असंगठित क्षेत्र के बच्चों के लिए उम्मीद बनी ‘रूबरू एक्सप्रेस’

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लखनऊ l स्वर्गीय डॉ. दिनेश प्रसाद श्रीवास्तव के पुण्य तिथि के अवसर पर उनकी पत्नी श्रीमती कनकलता श्रीवास्तव ने सपरिवार असंगठित क्षेत्र के बच्चों के शिक्षार्थ उन्हें आशीष स्वरूप पठन- पाठन सामग्री भेंट करने हेतु रूबरू एक्सप्रेस सामाजिक सेवार्थ संस्था का चयन किया।

यहां छोटे आयोजन में उन्हें कॉपी, पेंसिल रबड़ तथा सूक्ष्म जलपान आदि भेंट किया। उक्त अवसर पर स्वर्गीय डॉ. दिनेश प्रसाद श्रीवास्तव जी की पत्नी श्रीमती कनकलता श्रीवास्तव ने संस्था के संस्थापक श्रीमती कल्पना वार्ष्णेय से बच्चों तथा संस्था के बारे में संक्षिप्त में जानना चाहा कि ऐसे सुंदर कार्य की प्रेरणा और प्रारम्भ कैसे हुआ।

गरीब और असहाय लोगों की मदद कर रही सामाजिक सेवार्थ संस्था

श्रीमती कल्पना वार्ष्णेय बताती हैं कि जब भी वे असंगठित क्षेत्र के बच्चों को असामाजिक कृत्यों जैसे छोटे मोटे दुकान पर बर्तन साफ करते और मजदूरी करते देखती थी तो उन्हें असाधारण पीड़ा होती थी वे सोचती थीं कि बच्चे मासूम होते हैं और उनमें भी भगवान बसते हैं गरीब होने में उनका क्या दोष है।

उन्होने ऐसे बच्चों को मामूली चीज जैसे बिस्किट, चॉकलेट, मिठाई के लिए दुकानो के किनारे खड़े होकर लालची नजरों से तरसते देखा तो उनके बेचैनियां अनकी आंखों में छलक पड़ी,

उस वक़्त जब उन्होने उन बच्चों को खाने पीने की चीजें दिलवाई तो उन बच्चों के चेहरे पर संतोष और प्रशन्नता को स्पष्ट रूप से देखा तो उसी दिन उन्होने ऐसे असंगठित क्षेत्र के बच्चों के लिए कुछ करने का विचार ठान लिया।

उन्होने अपने दिल की बात जब अपने पति श्री मुकेश वार्ष्णेय (पेशे से बैंकर) से बताईं तो उन्हें सकारात्मक सहमति देते हुए उन्होने कहा कि ऐसे बच्चों को शिक्षा की अधिक जरूरत है।

श्रीमती वार्ष्णेय बताती हैं कि बस अपने आस-पास की महिला मातृशक्ति से उन्होने वार्ता की और 6 वर्ष पूर्व सितम्बर माह से लखनऊ के जानकीपुरम सेक्टर-एफ उमा वाटिका परिसर में स्थापित “रूबरू एक्सप्रेस सामाजिक सेवार्थ संस्था”, का ये कारवां चल पड़ा।

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यहां ये बताना जरूरी होगा कि असंगठित क्षेत्र क्या होता है और उनकी मजबूरियां क्या होती हैं।असंगठित क्षेत्र में वे अनौपचारिक आर्थिक गतिविधियां और रोज़गार व्यवस्थाएं शामिल हैं, जो सरकार के साथ पंजीकृत नहीं होतीं और उसके दिशा-निर्देशों का पालन नहीं करतीं।

लघु उद्योग, स्वरोज़गार वाले व्यक्ति, रेहड़ी-पटरी विक्रेता, अस्थायी मजदूर, घरेलू कामगार, ठेका श्रमिक, नैमित्तिक कामगार, कृषि कामगार, बंटाईदार, सीमांत कृषक ऐसे क्षेत्र के मुख्य पात्र होते हैं। असंगठित क्षेत्र में काम करने वालों की स्थिति अच्छी या स्थिर नहीं होती।

खास बातें-
  • असंगठित क्षेत्र में काम करने वालों को अक्सर कानूनी संरक्षण, औपचारिक रोज़गार अनुबंध, और सामाजिक सुरक्षा लाभ का अभाव रहता है।
  • असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले लोगों को कम वेतन मिलता है।
  • उन्हें उनके श्रम के लिए प्रतिदिन की दर से भुगतान किया जाता है।
  • असंगठित क्षेत्र में काम करने वालों को कभी-कभी सप्ताहांत और छुट्टियों पर भी काम करना पड़ सकता है।
  • असंगठित क्षेत्र में काम करने वालों का रोज़गार सुरक्षित नहीं होता।
  • लोगों को बिना किसी कारण के छोड़ने के लिए कहा जा सकता है।
  • संस्था के संचालक मंडल में श्रीमती कल्पना वार्ष्णेय के साथ वरिष्ठ संरक्षक राजीव वार्ष्णेय,सचिव ममता गुप्ता,रीना रॉय,उपमा दीक्षित सभी का निःस्वार्थ भाव से पूर्ण समर्पण अद्वितीय है।
  • बच्चों की प्रगति अति सराहनीय एवं प्रशंसनीय है ।

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