लखनऊ में अंतरराष्ट्रीय फॉरेंसिक सम्मेलन: साइबर सुरक्षा और डेटा संरक्षण पर मंथन

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लखनऊ: उत्तर प्रदेश स्टेट इंस्टीट्यूट ऑफ़ फॉरेंसिक साइंस लखनऊ में आयोजित तीन दिवसीय अंतराष्ट्रीय शिखर सम्मलेन के दूसरे दिन देश विदेश के विभिन्न संस्थानों से आये लगभग 40 विषय विशेषज्ञों ने प्रतिभाग कर अपने व्याख्यान दिये।

इस अवसर पर संस्थापक निदेशक डॉ जीके गोस्वामी एवं अपर निदेशक राजीव मल्होत्रा ने अतिथि वक्ताओं को प्रतीक चिन्ह भेट कर उनका स्वागत एवं सम्मान किया।

इस अवसर पर अतिथि वक्ता भुवनेश कुमार आईएएस सीईओ UIDAI (आधार) भारत सरकार नई दिल्ली ने “गोपनीयता, डेटा सुरक्षा और साइबर सुरक्षा के बदलते स्वरूप” विषय पर भारत में गोपनीयता कानूनों के विकास की चर्चा की, जो 2011 के SPDI नियमों से शुरू हुई,

UIDAI सीईओ भुवनेश कुमार ने कहा- आधार पहचान का साधन, न कि नागरिकता का प्रमाण

जब डिजिटल जागरूकता कम थी और सोशल मीडिया तथा मोबाइल एप्लिकेशन सीमित थे। उन्होंने आधार परियोजना के क्रांतिकारी योगदान को रेखांकित किया, जिसने बायोमेट्रिक पहचान के माध्यम से पहचान प्रबंधन में नया मुकाम हासिल किया।

उन्होंने स्पष्ट किया कि आधार नागरिकता, पता या जन्मतिथि का प्रमाण नहीं है, बल्कि केवल पहचान सत्यापन के लिए उपयोगी दस्तावेज है। यह 182 दिनों से अधिक भारत में रहने वाले विदेशी नागरिकों को भी दिया जाता है।

भुवनेश कुमार ने कहा कि बिना उचित सत्यापन के आधार स्वीकार नहीं करना चाहिए तथा आधार नंबर आकस्मिक रूप से बेमेल बनाया गया है ताकि गोपनीयता बनी रहे।

उन्होंने हाल ही में पारित डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण (DPDP) अधिनियम पर प्रकाश डाला, जो अनधिकृत डेटा प्रसंस्करण पर कड़ी कार्रवाई करता है और व्यक्तियों को डेटा संरक्षण बोर्ड में शिकायत करने का अधिकार प्रदान करता है यह अधिनियम डेटा सुरक्षा को सुदृढ़ करने तथा भारत को वैश्विक गोपनीयता मानकों के अनुरूप लाने में सहायक है।

इस अवसर पर पुलिस उप महानिरीक्षक साइबर यूपी  पवन कुमार ने कहा कि किसी भी अपराध से निपटने का पहला और सबसे महत्वपूर्ण कदम उसे स्वीकारना और उसके अस्तित्व को समझना है।

भारत समेत विश्व में साइबर अपराध का स्तर चिंताजनक रूप से बढ़ गया है, वैश्विक साइबर अपराध से होने वाले नुकसान की राशि 11 ट्रिलियन डॉलर से अधिक है, जो भारत की पूरी अर्थव्यवस्था से तीन गुना अधिक है।

यूपीएसआईएफएस गुणवत्ता और विशेषज्ञता के लिए दुनिया में जाना जायेगा: डॉ जीके गोस्वामी

भारत में अब तक 60 लाख से अधिक साइबर अपराध दर्ज हो चुके हैं, जो इस खतरे की गंभीरता को दर्शाता है। उन्होंने कहा कि साइबर अपराध से मुकाबला केवल पुलिस का काम नहीं है, बल्कि बैंकिंग, शिक्षा और तकनीक समेत सभी क्षेत्रों का समन्वित प्रयास चाहिए।

इस सहयोग से ही भारत साइबर अपराध को प्रभावी ढंग से कम कर सकता है। सेवानिवृत्त न्यायाधीश तलबंत सिंह ने डिजिटल साक्ष्य को किसी भी डिजिटल रूप में निर्मित और संग्रहित डेटा के रूप में परिभाषित करते हुए कहा कि बढ़ते साइबर अपराध के कारण इसकी आवश्यकता अत्यंत बढ़ गई है।

उन्होंने बताया कि चोरी, डकैती या साइबर अपराध जैसी लगभग हर जांच में इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य अनिवार्य हो गया है, जो अभियोजन पक्ष को सशक्त बनाता है।

