रोगों का कारण बनता है। बौद्धिक अक्षमता (आईडी) के निदान की ओर ध्यान देने की दरकार है क्योंकि वैश्विक आबादी का लगभग 1-3% (लगभग 200 मिलियन लोग) इससे पीड़ित हैं।

जरण एवं तंत्रिकाक्षरण (एजिंग एंड न्यूरोडीजेनेरेशन), कैंसर, अस्थि स्वास्थ्य और रोगों पर केंद्रित

बौद्धिक अक्षमता एक ऐसा शब्द है जिसका उपयोग तब किया जाता है जब किसी व्यक्ति की अपेक्षित स्तर पर सीखने और दैनिक जीवन में कार्य करने की क्षमता में कमी हो जाती है। बच्चों में बौद्धिक अक्षमता के स्तर बहुत भिन्न होते हैं। आईडी/ ऑटिज्म वाले बच्चों को दूसरों को उनकी इच्छाओं और जरूरतों के बारे में बताने और खुद की देखभाल करने में मुश्किल हो सकती है।

बौद्धिक अक्षमता की शुरुआत जन्म से पहले एवं 18 वर्ष तक कभी भी 

बौद्धिक अक्षमता की शुरुआत उसके जन्म से पहले एवं 18 वर्ष की उम्र तक कभी भी हो सकती है। यह चोट, बीमारी या मस्तिष्क में किसी समस्या के कारण हो सकता है।

उन्होंने आगे बताया कि, कुछ अध्ययनों से पता चलता है कि आनुवंशिक उत्परिवर्तन को ठीक किए बिना, एपिजेनेटिक स्थिति को संशोधित करके रोग के लक्षणों को काफी हद तक कम किया जा सकता है।

उन्होंने अपने नवीन शोध को साझा किया और बताया कि एपिजेनेटिक मॉड्यूलेटर चूहों के मॉडल में सायनैप्स, मेमोरी और व्यवहार संबंधी दोषों को दूर कर सकता है। प्रोफ कुंडु, बौद्धिक अक्षमता/ ऑटिज्म से पीड़ित रोगियों के लिए संभावित चिकित्सीय दवा के विकास पर कार्य कर रहे हैं।

सीखने एवं स्मृति में लंबे गैर-कोडिंग आरएनए की महत्वपूर्ण भूमिका : डॉ. सौरव बनर्जी

नेशनल ब्रेन रिसर्च सेंटर, हरियाणा के डॉ. सौरव बनर्जी ने एनकोडिंग द नॉनकोड: लॉन्ग नॉन-कोडिंग आरएनए इन द सायनैप्स एंड देयर इम्प्लीकेशंस इन मेमोरी पर अपने हालिया अनुसंधान निष्कर्षों को साझा किया। लंबे गैर-कोडिंग आरएनए (एलएनसीआरएनए) आरएनए का एक ऐसा प्रकार है, जो प्रोटीन के रूप में अनुवादित नहीं होता है ।

उन्होंने अपने शोध को साझा किया कि कैसे एलएनसीआरएनए (lncRNA), सीखने और स्मृति और नींद की कमी सहित विभिन्न संज्ञानात्मक (कौग्निटिव) कार्यों के नियामक के रूप में कार्य करता है।

जेमिन5 प्रोटीन से होती है सामान्य कार्यों में बाधा : प्रो. उदय पांडे

पिट्सबर्ग मेडिकल सेंटर विश्वविद्यालय, यूएसए के प्रोफ. उदय पांडे, एसोसिएट ने 32 अलग अलग न्यूरोडेवलपमेंटल रोगी परिवारों में जेमिन5 जीन के नवीन वेरिएंट की पहचान के लिए अपने हालिया शोध के बारे में बताया कि जेमिन5 के ये दोषपूर्ण रूप सामान्य कार्यों में बाधा डालते हैं।

इनके परिणामस्वरूप न्यूरोडेवलपमेंटल डिले (तंत्रिकीय विकास में विलंब) और अटेक्सिया (गतिभंग या शारीरिक गति पर नियंत्रण न रहना ) होता है।

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उन्होने आगे बताया कि ये निष्कर्ष सामूहिक रूप से इस बात का सबूत देते हैं कि जेमिन5 प्रोटीन में होने वाले पेथोलोजिकल रूपांतरण, फिजिओलोजिकल फंक्शन्स (शारीरिकीय कार्यों) को नुकसान पहुंचाते हैं जो न्यूरोडेवलपमेंटल सिंड्रोम के रूप में परिणीत हो जाता है।

यंग इन्वेस्टिगेटर्स: द राइजिंग स्टार्स ने साझा किए ये नवीन शोध निष्कर्ष

संगोष्ठी के छठवें सत्र में, यंग इन्वेस्टिगेटर्स, द राइजिंग स्टार्स ने अपने नवीन शोध निष्कर्ष साझा किए, आईआईएसईआर कोलकाता के डॉ दिब्येंदु दास ने सिस्टम्स केमिस्ट्री के बारे में जानकारी दी और बताया कि कैसे रसायन विज्ञान के माध्यम से विकास में जटिलता उभरती है?

