कवि, कहानीकार, निबंधकार अर्जुन चावला का सिंधी साहित्य में अमूल्य योगदान

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लखनऊ। सिंधी साहित्यकार अर्जुन चावला लोकप्रिय कवि, कहानीकार और निबंधकार है। यह सार है उत्तर प्रदेश सिंधी अकादमी द्वारा बुधवार को आयोजित संगोष्ठी का। सिंधी के वरिष्ठ साहित्यकार अर्जुन चावला का सिंधी साहित्य में योगदान विषय पर संगोष्ठी का आयोजन इन्दिरा भवन के 512 कक्ष में किया गया था।

उत्तर प्रदेश सिंधी अकादमी द्वारा “अर्जुन चावला-सिंधी साहित्य में योगदान” विषय पर हुयी संगोष्ठी

संगोष्ठी के प्रथम सत्र में भगवान झूलेलाल की प्रतिमा पर माल्यार्पण अकादमी के निदेशक अभिषेक कुमार ‘अखिल’ के साथ आमंत्रित विशेषज्ञ पूर्व आईजी रेलवे राजाराम भागवानी, प्रकाश गोधवानी, अशोक चांदवानी, दिनेश मूलानी, डॉ. कोमल असरानी ने किया।

इस संगोष्ठी में सुधानचन्द चंदवानी ने बताया कि अर्जुन चावला का जन्म 10 फरवरी, 1931 में सिंध पाकिस्तान में हुआ था। वर्तमान में वह अलीगढ़ में रहते है। उनकी साहित्यिक यात्रा 17-18 साल की उम्र में शुरू हुई थी। उनकी कविताओं के अलग-अगल रूप दिखते है जैसे प्रेम, विछोह, त्याग, सामाजिक तानाबाना।

डॉ. कोमल असरानी ने बताया कि अर्जुन चावला की कविताएं सुंदर और प्रेरक भावों से सराबोर हैं। प्रकाश गोधवानी ने बताया कि अर्जुन चावला न केवल कवि थे बल्कि एक बहुत अच्छे कहानीकार और निबन्धकार भी थे। उन्होंने सिंधी कविताओं में गजलों को नया आयाम दिया है।

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प्रकाश गोधवानी ने अर्जुन चावला की लोकप्रिय कविता “रोशनी थोरी आ, गुम थी न वजे, को पतंगों मतस तेल पी न वजे” भी सुनायी।

उत्तर प्रदेश सिंधी अकादमी के निदेशक अभिषेक कुमार अखिल ने कहा कि इस प्रकार की संगोष्ठियों में समाज की सहभागिता और बढ़नी चाहिए। सिंधी साहित्य और संस्कृति के प्रचार-प्रसार के लिए अकादमी सदैव कार्य करती रहेगी।

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