लखनऊ l एक हालिया बयान में, सरोजनीनगर विधायक डॉ. राजेश्वर सिंह ने भारत को एक ऐसी सभ्यता के रूप बताया जो की ज्ञान से परिपूर्ण है और कहा कि भारत अपने डीएनए में ही प्रतिभा का एक जन्मजात भंडार रखता है। उन्होंने वैश्विक मंच पर, विशेषकर शिक्षा, प्रौद्योगिकी और नवाचार के क्षेत्र में भारत के प्रभाव को रेखांकित करने के लिए चौंका देने वाले आँकड़े पेश किए।
वैश्विक मंच पर भारत को शिक्षा, प्रौद्योगिकी और नवाचार के क्षेत्र में बताया श्रेष्ठ
विधायक नें बताया कि 500 मिलियन से अधिक व्यक्तियों की श्रम शक्ति के साथ भारत को दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी कार्यशक्ति का खिताब हासिल है। इसके अलावा, भारत में एसटीईएम (विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित) स्नातकों के प्रमुख स्रोत के रूप में सालाना 1.5 मिलियन से अधिक पेशेवर भारत से ही निकलते हैं।
डॉ. राजेश्वर सिंह ने यह भी बताया कि वैश्विक बाजार में 60% हिस्सेदारी के साथ भारत आउटसोर्सिंग और ऑफशोरिंग के लिए प्रमुख गंतव्य बन गया है। भारतीय आईटी उद्योग, जिसका मूल्य वर्तमान में $200 बिलियन से अधिक है, के वर्ष 2025 तक $350 बिलियन तक पहुंचने का अनुमान है।
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विधायक ने भारत की उद्यमशीलता की भावना पर भी प्रकाश डाला, यह देखते हुए कि देश 100 से अधिक यूनिकॉर्न का घर है – प्रत्येक स्टार्टअप का मूल्य 1 बिलियन डॉलर से अधिक है। यह जीवंत स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र नवाचार और उद्यमिता को बढ़ावा देने में भारत की शक्ति को रेखांकित करता है।
भारत की उद्यमशीलता पर विस्तृत आंकड़ों के साथ डाला प्रकाश
भारतीय कार्यबल की युवाशक्ति पर प्रकाश डालते हुए, डॉ. राजेश्वर सिंह ने कहा कि औसत भारतीय श्रमिक 30 वर्ष का है, जो भारत को विश्व स्तर पर सबसे युवा कार्यबलों में से एक बनाता है। उन्होंने भारत को “कौशल महाशक्ति” के रूप में स्थापित करने के उद्देश्य से शिक्षा और प्रशिक्षण में भारत सरकार के महत्वपूर्ण निवेश और योगदान का भी जिक्र किया।
डॉ सिंह नें आगे बताया कि प्रसिद्ध वैश्विक संगठनों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले भारतीय पेशेवरों के आंकड़ों के माध्यम से वैश्विक मंच पर भारत के प्रभाव को और भी स्पष्ट किया है।
डॉ. राजेश्वर सिंह ने कहा- वैश्विक अर्थव्यवस्था को आकार देने में है भारत की महत्वपूर्ण भूमिका
सिलिकॉन वैली में, भारतीय-अमेरिकी लगभग 15% कार्यबल हैं, जो प्रौद्योगिकी उद्योग में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। विशेष रूप से, NASA के 36% वैज्ञानिक, 34% Microsoft कर्मचारी और IBM के वैश्विक कार्यबल का एक तिहाई, कुल 1,30,000 कर्मचारी भारतीय मूल के ही हैं।
अंत में, डॉ. राजेश्वर सिंह ने भारत की मानव प्रतिभा के भविष्य के बारे में आशावाद व्यक्त किया और कहा कि यह आने वाले वर्षों में वैश्विक अर्थव्यवस्था को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती रहेगी।