आईआईएससी, बेंगलुरू के डॉ. जयंत चटर्जी ने बताया कि कैसे एक प्रोटिओमिमेटिक, स्पाइक प्रोटीन के साथ युग्मन (डायमराइज़) करके सार्स-कोव2 (SARS-Cov-2) संक्रमण को रोकता है। आईआईटी (बीएचयू), वाराणसी के डॉ विनोद तिवारी ने म्यू-डेल्टा ओपियोइड रिसेप्टर हेटेरोडिमर्स पर अपना शोध प्रस्तुत किया जो न्यूरोपैथिक दर्द के इलाज के लिए एक नवीन एवं संभावित लक्ष्य है।

7वां सत्र कैंसर एवं थेरेप्युटिक्स में हालिया प्रगति को समर्पित

डॉ. मुरली रामचंद्र, सीईओ, ऑरिजीन डिस्कवरी टेक्नोलॉजीज लिमिटेड, बेंगलुरु, डॉ रेड्डीज लैब की एक सहायक कंपनी है, ने “कैंसर के लिए टार्गेटेड (लक्षित) स्माल मोलिक्युल थेरेप्युटिक्स (लघु योगिक चिकित्सा विज्ञान) की खोज और विकास” पर व्याख्यान में कैंसर के उपचार हेतु नवीन थेरेप्युटिक्स के रूप में नए लक्षित छोटे यौगिकों के विकास पर जोर दिया।

मेडिकल यूनिवर्सिटी ऑफ साउथ कैरोलिना, यूएसए के प्रो. शिखर मेहरोत्रा ने माइटोकॉन्ड्रियल फ़ंक्शन को संशोधित करने वाले ऑटोफैगी पाथवे के ईआर स्ट्रेस-मध्यस्थता सक्रियण पर  शोध पर बताया कि किस तरह से टी-सेल्स को एपिजेनेटिक रूप से रीप्रोग्रामिंग करके बेहतर एंटी-ट्यूमर फेनोटाइप के रूप में परिवर्तित किया जा सकता है।

सीएसआईआर-सीडीआरआई, लखनऊ के डॉ. दीपक दत्ता, ने एपिजेनेटिक मॉड्यूलेटर EZH2 पर एक व्याख्यान दिया, जो ट्रिपल नेगेटिव ब्रेस्ट कैंसर (TNBC) के मेटास्टेटिक परिदृश्य को बदल सकता है। उन्होंने आगे कहा कि ट्रिपल नेगेटिव ब्रेस्ट कैंसर को इसके लिए लक्षित चिकित्सा की अनुपलब्धता के वजह से सभी स्तन कैंसर के प्रकारों में सबसे खराब नैदानिक परिणाम के लिए जाना जाता है।

8वें सत्र में अस्थि स्वास्थ्य और सबंधित रोगों पर चर्चा

इकान स्कूल ऑफ मेडिसिन माउंट सिनाई, यूएसए के डॉ. मोने जैदी ने एक आम समस्या का समाधान हेतु सभी का ध्यान आकर्षित किया कि क्या हम एक ही दवा से ऑस्टियोपोरोसिस, मोटापा और अल्जाइमर रोग का इलाज कर सकते हैं?
पीजीआईएमईआर, चंडीगढ़ के डॉ. संजय कुमार भड़ाडा ने एपिजेनेटिक्स से एपिजेनेटिक्स: इनसाइट्स फ्रॉम इंडियन प्राइमरी हाइपरपैराथायरायडिज्म (पीएचपीटी) रजिस्ट्री पर चर्चा की।

सीडीआरआई, लखनऊ की डॉ. रितु त्रिवेदी, ने जरण (एजिंग) या वृद्धावस्था के कारण तथा पुराने ऑस्टियोआर्थराइटिस के रोगजनन इवान निदान के बारे में चर्चा की। उन्होंने बताया, इस बीमारी की पैथोफिजियोलॉजी बहुत जटिल है क्योंकि यह एक बहुक्रियात्मक (मल्टीफेक्टोरियल) बीमारी है।

उनकी शोध टीम पैथोफिजियोलॉजिकल स्थितियों के लिए उत्प्रेरण कारकों के रूप में रासायनिक, यांत्रिक और पुराने अप्रत्याशित तनाव की खोज कर रही है जो घुटने के पुराने ऑस्टियोआर्थराइटिस के कारकों के ही समान कार्य करते हैं

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