एक नई शुरुआत: ऑस्ट्रेलिया के पहले खो-खो टर्फ ने भविष्य के लिए खोले दरवाज़े

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मई के अंत में, ऑस्ट्रेलिया के न्यू साउथवेल्स (एनएसडब्ल्यू) में लिवर पूल निर्वाचन क्षेत्र की सांसद, चरिश्माकलियंदा ने मार्सडेनरोड पब्लिक स्कूल में खोले गए नए खो-खो कोर्ट का उल्लेख किया—जो ऑस्ट्रेलिया में अपनी तरह का पहला है।

स्थानीय सांसद के रूप में कलियंदा ने इस पहल को न्यू साउथ वेल्स की संसद में रेखांकित किया और खेल के जमीनी स्तर पर विस्तार की संभावनाओं पर जोर दिया। इस प्रकार, भारत की जड़ों वाला पारंपरिक खेल खो-खो, दुनिया के सबसे खेल-प्रियदेशों में से एक में अपने लिए स्थान बना रहा है।

न्यू साउथवेल्स की संसद में उल्लेख, खो-खो वैश्विक मंच पर बना रहा है अपनी जगह

दक्षिण एशिया से बाहर स्टेडियमों में आने से बहुत पहले, खो-खो स्कूल के मैदानों का हिस्सा था—धूल भरी ज़मीन, चूने की रेखाएं, तेज़ दौड़ और तीखे मोड़। पंजाब में एक छात्र के रूप में राज सूरा के लिए यही खेल एक गहरा रिश्ता बन गया।

आज, वह रिश्ता हजारों मील दूर ऑस्ट्रेलिया में जिंदा है, जहां खो-खो अब सिंथेटिक टर्फ पर खेला जा रहा है—राज और उनके साथ पहली बार खेलने वाले खिलाड़ियों की एक टीम के नेतृत्व में, जो इस रोमांच कारी खेल को अब जाकर जान रहे हैं।

उत्थान, ठहराव और वापसी

राज की औपचारिक खेल यात्रा पंजाब के एक स्थानीय क्लब से शुरू हुई, जहां पारंपरिक खेलों की गहरी संस्कृति है। उनकी प्रतिभा ने उन्हें जिला, राज्य और फिर कॉलेज की टीम की कप्तानी तक पहुंचाया,

जहाँ उन्होंने कई अंतर-विश्व विद्यालय प्रतियोगिताएं जीतीं। उन्हें इंजीनियर नेशनल्स में सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी का खिताब भी मिला, जिसे वह आज भी याद करते हैं।

लेकिन जैसे-जैसे पढ़ाई का दबाव बढ़ा, खेल पीछे छूट गया। “अक्सर टूर्नामेंट की तारीखें परीक्षा सेट करा जाती थीं। अंत में मुझे खेलना छोड़ना पड़ा,” वे याद करते हैं। कॉलेज के बाद राज ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई की और 1990 के दशक के अंत में ऑस्ट्रेलिया चले गए—जहां खो-खो को उन्होंने अस्थायी रूप से पीछे छोड़ दिया।

एक वर्ल्ड कप ने फिर जगाई चिंगारी

उन्हें दोबारा खेलने का मौका 24 साल बाद मिला। 2024 में, राज को भारत में आयोजित पहले खो-खो वर्ल्डकप में ऑस्ट्रेलिया का प्रतिनिधित्व करने के लिए चुना गया। “यह एक अविश्वसनीय अनुभव था—उसी देश में फिर से खेलना, जहाँ मैंने इस खेल को सीखा था, लेकिन अब अपने नए देश की ओर से।”

खिलाड़ी के साथ-साथ उन्होंने शुरुआती खिलाड़ियों की एक टीम को कोचिंग भी दी, जिनमें से कई ने पहले कभी इस खेल का नाम भी नहीं सुना था। उनकी कोचिंग में पांच महीनों के भीतर एक खिलाड़ी को एक पेशेवर लीग के लिए शॉर्ट लिस्ट किया गया। “उस पल ने मुझे विश्वास दिलाया कि यह खेल कहीं भी विकसित हो सकता है,” राज कहते हैं।

नई ज़मीन पर नई नींव

अब खो-खो ऑस्ट्रेलिया के अध्यक्ष के रूप में, राज इस खेल को जमीनी स्तर से पुनर्निर्मित कर रहे हैं। मई 2025 में एक बड़ी उपलब्धि हासिल हुई—सिडनी के मार्सडेन रोड पब्लिक स्कूल में ऑस्ट्रेलिया का पहला समर्पित खो-खो मैदान उद्घाटित किया गया।

इस मैदान में रिमूवेबलपोल सिस्टम लगाया गया है, जिससे अन्य खेलों के साथ भी इसका उपयोग किया जा सके। यही मॉडल अब मेलबर्न और कैनबरा में भी अपनाया जा रहा है।

ऑस्ट्रेलियाई खो-खो खिलाड़ी मुद्रा भट्ट ने कहा, “इस नए मैदान पर खेलना अद्भुत अनुभव रहा है।” उनके साथी माइकल लिमानुएल ने जोड़ा, “यह देखकर बहुत अच्छा लगता है कि खो-खो को यहां मान्यता मिल रही है—

यह और युवाओं को प्रेरित करेगा।” राज अब स्कूलों में भी खो-खो को ले जा रहे हैं और नई पीढ़ी के खिलाड़ियों को शून्य से प्रशिक्षित कर रहे हैं।

नेतृत्व और प्रशिक्षण की नई सीख

भले ही उन्होंने दशकों तक खेला हो, राज को पता था कि कोचिंग एक अलग कौशल है। उन्होंने भारत लौटकर खो-खो फेडरेशन ऑफ इंडिया (केकेएफआई) और इंटरनेशनल खो-खो फेडरेशन (आईकेकेएफ) द्वारा संचालित एडवांस लेवल III A कोचिंग कोर्स और इंटरनेशनल सर्टिफिकेशन प्रोग्राम में भाग लिया।

“खेलना एक बात है, लेकिन कोचिंग पूरी तरह अलग दुनिया है,” वे कहते हैं। मलेशिया, केन्या और श्रीलंका जैसे देशों  केकोचों के साथ जुड़कर उन्हें खो -खो के वैश्विक भविष्य को आकार देने में नई ऊर्जा मिली।

चलती विरासत

अब इंजीनियरिंग से सेवानिवृत्त होकर राज पूरी तरह से खो-खो के विस्तार पर केंद्रित हैं—खिलाड़ियों की खोज प्रणाली, प्रमाणित प्रशिक्षण, स्कूलों में एकीकरण और राष्ट्रीय प्रतियोगिताएं विकसित कर रहे हैं।

जो सफर कभी स्कूल के धूल भरे मैदान से शुरू हुआ था, अब वैश्विक टर्फ पर दोबारा लिखा जा रहा है। खो-खो अब केवल परंपरा से चिपका नहीं है—बल्कि हर दौड़ के साथ वह एक नई विरासत का निर्माण कर रहा है।

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