इंसान को अंतर्मन झांकने की प्रेरणा दे गया ‘बटवारा और विरासत’

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लखनऊ। ‘यह तो दुनिया की रीत है। बटवारा तो होता ही रहता है। औरत के साथ कोई भी रिश्ता हो, धीरे-धीरे वह मां का रूप ले ही लेती है। बुढ़ापा और पैसे की कमी आदमी को कोढ का रोग लगा देती है। मेरे हिस्से की जो सांसें है, वह तुम रख लो… मेरा इंतजार करना… कुछ ऐसे ही संवादों के जरिए कलाकारों ने परिवार में अलग-थलग कर दिए गए बुजुर्गों की व्यथा बयां की।

बदलते परिवेश में अतीत की स्मृतियों को ताजा कर गया नाटक

गुरुवार को अमुक आर्टिस्ट ग्रुप के नाटक ‘बटवारा और विरासत’ की प्रभावी प्रस्तुति हुई। नाटक का मंचन उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी की रसमंच योजना के अंतर्गत हुआ।

मेरे हिस्से की जो सांसें है, वह तुम रख लो…

अनिल मिश्रा ‘गुरुजी’ के रंग आलेख, परिकल्पना एवं निर्देशन में हुए नाटक का मंचन वाल्मीकि सभागार में गुरुवार को हुआ। बटवारा कहानी की लेखिका नोयडा की सिनीवाली और विरासत की लेखिका आशा पांडेय हैं। मुख्य अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार आलोचक प्रो नालिन रंजन ने दीप प्रज्जवलन कर किया।

वाल्मीकि सभागार में ‘बटवारा और विरासत’ का प्रभावी मंचन

नाटक के शुरुआती हिस्से में नोयडा की लेखिका सिनीवाली की कहानी ‘बटवारा’ को मंचित किया गया। जो आज के मौजूदा हालात में वृद्ध दंपत्ति बालकृष्ण और सुभाषिनी की आपबीती होती है। जहां पीड़ा है, दर्द है और एक ही घर में रहकर बटवारा का दंश है।

नाटक के दूसरे हिस्से में महाराष्ट्र अमरावती की लेखिका आशा पांडेय की कहानी ‘विरासत’ को कलाकारों ने बखूबी ढाला। ‘विरासत’ कहानी गांव की परंपरा, संस्कृति, विरासत को बचाएं रखने की जद्दोजहद होती है।

जहां मुख्य किरदार ‘सुग्गन’ मुंबई से गांव वापस आता है। तो देखता है कि गांव बचा नहीं और जो बचे भी हैं, वह शहरों में तब्दील होते जा रहे हैं। तालाब-कुआं-गड़ही-पेड़ का वजूद खत्म हो रहा है। लोगों ने एक नई संस्कृति को जन्म दिया है। सुग्गन ‘आप जहां पैदा होते है, रचे-बसे होते है, वह आपकी मां होती है। मैं आज वापस अपनी मां के पास आ रहा हूं।

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बहू की कोख फलती-फूलती रहे, मेरे जैसे नही कि एक हुआ फिर ऊसर हो गई। इतने साल बाद गांव लौटा है, हंसी-खुशी जिंदगी जी, चैन से रह। तुम्हीं तो कहते हो कि हमें अपने बच्चों को विरासत में वैसा ही गांव सौंपना है। जैसे तुम्हीं तो कहते हो कि हमें अपने बच्चों को विरासत में वैसा ही गांव सौंपना है, जैसे हमारे पुरखों ने हमें सौंपा।

आमिर आमिर मुख्तार के संचालन में हुए नाटक में बालकृष्ण के किरदार में अरविन्द सिंह, सुभषिनी के किरदार में अनामिका शुक्ला, सुग्गन के किरदार में शोभित राजपूत व अरशद अली ने प्रभावी अभिनय किया।

प्राची श्रीवास्तव, ज्योति सिंह, वैभव/ आन्या, रिंकू, व्याख्या शर्मा (बाल कलाकार), आदित्य सिंह (बाल कलाकार), अर्चना जैन, दानिश अली अंसारी, गिरिराज किशोर शर्मा, प्रणव श्रीवास्तव, शशांक मिश्रा, आशुतोष मौर्य, रीता सिंह, अनीता सिंह, विष्णु पाण्डेय, कंवलजीत सिंह ने अभिनय कर प्रशंसा पाई।

लाइट डायरेक्शन सुरेन्द्र तिवारी, मेकअप दिनेश अवस्थी, विक्रम सिंह, मंच सामाग्री संजय त्रिपाठी, संतोष प्रजापति, दृश्यांकन श्याम जी लोधी, कॉस्ट्यूम अनामिका शुक्ला, सहयोगी में रामचरन / अमित तेनवंशी शामिल रहे।

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