सामाजिक न्याय भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग : न्यायमूर्ति डीपी सिंह

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लखनऊ। अंतर्राष्ट्रीय न्याय दिवस के अवसर पर हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के तत्वावधान में ऑनलाइन संदेश “औपचारिक रोजगार के माध्यम से सामाजिक न्याय प्राप्त करना” का आयोजन किया गया। ऑनलाइन संदेश में सम्मानित वक्तागण के रूप में न्यायमूर्ति डीपीसिंह (सेवानिवृत्त, उच्च न्यायालय लखनऊ) ने शिरकत की।

अंतर्राष्ट्रीय न्याय दिवस के विषय में बताते हुए न्यायमूर्ति डीपी सिंह ने कहा कि आज विश्व न्याय दिवस है जो संयुक्त राष्ट्र संघ सामाजिक परिप्रेक्ष्य में सामाजिक न्याय हेतु विश्व न्याय दिवस मनाता है। आज का थीम औपचारिक रोजगार के माध्यम से सामाजिक न्याय प्राप्त करना है।

” औपचारिक रोजगार में रेगुलर वैकेंसी के अतिरिक्त कांट्रैक्ट रोजगार, आउटसोर्सिंग रोजगार जिसमें रेगुलर सैलरी नहीं दी जाती है, आते है। 140 करोड़ की जनसंख्या ने हर किसी को रेगुलर स्केल पर तनख़्वाह देना संभव नहीं है।

हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कहते हैं कि हमारी शिक्षा व्यवस्था ब्रिटिश प्रणाली पर आधारित है जो सिर्फ बाबू बनाती है। हमें ऐसी शिक्षा प्रदान करनी होगी जिससे व्यक्ति स्वयं रोजगार के अवसर पैदा कर सके। हमारा संविधान वैदिक व्यवस्था पर आधारित है जहां सबको समान अधिकार प्राप्त है।

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में बिना किसी भेदभाव के अनाज बांटा गया, गैस सिलेंडर गरीबी के आधार पर बांटा
गया। ऋग्वेद में कहा गया है नदियां हर व्यक्ति को जल देती हैं फिर भी उनका जल कम नहीं होता। ऐसे ही किसी को दान देने से धन कम नहीं होता।

सामाजिक न्याय भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग रहा है। संविधान का भाग 4 शासन को निर्देश देता है कि वह एक ऐसी सामाजिक व्यवस्था कायम करें जहां जनहित बिना किसी भेदभाव के सर्वोच्च हो और कार्य के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को समान रोजगार का अवसर तथा पारिश्रमिक मिले (अनुच्छेद 38-39)।

अनुच्छेद 47 निर्देश देता है कि सरकार सामान्य रूप से सब के जीने के स्तर को बढ़ावे तथा स्वास्थ्य और पोषण को भी उच्च स्तर की ओर ले जाए। जीवन का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत मूलभूत अधिकार है। जीवन यापन हेतु जो भी व्यवस्था है वह भी जीवन जीने के अधिकार के साथ मूलभूत अधिकार है।

जहां तक सरकार का सवाल है यह उसके आर्थिक संपन्नता पर अवलंबित है एक अन्य केस (Francis Corili Mollen V. Vs Admistrator Union Territory New Delhi 1981 V.2 SCR 516) में उच्चतम न्यायालय ने बल दिया है कि जीने का अधिकार मात्र पशुओं की तरह जीने से नहीं बल्कि उन सभी अधिकारों के साथ है, जिससे मानव सम्मानजनक जीवन जी सकें।

यदि कोई व्यक्ति स्वीकृति पदों पर कार्य कर रहा है तो वह नियमानुसार वेतन और सुविधा का अधिकारी है | न्यूनतम मजदूरी अधिनियम में संविदा पर नियुक्त पदों हेतु सरकार वेतन निर्धारित करती है। भारत सरकार ने 26.10.2021 को
दैनिक मजदूरों के वेतन का पुन: निर्धारण किया है।

परंतु ऐसा देखा गया है कि सरकार द्वारा निर्धारित वेतन से कम वेतन संविदा पर नियुक्त व्यक्तियों को दिया जाता है। | निजी क्षेत्र में तो स्थिति और भी खराब है। चीनी मिलो, बॉटलिंग प्लांट तथा अनेक व्यवसायों में निजी व्यापारी ₹5000, ₹6000 पर नियुक्ति कर कार्य ले रहा है जो सामाजिक शोषण के श्रेणी में आता है।

ऐसे निजी क्षेत्र के व्यापारियों या प्रतिष्ठानों को इंगित कर तत्काल दंडित करने की व्यवस्था होनी चाहिए जिससे सामाजिक शोषण रुक सके। सामाजिक शोषण, भुखमरी, गरीबी और श्रीलंका जैसे जन विरोध को जन्म देती है। उच्च स्तर पर
ईमानदारी होते हुए भी निचले स्तर पर असक्रिय और अप्रभावी तंत्र सामाजिक शोषण को रोक नहीं पाता और ईमानदारी से शासन द्वारा लिए गए निर्णय कार्यान्वित न होने के कारण निचले स्तर पर व्यक्ति पीड़ित होता है।

न्यायमूर्ति ने हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट द्वारा किए जा रहे सामाजिक कार्यों की प्रशंसा की। इस अवसर पर ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी हर्षवर्धन अग्रवाल व स्वयं सेवक भी मौजूद रहे।

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