उन्होंने भा.साक्ष्य अधिनियम (BSA) का संदर्भ देते हुए बताया कि यह अधिनियम वीडियो और वीडियो कॉल द्वारा रिकॉर्ड किए गए मौखिक साक्ष्य को भी वैधता प्रदान करता है।

उन्होंने BSA की धारा 63 के अंतर्गत साक्ष्य की स्वीकार्यता के लिए आवश्यक शर्तें बताईं, जिसमें डिवाइस का नियमित उपयोग, डेटा का सामान्य प्रवाह, और सिस्टम की अखंडता सुनिश्चित करना शामिल है। इसके लिए एक प्रमाणपत्र जारी करना अनिवार्य है।

इस अवसर पर संस्थापक निदेशक डॉ जीके गोस्वामी ने आज के सत्र में छात्र छात्राओ को संबोधित करते हुए कहा कि इन्सान को अपने भीतर नेतृत्व करने की क्षमता का विकास करना चाहिए । उन्होंने कहा कि मुझे विश्वास है प्रदेश सरकार द्वारा स्थापित यह संस्थान एक दिन अपने गुणवत्ता और विशेषज्ञता के लिए दुनिया भर में जाना जायेगा ।

समूह सत्र में शामिल विशेषज्ञ IPS अमित कुमार, डॉ. अमित दुबे और अतुल कुमार ओझा ने साइबर अपराध की रोकथाम, पहचान और अभियोजन के विभिन्न पहलुओं पर गहन विचार-विमर्श किया।  अमित कुमार ने बताया कि मोबाइल फोन के व्यापक उपयोग के बावजूद साइबर साक्षरता का स्तर काफी कम है।

भावनात्मक कमजोरियां जैसे भरोसा और निराशा लोगों को आसानी से ओटीपी जैसे संवेदनशील डेटा साझा करने के लिए प्रेरित करती हैं। उन्होंने साइबर शिक्षा, डिजिटल प्रसारण और जागरूकता अभियानों के महत्व पर जोर दिया।

डॉ. अमित दुबे ने हालिया क्रिप्टोकरेन्सी स्कैम का उल्लेख करते हुए बताया कि अपराधी किस तरह नवाचार और विश्वास का दुरुपयोग करते हैं। उन्होंने कहा कि स्कूल पाठ्यक्रमों में साइबर सुरक्षा शिक्षा जरूरी है।

अतुल ओझा ने जांच टीमों के गठन और साइबर अपराध विरोधी कानूनी नियमों में सुधार की मांग आवश्यकता पर बल दिया।

समूह सत्र में साइबर एक्सपर्ट पवन शर्मा ने बताया कि डिजिटल ऑडिट किसी संगठन के जोखिम को समझने की आधारशिला है। उन्होंने कहा कि व्यावहारिक ऑडिट फ्रेमवर्क में महारत हासिल करना बेहद आवश्यक है और ऐसे पेशेवरों की मांग तेजी से बढ़ रही है जो ऑडिट के निष्कर्षों की व्याख्या कर उपयुक्त साइबर इंश्योरेंस सुनिश्चित कर सकें।

साइबर विशेषज्ञ डॉ. मनीष राय ने समूह सत्र में उद्योग के विशेषज्ञों का स्वागत कर कहा कि कानूनी, नैतिक और तकनीकी ढांचे की समझ आवश्यक है।

सिस्को के प्रतिनिधि कर्नल पंकज वर्मा ने बताया कि पारंपरिक वार्षिक ऑडिट की जगह लगातार, जोखिम-आधारित आकलन और वास्तविक समय की मेट्रिक्स पर आधारित निगरानी को महत्व दिया जा रहा है। ऑटोमेशन और साइबर जोखिम मॉडेलिंग जैसे कौशल अब करियर की प्रगति के लिए अनिवार्य हो गए हैं।

जेड स्केलर के प्रतिनिधि अभीर नायक ने संगठनों में आंतरिक कौशल विकास पहलों के बढ़ते प्रभाव को बताया और भारत की विशेष साइबर सुरक्षा जरूरतों को ध्यान में रखते हुए देशी समाधानों के विकास के लिए उद्यमिता को भी प्रोत्साहित किया।

इस अवसर पर संस्थान के अपर पुलिस अधीक्षक चिरंजीब मुखर्जी, अतुल यादव, सहायक रजिस्ट्रार सीएम सिंह, डॉ. श्रुतिदास गुप्ता, जनसंपर्क अधिकारी संतोष तिवारी, डॉ.सपना, डॉ.ऋतू छाबड़ा, डॉ.नीताशा, डॉ.पोरवी सिंह प्रतिसार निरीक्षक बृजेश सिंह, ई.कार्तिकेय सहित संस्थान के शैक्षणिक संवर्ग के संकाय उपस्थित रहे।

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