चेन्नई: सुबह 4.30 बजे जगदीश गुलिया और उनकी आठ वर्षीय बेटी तन्नु 2016 रियो ओलंपिक में भारतीय महिलाओं की कुश्ती देख रहे थे। यह वह वक्त था जब साक्षी मलिक ने अंतिम क्षणों में बाज़ी पलटते हुए कांस्य पदक हासिल किया। साक्षी कि इस सफलता पर जगदीश और तन्नू दोनों ने जश्न मनाते हुए एक-दूसरे को गले लगा लिया।
यही वह क्षण था जब हरियाणा में एक स्कूल बस ड्राइवर, जगदीश ने फैसला किया कि तन्नु भी एक पहलवान बनेगी। दूसरी ओर, तन्नु एक एथलीट के रूप में मिलने वाले यात्रा के अवसरों के बारे में सोचकर और भी अधिक उत्साहित और रोमांचित थी।
मंगलवार को यहां राजरथिनम स्टेडियम में 65 किग्रा भार वर्ग में कांस्य पदक जीतकर वह अपने पिता के साथ देखे गए उस सपने के एक कदम और करीब पहुंच गईं।
उत्साह और उल्लास के साथ सबको अपना पदक दिखा रही तन्नु ने कहा, “मेरे पिता सोना जीतने से खुश होते, लेकिन यह ठीक है। पिछले संस्करण के विपरीत, जहां मैं दूसरे दौर में बाहर हो गई थी और खाली हाथ लौटी थी, इस बार मेरे पास अपने पिता को दिखाने के लिए कुछ है।
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आमतौर पर, उनके पिता ज्यादातर प्रतियोगिताओं में उनके साथ यात्रा करते हैं, लेकिन इस बार उनके स्कूल ने उनकी छुट्टी मंजूर नहीं की, इसलिए उनके साथ उनके चाचा नरेंद्र और छोटी चचेरी बहन साक्षी भी थीं, जो पदक नहीं जीत सकीं।
तन्नु ने अब तक के सफर में यहां जीते गये कांस्य पदक समेत चार पदक जीते हैं। उन्होंने 2023 में अंडर-19 स्कूल गेम्स में स्वर्ण पदक जीता; 2022 में अंडर-17 कैडेट रैंकिंग सीरीज़ में कांस्य और 2019 में अंडर-14 स्कूल नेशनल गेम्स में कांस्य पदक।
तन्नु ने कहा, “अगले खेलो इंडिया यूथ गेम्स में आप मुझे स्वर्ण पदक लेते हुए देखेंगे। मैं कोई कसर नहीं छोड़ूंगी और यहां से कड़ी मेहनत करूंगी। खेलो इंडिया यूथ गेम्स में मिले अवसर और पदक ने मुझे काफी उत्साहित किया है। मैं जानती हूं कि मैं बड़े और बेहतर की हकदार हूं।
उन्होंने कहा कि उनके पिता ने अपनी कम कमाई के बावजूद पहलवान के आहार को पूरा करने के लिए सब कुछ किया है। वह बोलीं, “वह मुझे मजबूत बनाए रखने के लिए सब कुछ खिलाते है। मेरे चाचा ने एक भैंस भी खरीदी है ताकि दूध और घी की कमी न हो।