खेती के टिकाऊपन के लिए कृषि विविधीकरण की आवश्यकता पर हो फोकस : डॉ. पंजाब सिंह

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लखनऊ। आईआईएसआर में प्रोफेसर कीर्ति सिंह मेमोरियल व्याख्यान और सतत कृषि के लिए प्राकृतिक और जैविक खेती पर राष्ट्रीय संगोष्ठी में अपने संबोधन में मुख्य अतिथि डॉ. पंजाब सिंह (पूर्व सचिव, डेयर एवं पूर्व महानिदेशक, भाकृअनुप( ने खेती के टिकाऊपन के लिए कृषि विविधीकरण की आवश्यकता पर बल दिया।

रॉयल एसोसिएशन फॉर साइंस-लेड सोशियो कल्चरल एडवांसमेंट (रासा), नई दिल्ली; भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान (आईआईएसआर), लखनऊ और सोसायटी फॉर शुगर रिसर्च एंड प्रमोशन (एसएसआरपी), नई दिल्ली द्वारा आईआईएसआर, लखनऊ में इस व्याख्यान और राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित हुई थी।

प्राकृतिक और जैविक खेती के सभी लाभ और हानियों पर विचार-विमर्श की सलाह

इस दौरान डा.पंजाब सिंह ने वैज्ञानिकों से प्राकृतिक और जैविक खेती द्वारा मृदा उर्वरता और पर्यावर्णीय स्वास्थ्य की बहाली, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कमी, भोजन, पोषण और आजीविका सुरक्षा सुनिश्चित करने के साथ-साथ किसानों की आय बढ़ाने में सक्षम होने के दावों को गंभीरता से लेने का आग्रह किया।

उन्होंने इस कृषि प्रणाली के सभी लाभ और हानियों पर विचार-विमर्श करने की सलाह दी। डॉ. सिंह ने उपयुक्त सिफारिशें करने से पहले इनपुट संसाधनों की उपलब्धता की वर्तमान स्थिति का आकलन करने और उपज और उत्पादन पर उनके अल्प एवं दीर्घकालिक प्रभावों की तुलना करना समय की आवश्यकता बताई।

डॉ. ऊधम सिंह गौतम, उपमहानिदेशक, (कृषि प्रसार), भाकृअनुप ने बताया कि प्राकृतिक और जैविक खेती जलवायु परिवर्तन के साथ-साथ रसायनमुक्त कृषि की समस्या के समाधान करने में कृषि-पारिस्थितिकी स्थिरता के लिए सबसे महत्वपूर्ण विकल्प के रूप में उभरी है।

उन्होंने महंगे संसाधनों पर निर्भरता कम करके और पुनर्योजी प्रथाओं पर ध्यान केंद्रित करके, बेहतर पैदावार व मृदा उर्वरता प्राप्त करने के साथ लागत में भी बचत करने के लिए किसानों से प्राकृतिक एवं जैविक खेती को अपनाने पर ज़ोर दिया।

डॉ. गौतम ने बताया कि देश के सभी 731 केवीके कृषि के टिकाऊपन के लिए इस कृषि प्रणाली को अपनाने का प्रचार-प्रसार कर रहे हैं।

वहीं डॉ.एके सिंह (कुलपति, चन्द्रशेखर आज़ाद कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, कानपुर) ने प्रो. कीर्ति सिंह को एक उल्लेखनीय दूरदर्शी नेता, प्रतिष्ठित शिक्षक, असाधारण सब्जी वैज्ञानिक, अलौकिक मूल्यों वाला दयालु व्यक्ति बताया जिन्होंने विभिन्न पदों पर सुशोभित रहते हुए कृषि समुदाय के बीच एक अमिट छाप छोड़ी।

डॉ.आरके सिंह (अध्यक्ष, नेफोर्ड एवं पूर्व निदेशक शोध, आचार्य नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, अयोध्या) ने प्रो॰ सिंह के विभिन्न संस्मरण सुनाते हुए कृषि अनुसंधान और शिक्षा के क्षेत्र में उनके योगदान के बारे में चर्चा की।

डॉ.आर.विश्वनाथन (निदेशक, आईसीएआर-आईआईएसआर, लखनऊ) ने संस्थान द्वारा विकसित प्रौद्योगिकियों जैसे सबसे लोकप्रिय किस्म सीओ 0238 को बदलने की क्षमता वाली नव विकसित गन्ना किस्म कोलख 14201, गन्ने के कटाई एवं बुवाई यंत्र व पेड़ी प्रबंधन यंत्र सहित गन्ना खेती के यंत्रीकरण के लिए विकसित विभिन्न कृषि यंत्रों, रोपण की ट्रेंच विधि सहित विभिन्न गन्ना उत्पादन और सुरक्षा प्रौद्योगिकियों की चर्चा की।

इससे पूर्व संगोष्ठी के संयोजक डॉ. दिनेश सिंह ने सभी गणमान्य व्यक्तियों और प्रतिनिधियों का स्वागत किया। डॉ. ज्योत्स्नेंद्र सिंह (अध्यक्ष, रासा, उत्तर प्रदेश एवं पूर्व निदेशक, यूपीसीएसआर, शाहजहाँपुर) ने समाज को वैज्ञानिक नवाचार से जोड़ना और विज्ञान आधारित खोजों के आधार पर सामाजिक और सांस्कृतिक प्रगति को साकार करना ही रासा की स्थापना का मुख्य उद्देश्य बताया।

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डॉ. प्रियंका सिंह (वरिष्ठ वैज्ञानिक अधिकारी, यूपीसीएसआर, शाहजहाँपुर) ने एसएसआरपी की गतिविधियों के बारे में विस्तृत जानकारी दी।

इस अवसर पर डा.जसवंत सिंह (पूर्व विभागाध्यक्ष-कृषि अभियंत्रण, आईआईएसआर, लखनऊ), डॉ. डीकेवत्स (कुलपति, एचपीकेवीवी, पालमपुर), डॉ. जनार्दन सिंह (विभागाध्यक्ष-जैविक खेती), एचपीकेवीवी, पालमपुर), डॉ. पूनम परिहार (सह प्राध्यापक, एसकेयूएएसटी, जम्मू), डॉ. अनीता सिंह ( डीएसटी वैज्ञानिक) और डॉ. सुधीर सिंह (प्रधान वैज्ञानिक, आईआईवीआर, वाराणसी) को रासा फेलो के सम्मान से सम्मानित किया गया।

इस अवसर पर प्रकाशित स्मारिका एवं एक पुस्तक का विमोचन भी किया गया। कार्यक्रम में 250 से अधिक देश भर के शोध संस्थानों, राज्य कृषि विश्वविद्यालयों व कृषि विज्ञान केन्द्रों के वैज्ञानिकों, विकास कार्यकर्ताओं, किसानों एवं विद्यार्थियों ने सहभागिता की।

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