लिवर सिरोसिस के मामले बढ़ने के लिए शराब की बढ़ती खपत जिम्मेदार : प्रोफेसर सरीन

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लखनऊ। सीएसआईआर-केन्द्रीय औषधि अनुसंधान संस्थान, लखनऊ में आज से आठवीं ‘ड्रग डिस्कवरी रिसर्च में वर्तमान रुझानों पर अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी’ शुरू की गई। डॉ डी श्रीनिवास रेड्डी, निदेशक सीएसआईआर-सीडीआरआई, लखनऊ ने इस मेगा इवेंट में ऑनलाइन और ऑफलाइन उपस्थित सभी गणमान्य व्यक्तियों का स्वागत किया।

सीटीडीडीआर-2022 (#CTDDR2022):औषधि अनुसंधान हेतु आठवां महा संगम

उद्घाटन कार्यक्रम में, प्रोफेसर शिव कुमार सरीन, निदेशक, यकृत और पित्त विज्ञान संस्थान, नई दिल्ली, भारत ने फेकल माइक्रोबायोटा ट्रांसप्लांट इन अल्कोहालिक हेपेटाइटिस: ए न्यू ड्रग थेरेपी विषय पर उद्घाटन भाषण में बताया कि भारत में शराब की खपत बढ़ रही है और दुख की बात है कि लिवर सिरोसिस के मामले भी बढ़ रहे हैं।

प्रोफेसर शिव कुमार सरीन का सम्मान
प्रोफेसर शिव कुमार सरीन का सम्मान
शिट  थेरेपी (आंत्र माइक्रोब ट्रांसप्लांटेशन) अल्कोहालिक हेपेटाइटिस के लिए सेवन योग्य

शराब यकृत (लीवर) में सूजन का कारण बनती है जिससे कुछ मामलों में यकृत सिरोसिस और यकृत कैंसर होता है। उन्होंने बताया कि स्वस्थ डोनर (दाता) से फेकल (मल/ विष्ठा) जीवाणुओं को अलग करने के उपरांत  प्रसंस्कृत करके अल्कोहालिक हेपेटाइटिस से पीड़ित मरीज में प्रत्यारोपण के द्वारा अल्कोहालिक लीवर (यकृत /जिगर) की बीमारी के इलाज हेतु हानिकारक इंटस्टाइनल माइक्रोब (आंत्र जीवाणु) के स्थान पर लाभदायक जीवाणुओं को प्प्रत्यारोपित किया जा सक्ता है।

पहला दिन "एजिंग एसोसिएटेड कार्डियो-मेटाबोलिक डिसऑर्डर" व "मेजर डिप्रेशन एंड क्रोनिक पैन" को समर्पित

हालिया अनुसंधान का जिक्र करते हुए उन्होने बताया  कि सात दिनों तक  नेजो/ड्यूडेनल रूट (नासिका/गुदा मार्ग) के माध्यम से फेकल माइक्रोबायोटा का प्रत्यारोपण मनुष्यों में मृत्यु दर को कम करता है। इस प्रकार शिट माइक्रोब ट्रांसप्लांट थेरेपी (आंत्र जीवाणु प्रत्यारोपण थेरेपी) शराब के सेवन से होने वाले हेपेटाइटिस के इलाज में कारगर है ! यह चिकित्सा अल्कोहल जनित लीवर रोगों के लिए एक वैकल्पिक चिकित्सा हो सकती है।

डॉ डी श्रीनिवास रेड्डी ने दिया स्वागत भाषण
डॉ डी श्रीनिवास रेड्डी ने दिया स्वागत भाषण
वैज्ञानिक और डॉक्टर के बीच घनिष्ठ सहयोग की तत्काल आवश्यकता : प्रो.भाबातोष

विशिष्ट अतिथि कोलकाता के सीटीवीएस, वुडलैंड्स अस्पताल के निदेशक प्रो भाबतोष विश्वास ने भी प्रतिभागियों को संबोधित किया। प्रोफ. भबतोष बिस्वास ने इस बात पर जोर दिया कि वैज्ञानिकों और चिकित्सकों (डॉक्टरों) को दवा की खोज और विकास के लिए एक साथ काम करना चाहिए और उनका समर्पित सहयोग इसके लिए एक महत्वपूर्ण  शर्त है।

उन्होने कहा कि दुनिया में शराब, धूम्रपान और पोषण की कमी एवं असुरक्षित खान पान रोग का प्रमुख कारण है। उन्होंने एलडीएल या खराब कोलेस्ट्रॉल चयापचय जैसे शोध कि आवश्यकता के बारे में भी बात की।

कुछ डायबिटिक मरीजों को शुगर कंट्रोल होने पर भी रोग जटिलता : प्रो.रमा नटराजन

दूसरे सत्र में, सिटी ऑफ होप नेशनल मेडिकल सेंटर, यूएसए की प्रोफेसर रमा नटराजन ने बताया कि पूर्व हाइपरग्लाइसेमिक (शुगर की अधिकता ) रहे कुछ मधुमेह रोगियों में बाद में शुगर नियंत्रण के बावजूद जटिलताएं क्यों विकसित होती हैं।

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उन्होंने मधुमेह की जटिलताओं और चयापचय स्मृति (मेटाबोलिक मेमोरी) और इसके ट्रांसलेशनल निहितार्थ और ड्रग टार्गेट (दवा लक्ष्यों) को समझने के लिए एपिजेनेटिक्स पर अपने हालिया शोध को साझा किया। प्रोफेसर रमा ने मधुमेह में दवा लक्ष्यों का अध्ययन करने के लिए हाई-थ्रूपुट तकनीकों का उपयोग किया है।

