लखनऊ। एसोसिएशन ऑफ प्राईवेट स्कूल्स, उ.प्र. एवं नेशनल इण्डिपेन्डेन्ट स्कूल्स एलायन्स (नीसा) के संयुक्त तत्वावधान में उत्तर प्रदेश के विभिन्न प्राईवेट स्कूल संगठनों के प्रतिनिधियों ने आज राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के अध्याय 9 के अनुसार ‘राज्य विद्यालय मानक प्राधिकरण के गठन,
शिक्षा के अधिकार अधिनियम के तहत फीस प्रतिपूर्ति धनराशि के निर्धारण, भुगतान एवं प्रवेश प्रक्रिया के निर्धारण, विद्यालय सुरक्षा अधिनियम के कार्यान्वयन तथा निजी स्कूलों पर सूचना का अधिकार अधिनियम (आरटीई) की वैधता जैसे गंभीर मुद्दों पर विचार-विमश किया गया।
इस अवसर पर शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण सेवा देने वाले कुछ प्रख्यात शिक्षाविदों को ‘उत्तर प्रदेश शिक्षा रत्न अवार्ड’ से सम्मानित भी किया गया।
इस अवसर पर विशिष्ट अतिथि उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक प्रशांत कुमार ने निजी स्कूलों से विद्यालय सुरक्षा अधिनियम के प्रभावशाली रूप से लागू करने में पुलिस विभाग के पूरे सहयोग का आश्वासन भी दिया।
इसके साथ ही इस अवसर पर भरत मलिक, जीएन वार, शशि, डॉ. अशोक ठाकुर, विजय शाह, प्रदीप शुक्ला, डॉ मंसूर हसन खान, बिजेन्द्र शर्मा, ओम, राकेश नन्दन, पूनम बरनवाल, शशि भूषण आदि भी उपस्थित थे।
इस अवसर पर डॉ. अतुल कुमार ने कहा कि हमारी सरकार से यह मांग है कि शिक्षा के अधिकार अधिनियम की धारा 12(2) का पालन करते हुए वर्ष 2013-2014 से लेकर 2023-2024 तक की फीस प्रतिपूर्ति धनराशि की गणना करके उसके अनुसार ही पिछले 11 वर्षों के बकाया फीस प्रतिपूर्ति धनराशि का भुगतान निजी स्कूलों को करें।
सरकार वर्ष 2013-14 से निजी स्कूलों को केवल धनराशि रू0450/- का भुगतान करती आ रही है, जिसका निर्धारण अधिनियम के अनुसार न करके सरकार निजी स्कूलों के साथ अन्याय कर रही है।
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नेशनल इण्डिपेन्डेन्ट स्कूल्स एलायन्स (नीसा) के प्रेसीडेन्ट कुलभूषण शर्मा ने कहा कि जिस तरह से पूरे देश से शिक्षा के अधिकार अधिनियम के तहत फर्जी प्रमाण पत्रों के आधार पर अपात्र बच्चों के प्रवेश लेने के समाचार आ रहे हैं, वे सरकार व निजी स्कूलों, दोनों के लिए काफी चिंताजनक हैं।
ऐसे में निजी स्कूलों को यह अधिकार होना चाहिए कि वे प्रवेश लेने वाले छात्रों की पात्रता की पूरी जांच करने के बाद ही अपने स्कूलों में उन छात्रों को प्रवेश दें, क्यों कि इससे एक ओर जहां अपात्र बच्चों के दाखिला लेने से स्कूल दण्ड का भागीदार बन जाता है तो वहीं दूसरी ओर पात्र बच्चों का हक मारे जाने के कारण उनके मौलिक अधिकार का हनन भी होता है, जो कि संविधान के विपरीत है।