ब्रेस्ट कैंसर के 15 फीसदी रोगियों को ही होती है कीमोथेरेपी की दरकार : डॉ मंजिरी

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लखनऊ: सीएसआईआर-सीडीआरआई ने आज 25वां राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिवस मनाया जिसका विषय “एक सतत भविष्य के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी में एकीकृत दृष्टिकोण” था। इस अवसर पर सीएसआईआर-सीडीआरआई की निदेशक डॉ. राधा रंगराजन ने मुख्य अतिथि डॉ. मंजिरी बाकरे और डॉ. धनंजय देंदुकुरी का स्वागत किया।

सीडीआरआई में मनाया गया 25वां राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिवस समारोह 

ओंकोस्टेम डायग्नोस्टिक्स लिमिटेड की संस्थापक सीईओ ने डॉ. मंजिरी बाकरे ने “क्या हर ब्रेस्ट कैंसर रोगी को कीमोथेरेपी की आवश्यकता होती है? मेड इन इंडिया, नव-पद्धति परीक्षणों की निर्णय लेने में भूमिका” पर व्याख्यान में कीमोथेरेपी की प्रासंगिकता पर सवाल उठाया।

कीमोथेरेपी के अत्यधिक उपयोग से शरीर के साथ आर्थिक नुकसान भी 

डॉ. मंजिरी बाकरे

उन्होंने बताया कि ब्रेस्ट कैंसर के 95 फीसदी रोगी कीमोथेरेपी से गुजरे हैं, जबकि मात्र 15 फीसदीरोगियों को ही इसकी आवश्यकता होती है तथा इससे लाभ ले पाते हैं। कीमोथेरेपी के अत्यधिक उपयोग से शारीरिक और वित्तीय हानि  होती है।

अतः कीमोथेरेपी की प्रक्रिया को अपनाने से पहले व्यक्ति को उचित रोगनिदान परीक्षण (प्रोग्नोस्टिक्स) और वैकल्पिक तरीकों पर भी ध्यान देना चाहिए।

उन्होंने बताया कि इस जरूरत को पूरा करने के लिए उन्होंने व्यक्तिगत कैंसर उपचार योजना के लिए नवीन, लागत प्रभावी (किफायती) एवं विश्वसनीय परीक्षणों को विकसित करने और उसके वितरण करने की आकांक्षा से अपनी स्टार्टअप कंपनी ओन्कोस्टेम की स्थापना की थी।

उनकी टीम का उत्पाद “कैनअसिस्ट-ब्रेस्ट (सीएबी)”, स्तन कैंसर रोगियों के लिए एक प्रमुख रोगनिदान परीक्षण उत्पाद है जो 6 वर्षों से भारत और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बेचा जा रहा है। उनका दावा है कि कैनअसिस्ट-ब्रेस्ट टेस्ट से भारत में करीब 70 फीसदी कैंसर मरीजों को फायदा हो सकता है जिससे कीमोथेरेपी के दुष्परिणामों से बचाव हो सकता है।

माइक्रोफ्लुइडिक प्रौद्योगिकी की प्वाइंट ऑफ केयर टेस्टिंग में होगी बड़ी भूमिका 

डॉ. धनंजय देंदुकुरी

अचिरा लैब्स प्राइवेट लिमिटेड के सह-संस्थापक और सीईओ डॉ. धनंजय देंदुकुरी ने कोविड के बाद की दुनिया में माइक्रोफ्लूडिक प्रौद्योगिकियों के माध्यम से देखभाल परीक्षण के बिंदु (पॉइंट ऑफ केयर) में तेजी से प्रगति पर अपने विचार साझा किए।

उन्होंने उल्लेख किया कि माइक्रोफ्लूडिक प्रौद्योगिकियां सरल एवं सस्ती परीक्षण समाधान के रूप में उभरी हैं जो आज की आवश्यकता को पूरा करने में सक्षम हैं।

उन्होने आगे बताया की उनकी टीम द्वारा तैयार माइक्रोफ्लुइडिक्स आधारित तकनीक इस संबंध में बहुत उपयोगी है क्योंकि इसमे मरीज के नमूने की बहुत ही कम मात्रा की आवश्यकता होती है (केवल 3 माइक्रोलीटर नमूना पर्याप्त है) साथ ही अभिकर्मक (रिएजेंट्स) की भी कम मात्रा में ही आवश्यकता होती है।

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इससे परीक्षण की लागत भी कम हो जाती है। इस तकनीक में एक ही कार्ट्रिज पर सेल सेपरेशन, मिक्सिंग एवं रीडआउट जैसी अनेक प्रक्रियाएं संभव हो जाती है जिस से इसकी कार्यक्षमता बढ़ जाती है जिसके कारण इसका उपयोग करना बहुत आसान हो जाता हैं। उन्होने बताया की भारत में इस नई तकनीक के लिए एक बड़ा उभरता हुआ बाजार एवं अपार संभावनाएं हैं।

सीएसआईआर-सीडीआरआई की निदेशक डॉ. राधा रंगराजन ने स्वागत भाषण में कहा कि प्रौद्योगिकी दुनिया के भविष्य को दर्शाती है क्योंकि प्रौद्योगिकी जीवन के प्रत्येक पहलू में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है चाहे वह औषधि अनुसंधान हो या मानव संसाधन विकास के किसी भी क्षेत्र में हो।

उन्होंने आगे कहा कि वर्ष 1999 में प्रथम राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिवस के अवसर पर, माननीय प्रधान मंत्री अटल बिहारी बाजपेयीजी ने सीएसआईआर-सीडीआरआई की लोकप्रिय मलेरिया-रोधी दवा, अल्फा-बीटा आर्टीथर को मार्केट में लांच किया था।

इस अवसर पर संस्थान की वार्षिक रिपोर्ट का विमोचन भी किया गया। कार्यक्रम के समन्वयक, डॉ अतुल गोयल और डॉ आशीष अरोड़ा ने वक्ताओं का परिचय दिया। कार्यक्रम का समापन डॉ. संजीव यादव द्वारा अतिथियों का आभार व्यक्त करते हुए किया गया। अंत मे सभी सदस्यों ने खड़े होकर राष्ट्रगान गाया।

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