मध्य कमान अस्पताल लखनऊ के सैन्य डॉक्टरों ने 40 दिन के नवजात बच्चे को ऐसे दिया जीवनदान

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लखनऊ। अस्पताल में जब नवजात शिशु होता है तो खुशी की बात होती है। माता-पिता, रिश्तेदारों और डॉक्टरों की टीम के चेहरे पर खुशी देखी जाती है। परंतु यह महसूस करना भी उतना ही निराशाजनक है कि कुछ नवजात बच्चों को विभिन्न जन्मजात स्थितियों के कारण उनके विकास में कठिनाई हो रही है।

पियरे रॉबिन सीक्वेंस (पीआरएस) एक ऐसा ही दुर्लभ विकार है, जिसमें निचला जबड़ा बहुत छोटा होने के साथ-साथ तालु के फटने से बच्चे को सांस लेने में दिक्कत होती है। अगर तुरंत इलाज न किया जाए तो इस तरह की गंभीर जन्म स्थितियों वाले ये बच्चे शायद ही कभी अपना पहला जन्मदिन मना पाते हैं।

पीआरएस एक बहुत ही दुर्लभ स्थिति होती है जो 60,000 जीवित जन्मों में से एक को प्रभावित करती है। वे निमोनिया और अन्य श्वसन स्थितियों का विकास करते हैं जिससे जीवित रहना मुश्किल हो जाता है।

कमान अस्पताल लखनऊ ने एक ऐसा ही मामला देखा जिसमें मरीज नवजात बच्चे को एक प्राथमिक अस्पताल से रेफर कर लखनऊ के कमान अस्पताल में भेजा गया था । इस नवजात बच्चे को सांस लेने में दिक्कत थी और पनपने में भी दिक्कत हो रही थी।

इस दौरान सैन्य डॉक्टरों – ब्रिगेडियर एमके रथ, सलाहकार मैक्सिलोफेशियल सर्जरी और कर्नल आशुतोष (निओनेटोलॉजिस्ट), कर्नल बादल पारिख (एनेस्थिसियोलॉजिस्ट) और लेफ्टिनेंट कर्नल विशाल कुलकर्णी (मैक्सिलोफेशियल सर्जरी) के नेतृत्व में विशेषज्ञों की एक टीम ने संयुक्त रूप से बच्चे का मूल्यांकन किया।

चूंकि बच्चे का वजन अपेक्षाकृत कम था और निचला जबड़ा अविकसित था इसलिए अंतरिम उपाय के रूप में होंठ-जीभ की आसंजन सर्जरी की गई। एक बार जब बच्चा एक बड़ी सर्जरी के लिए फिट हो गया तो उसे डिस्ट्रैक्टर (निचले जबड़े को आगे बढ़ाने के लिए इस्तेमाल होने वाले उपकरण) लगाने के लिए प्रबंधित किया गया।

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एनेस्थेसियोलॉजिस्ट द्वारा अत्याधुनिक वीडियो निर्देशित इंटुबेशन का सहारा लिया गया। नियोनेटल डिस्ट्रैक्शन हिस्टोजेनेसिस नामक नवीनतम सर्जिकल तकनीक का उपयोग करके बच्चे के छोटे निचले जबड़े को 10 मिमी से अधिक लंबा कर दिया गया।

रूसी सैनिकों के कटे हुए अंगों को लंबा करने के लिए प्रसिद्ध रूसी सैन्य सर्जन गैवरिल इलिजारोव द्वारा इस नॉवेल सर्जिकल तकनीक का विकास किया गया था।

मानव जबड़ों को लंबा करने के लिए तकनीक को मैक्सिलोफेशियल सर्जनों द्वारा सफलतापूर्वक अनुकूलित किया गया है। इस तकनीक में जानबूझकर जबड़े के दोनों तरफ फ्रैक्चर बनाना शामिल है, जो जानबूझकर 4-5 दिनों के लिए ठीक होने की अनुमति देता है।

ये धीरे-धीरे हीलिंग टिश्यू को खींचकर जबड़े के हिस्सों को अलग करता है और इस प्रकार अंतर्निहित जैविक क्षमता का उपयोग करता है। निचले जबड़े के लंबे होने से जीभ आगे बढ़ गई और ऊपरी दबी हुई वायुमार्ग खुल गई जिससे बच्चे को सामान्य रूप से सांस लेने में मदद मिली।

अस्पताल में रहने के 61 दिनों के बाद बच्चे को सभी कृत्रिम श्वासयंत्र बंद कर दिए गए और अस्पताल से छुट्टी दे दी गई। इस प्रकार लखनऊ स्थित मध्य कमान अस्पताल के सैन्य डॉक्टरों की टीम ने इस अत्याधुनिक तकनीक का उपयोग करते हुए एक नवजात शिशु के जीवन को खतरे में डालने वाली आपात स्थिति को सफलतापूर्वक प्रबंधित करते हुए नवजात को जीवनदान दिया।

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