आज अयोध्या के राम मंदिर में ध्वजारोहण समारोह संपन्न हुआ, जिसे मंदिर निर्माण की प्रतीकात्मक पूर्णता के रूप में देखा जा रहा है। प्रधानमंत्री मोदी और संघ प्रमुख मोहन भागवत ने अभिजीत मुहूर्त में मंदिर के शिखर पर भगवा ध्वज फहराया।
प्रधानमंत्री ने इस अवसर पर हाथ जोड़कर धर्म ध्वज को प्रणाम किया और कहा कि “आज सदियों पुरानी आस्था और विश्वास की यात्रा पूर्ण हो गई है।” उन्होंने कहा कि यह केवल एक धार्मिक कार्यक्रम नहीं, बल्कि भारतीय सभ्यता और सामाजिक चेतना का उत्सव है।

उन्होंने बताया कि इस ध्वज और मंदिर से निकलने वाली ऊर्जा, भारतीय संस्कृति की गहन मूलभूत शक्तियों का प्रतीक है। भगवा रंग, सूर्यवंश की गौरवगाथा और कोविदार वृक्ष के संकेत केवल प्रतीकात्मक नहीं, बल्कि यह संघर्ष, तपस्या और समाज की सहभागिता की कहानी कहते हैं।
उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि भारत ने सदियों तक मानसिक गुलामी झेली। ब्रिटिश शासन और विदेशी विचारों के प्रभाव ने हमारी सोच को प्रभावित किया, और देश ने अपनी ताकत और पहचान पर संदेह करना शुरू कर दिया।
प्रधानमंत्री ने कहा कि राम मंदिर और इसकी स्थापना इस मानसिक गुलामी से मुक्ति का प्रतीक है। यह केवल मंदिर या ध्वज नहीं, बल्कि भारत की आत्मा और अपनेपन की पुनः खोज का संकेत है।
प्रधानमंत्री ने विश्वास जताया कि आने वाले वर्षों में यह चेतना पूरी तरह देश के भीतर विकसित हो सकती है और 2047 तक भारत न केवल आर्थिक रूप से बल्कि मानसिक और सांस्कृतिक रूप से भी एक विकसित राष्ट्र बन सकता है। उन्होंने कहा कि अयोध्या सिर्फ धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि आदर्श जीवन और सामूहिक शक्ति की प्रतीक भूमि है।
जिस तरह राम ने मर्यादा और आदर्श व्यवहार के माध्यम से समाज की शक्ति को संगठित किया, उसी तरह आधुनिक भारत को भी सामूहिक प्रयास, जागरूकता और संस्कृति की ऊर्जा से विकसित किया जा सकता है। राम मंदिर अब केवल पूजा का स्थल नहीं, बल्कि भारत की चेतना और गौरव का केंद्र बनकर उभरा है।
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