समानता की बात हो, सबसे पहले महिलाओं का साथ दें महिलाएं 

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लखनऊ। हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट एवं भारतीय विद्या भवन गर्ल्स डिग्री कॉलेज, गोमती नगर, लखनऊ के संयुक्त तत्वावधान में महिला समानता दिवस-2022 के अवसर पर उद्बोधन कार्यक्रम विषयक: “महिला समानता: वास्तविक या काल्पनिक” का आयोजन भारतीय विद्या भवन गर्ल्स डिग्री कॉलेज, गोमती नगर, लखनऊ में किया गया।

मुख्य वक्ताओं में डॉ.अलका निवेदन (प्राचार्या, भारतीय विद्या भवन गर्ल्स डिग्री कॉलेज, गोमती नगर, लखनऊ) और डॉ. छवि निगम, (प्रोग्राम ऑफिसर एनएसएस, भारतीय विद्या भवन गर्ल्स डिग्री कॉलेज, गोमती नगर) ने समाज में महिला समानता के आधार पर प्रदान किये गए अधिकार वास्तविक है या काल्पनिक, के विषय में अवगत कराया।

डॉ.अलका निवेदन ने अपने अनुभव साझा करते हुये बताया कि “आज बहुत ही विशेष दिवस है महिला समानता दिवस पर यह बहुत बड़ा दुर्भाग्य है कि आज हमें इस दिन को सेलिब्रेट या आयोजन करके मनाना पड़ रहा है, दुर्भाग्यवश अभी भी बहुत स्त्री व पुरुष में असमानता है।

वैश्विक स्तर पर विकसित देशों में तो फिर भी एक समानता है, भारत जैसे विकासशील देशों में अभी भी असमानता पाई जा रही है और यह जो खाई है, इसको भरने के लिए हमें बहुत मेहनत करनी पड़ेगी।

आज से अगर 10-15 साल पीछे जाकर हम देखते हैं तो एक महिला को यह भी अधिकार नहीं था कि वह शादी के बाद अपना नाम जो चाहे रख सके उसे अपने पिता का नाम, पिता के यहां छोड़ कर आना होता था, और अपने पति का सरनेम लगाना पड़ता था, यह छोटा सी वास्तविकता है।

18 साल पुरानी बात है मुझे अपने सरनेम से बहुत प्यार था, शादी से पहले मैं अपना नाम अलका मिश्रा लिखती थी और मेरी शादी जहां हुई वह पाण्डेय लिखते थे, मेरी इच्छा नहीं थी कि मैं पाण्डेय सरनेम लगाऊं, मैंने इस बात का विरोध
किया तब मेरी ससुराल में यह कहा गया कि, यह नहीं चलेगा, आप अपने पिता का नाम इस घर में नहीं लगा सकती।

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उस वक्त एक मेरे ससुर ने जो कि अब इस दुनिया में नहीं है, उन्होंने कहा कि, उनकी भी बात रह जाएगी और तुम्हारी भी बात रह जाएगी, तुम ना मिश्रा लगाओगी, तुम ना पाण्डेय लगाओगी, तुम्हारी जो इच्छा हो वह तुम लगाओ, तुम चाहो तो सिर्फ अलका लिख सकती हो। मैंने अपने पति का नाम पीछे लगाया, मुझे बड़ा अच्छा लगा।

तो उस वक्त भी आज से लगभग 20 साल पुरानी बात है, पुरुष को आगे आना पड़ा था। तो आज भी अगर स्त्री पुरुष समानता की बात करते हैं तो महिलाएं ही महिलाओं को पीछे खींच रही हैं, क्योंकि वह अभी भी पुरानी परंपराओं से घिरी हुई हैं, जिसमें लड़कियों को बाहर अकेले नहीं जाने दिया जाता था।

जब भी लड़कियों को बाहर जाना होता है, तो किसी ना किसी को साथ लेकर ही जाना पड़ता है, वजह है समाज में डर, छेड़छाड़ का डर, बलात्कार का डर, छोटे कपड़े नहीं पहनने दिए जाते, अगर एक पुरुष मॉर्निंग वॉक पर बरमूडा पहन कर जाता है, तो हम क्यों नहीं, हमें लोगों की बातों को इग्नोर करना चाहिए।

ऐसा नहीं है कि कल से हम भी छोटे कपड़े पहनना शुरू कर दें, लेकिन हर एक को स्वतंत्रता होनी चाहिए, समानता की बात होनी चाहिए, तो सबसे पहले महिलाएं महिलाओं का साथ दें। डॉ० छवि निगम ने कहा कि अगर हमारी बेटियों बहनों को समानता का अधिकार दिलाना है, तो कहीं ना कहीं पुरुषों को आगे आना होगा।

अगर समाज में 2 लोग चलते हैं, स्त्री और पुरुष, तो दोनों को बराबर की भागीदारी होनी चाहिए। अगर पुरुषों से कहा जाता है कि सिलेंडर भरवाने जाओ, बैंक के काम के लिए जाओ, तो महिलाओं से क्यों नहीं कहा जाता, तुम बैंक जाओ या सिलेंडर की लाइन में लगो, लड़कियां गाड़ी चलाती हैं, उनसे क्यों नहीं कहा जाता कि गाड़ी बनाने, पहिया बदलने, बैंक के काम करें।

यहां तक कि कई महिलाएं ऐसी हैं, जिनके एटीएम कार्ड बने हैं, और वह अपने कार्ड की पिन नंबर तक नहीं जानती।  क्योंकि उनके एटीएम से उनका भाई, उनका बेटा, या कोई और पैसे निकालता है। लोगों को अपनी बच्चियों को मजबूत करना है। जिससे वह स्वयं बाहर के काम कर सकें।

पति पत्नी दोनों अगर सर्विस करते हैं, एक समय पर घर वापस आते हैं, तो घर आने के बाद चाय की जिम्मेदारी दोनों की होनी चाहिए, ना कि सिर्फ पत्नी की, आज का आयोजन बहुत अच्छा है। यहां महिलाएं भी हैं, पुरुष भी हैं, इस समय हमारी सरकार भी महिलाओं के लिए कई योजनाएं, जैसे: बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ इत्यादि चला रही है।

सेंट्रल गवर्नमेंट भी कई योजनाएं महिलाओं के लिए चला रही है। समानता के लिए समय-समय पर कई योजनाएं आती रहती हैं। भ्रूण हत्या पर भी सख्त कानून बना है, और उससे असमानता कम हुई है, और इसी तरह इस समय हमारी सरकार इस पर बहुत काम कर रही है।

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