लखनऊ। भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान (आईआईएसआर), लखनऊ में “चीनी और एकीकृत उद्योगों की स्थिरता: मुद्दे और पहल” विषय पर अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन -शुगरकॉन 2022 के तीसरे दिन देश-विदेश के 66 वैज्ञानिकों ने विभिन्न विषयों पर मौखिक रूप से शोध पत्र प्रस्तुत किए।
फ़िजी के गन्ना शोध संस्थान की डॉ. नजीना बानो ने फ़िजी में गन्ने की उच्च उत्पादकता तथा लाभदेयता हेतु गन्ना खेती का अदरक, लोबिया, तरबूज, टमाटर, भिंडी, करेला, खेरा, मक्का व धान फसलों द्वारा विविधीकरण करने की सलाह दी।
अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन का तीसरा दिन
वहीं डॉ.एके साह ने साल 2020 में लाकडाउन के कारण कृषि क्षेत्र में ही भारत में 20,000 करोड़ रुपए का नुकसान होने तथा 36 लाख प्रवासी श्रमिकों के उत्तर प्रदेश में लौटने के बाद उनको रोजगार देने की संभावना पर चर्चा की।
उन्होंने कहा कि 3.19 लाख प्रवासी महिलाओं में से एक तिहाई को उत्तर प्रदेश के 125 चयनित गन्ना विकास परिषद के द्वारा बनाए स्वयं सहायता समूहों के द्वारा गन्ना नर्सरी में बड चिप एवं एकल गन्ना गांठ विधि का उत्पादन एवं विपणन में रोजगार दिया।
इससे उन महिलाओं द्वारा 525 करोड़ रुपए की आय 30 दिन में करने का उदाहरण मिला। उन्होंने प्रदेश में गन्ना उद्योग में 20.37 लाख कुशल श्रमिकों में से 30-40% श्रमिकों को रोजगार दिये जा सकने की संभावना जताई।
वहीं दोपहर सत्र में लगभग 83 वैज्ञानिकों ने पोस्टर के माध्यम से गन्ने एवं अन्य शर्करा फसलों पर अपनी शोध उपलब्धियों पर प्रकाश डाला। एसएसआरपी के सचिव एवं सम्मेलन संयोजक डॉ.जीपी राव ने बताया कि किसान-वैज्ञानिक परिचर्चा के विशेष सत्र में सीतापुर, लखीमपुर खीरी एवं लखनऊ के लगभग 200 किसान शामिल हुए।
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इस चर्चा में भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान, लखनऊ के डॉ.दिनेश सिंह, डॉ.निरंजन लाल, डॉ. सुखबीर सिंह, डॉ.एपी द्विवेदी, डॉ. अखिलेश कुमार दुबे, डॉ. कामता प्रसाद आदि वैज्ञानिकों ने किसानों को गन्ने की उन्नत खेती करके अधिक आय कमाने के गुर बताए।
सम्मेलन में आज की संस्तुतियाँ
गन्ना प्रजनन संस्थान (एसबीआई), कोयंबटूर तथा भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान, लखनऊ द्वारा विकसित गन्ना किस्में भारत में गन्ने के अंतर्गत 98% से अधिक क्षेत्र तथा विश्व के 28 अन्य देशों में सफलतापूर्वक उगाई जा रही है।
भारत में अब अंतर्देशीय आवश्यकता से अधिक गन्ना व चीनी उत्पादित होने के कारण अन्य प्रयोगों के लिए भी गन्ना व चीनी उपलब्ध रहने के कारण उत्पाद विविधिकरण पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है।
एसबीआई गन्ना उत्पादन व गन्ना एवं इसके उप-उत्पादों पर आधारित मूल्य संवर्धित उत्पाद की 15 प्रौद्योगिकों का व्यवसायिकरण कर चुका है।
चीनी क्षेत्र की औद्योगिक इकाईयां चीनी, गुड, खांडसारी, राब, बिजली, जैव इथेनोल, जैव सीएनजी, जैव कारक, रसायन, उर्वरक, जैव उर्वरक, ईपीएन, बायोचार एवं जैव आधारित मूल्य संवर्धित उत्पादों का उत्पादन कर रही है।
चुकंदर की विभिन्न क़िस्मों की फसल से 75-90 टन/हेक्टेयर की उपज तथा 75-130 लीटर प्रति टन इथेनोल का उत्पादन करके गन्ने से उत्पादित इथेनोल की तुलना में रु. 10.62 से रु. 28.71 तक का अधिक शुद्ध लाभ कमाया जा सकता है।
गन्ने की फसल की अत्यधिक श्रम प्रधान प्रकृति के कारण भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान ने गन्ने की खेती के यंत्रीकरण हेतु गन्ने की बुवाई से लेकर कटाई तक के विभिन्न यंत्र विकसित किए हैं जिनको प्रयोग करके उत्पादन लागत में कमी लाने के अतिरिक्त, इनपुट प्रयोग दक्षता तथा उत्पादकता में वृद्धि होने से किसानों की आय में सार्थक बढ़ोतरी होती है।
गन्ने के साथ दलहानी व तिलहानी फसलों की सहफ़सली खेती को अपनाकर तथा भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान द्वारा विकसित फर्ब विधि को अपनाकर गन्ने के साथ गेहूं की अंतरसस्य पद्धति में खेती करने से भी गन्ना किसान अपनी आय में वृद्धि कर सकते हैं।
गन्ने के साथ मेंथी, मक्का व लहसुन की सहफ़सली खेती करके भी किसान अपनी शुद्ध आय को दो से तीन गुना तक बढ़ा सकते हैं।
गन्ना खेती में गुणवततापूर्ण बीज की अनुपलब्धता एक बड़ी समस्या है जो विभिन्न रोगों को जन्म देती है। इसके निदान के लिए नम गर्म जल उपचार, सिस्टेमिक कवकनाशी से बीजोपचार, सूक्ष्म संवर्धित ऊतक संवर्धन सामग्री का प्रयोग संभावित रणनीति हो सकते हैं।