उन्होने इस बारे में बताया कि गैर-कोडिंग आरएनए कितने समय तक मधुमेह को विनियमित कर सकते हैं। वह मधुमेह जटिलताओं के इलाज के लिए इन लंबे गैर-कोडिंग आरएनए को लक्षित करने की कोशिश कर रही है।

कोलेजन रिसेप्टर्स नवीन एंटी-प्लेटलेट थेरेपी के लिए ड्रग टार्गेट के रूप में उपयोगी : डॉ मधु दीक्षित

सीएसआईआर-सीडीआरआई, लखनऊ की पूर्व निदेशक एवं  जेसी बोस नेशनल फेलो, डॉ. मधु दीक्षित, ने एंटी-थ्रोम्बोटिक दवा जो नैदानिक ​​परीक्षण में प्रवेश करने जा रही है के विकास पर अपने अध्ययन को साझा किया। उन्होंने इंट्रावास्कुलर थ्रोम्बिसिस की रोकथाम के लिए कोलेजन विरोधी अपने महत्वपपूर्ण शोध निष्कर्षों पर चर्चा की।

अपने सम्बोधन में उन्होंने बताया कि इंट्रावास्कुलर थ्रोम्बिसिस अक्सर मायोकार्डियल इंफार्क्शन या स्ट्रोक की घटनाओं के साथ होता है, जो दुनिया भर में रुग्णता और मृत्यु दर का प्रमुख कारण है। हृदय रोग (सीवीडी) विश्व स्तर पर मौत का प्रमुख कारण हैं।

भारत में सीवीडी के वैश्विक रोग बोझ का 60% हिस्सा है। उन्होंने वर्ष 1999 में सीडीआरआई में शुरू किए गए एंटी-थ्रोम्बोटिक ड्रग डिस्कवरी प्रोग्राम का नेतृत्व किया है । उन्होंने कोलेजन मध्यस्थता प्लेटलेट आसंजन और एकत्रीकरण को विशेष रूप से रोकने वाले अपने दो यौगिकों के बारे में भी चर्चा की।

कार्डिएक लिपोटॉक्सिसिटी इसलिए प्रमुख कार्डियक मेटाबोलिक विकारों में से एक: डॉ रवि

भारतीय विज्ञान संस्थान, बेंगलुरु के डॉ. एन. रवि सुंदरसन ने कार्डियक लिपोटॉक्सिसिटी के इलाज के लिए SIRT6 को संभावित चिकित्सीय लक्ष्य के रूप में उपयोगी बताया। अपने सम्बोधन में उन्होंने कहा कि लिपोटॉक्सिसिटी, मधुमेह या मोटापे में हृदय को कैसे प्रभावित करती है।

कार्डिएक लिपोटॉक्सिसिटी हृदय में लिपिड के कारण होने वाले प्रमुख हृदय के चयापचय संबंधी विकारों में से एक है। यह मुख्य रूप से लिपिड के दोषपूर्ण ऑक्सीकरण या संचय की वजह से बढ़ा हुए लेवल के कारण होता है। कई लिपिड ट्रांसपोर्टरों को कार्डियक लिपोटॉक्सिसिटी और डायबिटिक कार्डियोमायोपैथी के दौरान बढ़ा हुआ पाया गया है । हालांकि, फैटी एसिड ट्रांसपोर्टरों के अपग्रेडेशन के पीछे के तंत्र के विस्तृत अध्ययन की आवश्यकता है।

दाह रोगों के उपचार हेतु दवा के रूप में बैक्टीरिया चिकित्सीय एजेंट की तरह सक्षम: प्रो. आशुतोष

यूनिवर्सिटी ऑफ आयोवा हेल्थ केयर, यूएसए के प्रो. आशुतोष मंगलम ने न्यूरोलॉजिकल रोगों के उपचार के लिए दवा के रूप में बैक्टीरिया (ब्रग) पर अपने हालिया शोध को साझा किया।

उन्होंने आगे कहा कि बैक्टीरियल व्युत्पन्न/प्रेरित मेटाबोलाइट्स में न केवल स्थानीय इंटेस्टाइनल (आंत्रीय) पर्यावरण, बल्कि प्रतिरक्षा और तंत्रिका तंत्र की कोशिकाओं के मॉड्यूलेशन को प्रभावित करने की क्षमता भी होती है। ड्रग के रूप में ये बैक्टीरिया जिन्हें नया नाम ब्रग (BRUG) दिया गया है, तंत्रिका संबंधी रोगों एवं इंफ्लेमेट्री (सूजन/दाह) रोगों के उपचार हेतु चिकित्सीय एजेंट के रूप में सक्षम हैं।

प्रख्यात वक्ताओं ने नवीनतम सूचनाओं से भरी अपनी जीवंत वार्ताओं के माध्यम से सीटीडीडीआर-2022 के प्रतिभागियों के वैज्ञानिक सोच की चिंगारी को प्रज्वलित किया। वर्तमान सूचनाओं की बाढ़ आगे के सत्रों में भी इसी तरह जारी रहेगी। जो देश विदेश से एक मंच को साझा कर रहे प्रतिभागियों में शोध एवं अनुसंधान की नई दिशा एवं नई ऊर्जा का संचार करेगी

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