भारत अब चीनी उत्पादन में ब्राजील से आगे, पेट्रोल में 10 फीसदी इथेनॉल सम्मिश्रण की उपलब्धि 

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लखनऊ: अखिल भारतीय समन्वित गन्ना अनुसंधान परियोजना के क्षेत्रीय प्रजनकों और पौध सुरक्षा वैज्ञानिकों की बैठक भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान, लखनऊ में शुक्रवार को हुई।

बैठक का उद्देश्य प्रारंभिक किस्मीय परीक्षण (आईवीटी) में गन्ने के उन्नतशील कृंतकों का चुनाव करके उनके मूल्यांकन हेतु उन्नत किस्मीय परीक्षण (एवीटी) में ले जाने तथा देश के चार गन्ना उत्पादक क्षेत्रों यथा- उत्तर-पश्चिम क्षेत्र, उत्तर-मध्य क्षेत्र, पूर्वी तटीय क्षेत्र और उत्तर-पूर्वी क्षेत्र के लिए किस्मों के विकास के लिए तकनीकी कार्यक्रम को अंतिम रूप देना था।

अभा समन्वित गन्ना अनुसंधान परियोजना के क्षेत्रीय प्रजनकों और पौध सुरक्षा वैज्ञानिकों की हुई बैठक

उद्घाटन के दौरान मुख्य अतिथि डॉ.आरके सिंह (सहायक महानिदेशक-वाणिज्यिक फसलें, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद) ने गन्ना और चीनी उत्पादन में भारत के उत्कृष्ट प्रदर्शन और पेट्रोल में 10 फीसदी इथेनॉल मिश्रण पर संतोष जताया।

डॉ. सिंह ने वर्ष 2022-23 के दौरान गन्ने की आठ नई किस्मों को विकसित करने और 40,000 करोड़ रुपए मूल्य की 110 लाख टन चीनी का निर्यात करके भारतीय अर्थव्यवस्था को बेहतर बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए वैज्ञानिकों को बधाई दी।

उन्होंने वैज्ञानिकों से भारत में गन्ने के 4,000 से अधिक जननदृव्य उपलब्ध होने से गन्ने में पूर्व प्रजनन कार्य पर ज़ोर देने का आग्रह किया और उत्तर प्रदेश में गन्ने की डीजेनरेट हो रही लोकप्रिय किस्म को कोलख 14201, को 15023 तथा कोशा 13235 जैसी अन्य उन्नत किस्मों द्वारा प्रतिस्थापित करने पर ज़ोर दिया।

डॉ. जी. हेमप्रभा (निदेशक, गन्ना प्रजनन संस्थान, कोयम्बटूर) ने भारत में गन्ना और चीनी उत्पादन की बेहतर स्थिति पर संतोष व्यक्त किया। उन्होंने चीनी उत्पादन में भारत के ब्राजील को पीछे छोड़ने और भारत में पेट्रोल में 10 फीसदीइथेनॉल सम्मिश्रण प्राप्त करने की उपलब्धि पर प्रसन्नता व्यक्त की।

डॉ. आर.विश्वनाथन (निदेशक, भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान, लखनऊ) ने गन्ने की सबसे लोकप्रिय किस्म के लाल सड़न रोग से डीजेनरेट होने पर अपनी गहरी चिंता व्यक्त करते हुए सभी चीनी मिलों द्वारा कीटों एवं रोगों के एकीकृत प्रबंधन, लाल सड़न रोग के इनोकुलम लोड को न्यूनतम करने के लिए सेट उपचार,

ड्रोन के माध्यम से कवकनाशी का उपयोग, गन्ने की उन्नत किस्मों के ऊतक संवर्धन विधि द्वारा उगाए गए पौधों को बढ़ावा देने और किस्मीय विविधीकरण को अपनाने की आवश्यकता पर बल दिया। कार्यक्रम के शुरू में डॉ. अश्विनी दत्त पाठक (परियोजना समन्वयक-गन्ना) ने परियोजना की मुख्य उपलब्धियों को प्रस्तुत किया।

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गन्ना प्रजनकों, पादप रोगविज्ञान एवं कीटविज्ञान से संबन्धित वैज्ञानिकों, सहयोगी केंद्रों के प्रमुखों और प्रधान अन्वेषकों सहित 125 से अधिक वैज्ञानिकों ने उच्च उपज क्षमता वाली गन्ना किस्मों के विकास,

गन्ना के प्रमुख रोगों से बचाव के साथ उच्च सुक्रोज सामग्री और कीट और जलवायु परिवर्तन से उभरने वाले मुद्दे, केंद्रों द्वारा प्रारंभिक किस्मीय परीक्षणों के अंतर्गत गन्ना कृंतकों का प्रदर्शन जैसे विभिन्न पहलुओं पर विचार-विमर्श किया.

इसके साथ प्रजनकों, रोगविज्ञान और कीट विज्ञान के वैज्ञानिकों की महत्वपूर्ण चर्चा के बाद, विभिन्न क्षेत्रों में 2023-24 के लिए तकनीकी कार्यक्रम को अंतिम रूप प्रदान किया गया। डॉ. एसके यादव (वरिष्ठ वैज्ञानिक, समन्वय इकाई-गन्ना) ने धन्यवाद ज्ञापित किया। का संचालन डॉ. अनीता सावनानी ने किया।

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