800 साल पुरानी सांस्कृतिक पंढरपुरवारी की अद्भुत फोटोग्राफिक प्रदर्शनी देखे यहां

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समाजसेवी और कला संग्रह कर्ता परवेज दमानिया और रतन लुथ लेकर आ रहे हैं ऐसी अद्भुत फोटोग्राफिक प्रदर्शनी, यानि ऐसी कला का संग्रह जो भारत मे पहली बार किसी ने पेश की होगी।

विश्व के मशहूर फोटोग्राफर्स के कैमरे में खिंची हुई पंढरपुर यात्रा के तीर्थयात्रियों के भाव और भक्ति, संस्कृति को क्यूरेट कर उसकी प्रदर्शनी लेकर आ रहे हैं जिसे टाइटल दिया गया हैं द ग्रेट पिल्ग्रिमेज, पंढरपुर ‘ या द ग्रेट तीर्थयात्रा – पंढरपुर।

पर्यटन निदेशालय, महाराष्ट्र सरकार के सहयोग से परवेज दमानिया और रतन लूथ द्वारा क्यूरेट प्रदर्शनी पीरामल गैलरी ऑफ़ फ़ोटोग्राफ़ी में आर्ट फॉर्म, एनसीपीए में 28 से 30 सितंबर, सुबह 10 बजे से रात 8 बजे तक आयोजित की जाएगी। वैसे पंढरपुर वारी, विश्वास की 800 साल पुरानी परंपरा का दावा करता है।

परवेज दमानिया की अद्भुत पहल, कैमरे में उतारा है दिग्गज फोटोग्राफर ने

इसमें एक लाख से अधिक तीर्थयात्री या वारकरी हर साल मानसून की शुरुआत में विठोबा मंदिर तक पहुंचने के लिए 21 दिनों से अधिक पैदल यात्रा करते हैं।

गांधी टोपी में पुरुष, सिर पर तुलसी के बर्तन के साथ रंगीन साड़ियों में महिलाएं, दिंडी की अगुवाई करने वाले वीर घोड़े, भगवा झंडे, पालकी, वीणा, मृदंगा, ढोलकी और चिपली की भक्तिपूर्ण ध्वनि, फुगड़ी की ऊर्जा – सौंदर्य मौसम के लिए बीज बोने के बाद यात्रा करने वाले साधारण लोग, भगवान पांडुरंग से मिलने के लिए खुशी से झूमते हुए सूरज और बारिश को झेलते हुए पंढरपुर के रास्ते में नाचते और गाते हुए मदमस्त रहते हैं।

जाति, पंथ, अमीर और गरीब के बंधनों को तोड़ते हुए एक अद्वितीय तीर्थयात्रा में मानवता का यह प्रवाह भले ही कुछ हिस्सों में ढका हो, लेकिन फोटो जर्नलिस्टों द्वारा इसकी संपूर्णता में साफ झलकती हैं । इस तस्वीरों में सभी एक समान दिखते हैं।

परवेज दमानिया कहते हैं कि, “वारी पृथ्वी पर सबसे प्राचीन और शक्तिशाली तीर्थों में से एक है। मैंने कुछ साल पहले वारी की यात्रा की और मंत्रमुग्ध कर देने वाले पलों को घर ले आया। उन्होंने मेरे दिमाग को झकझोर दिया और मैंने रतन लूथ से बात की और इसके जरिये हमें बेहतरीन फोटोग्राफरों की एक टीम मिली।

सम्मानित फोटो जर्नलिस्ट पद्म सुधारक ओल्वे, ऐस लेंसमेन शांतनु दास, महेश लोंकर, पुबारुन बसु, मुकुंद पारके, सौरभ भाटीकर, डॉ सावन गांधी, प्रणव देव, राहुल गोडसे और धनेश्वर विद्या, प्रोफेसर नितिन जोशी, दीपक भोसले और शिवम हरमलकर के साथ सिम्बायोसिस यूनिवर्सिटी ने उस टीम का गठन किया।

इसने वारिकरों के विश्वास, किंवदंती, इतिहास और परंपरा के इन कालातीत क्षणों को अपने बेहतरीन कैमरे की फ्रेम में कैद किया। विश्वास की इस छलांग को संभव बनाने के लिए पर्यटन मंत्रालय, महाराष्ट्र सरकार ने हाथ मिलाया और अपना सहयोग दिया।

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21 दिन की पदयात्रा कोई आसान यात्रा नहीं है और वारकरियों की आस्था की छलांग को पकड़ने की यात्रा भी कोई आसान यात्रा नहीं थी। अद्भुत और रोमांच से भरपूर आस्था की यात्रा ने हममें से प्रत्येक को मानसिक रूप से मजबूत और निडर बना दिया है, लेकिन तस्वीरें जहाँ पर कोई पोज़ नही दिए गए ।

वहीं मौजूद लाइट में इन्हें कैप्चर करना और वास्तविक भावनाओं को प्रस्तुत करने की चुनौती ,हमनें मिलकर एक अद्भुत फोटो वृत्तचित्र बनाया है जो वहां मौजूदा तीर्थयात्रियों की जोश को दिखता हैं,” परवेज दमानिया ने विस्तार से बताया।

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