लखनऊ। इस संसार में जन्म लेने के बाद हर किसी को मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है। यह सत्य है कि मनुष्य का पहला मार्गदर्शन उसके माता-पिता करते हैं, उसे अच्छे –बुरे, गलत-सही के बीच का फर्क बताते हैं, परंतु जब मनुष्य सांसारिक व व्यवहारिक ज्ञान प्राप्त करने योग्य हो जाता है।
तब एक गुरु ही है जो मनुष्य को उसके लक्ष्य तक पहुंचने के काबिल बनाते हैं। वह गुरु ही हैं जो मनुष्य को ईश्वर तक पहुंचने का सही मार्ग बताते हैं। तभी गुरु को भगवान से भी उच्च दर्जा दिया गया है। आज के आधुनिक युग में गुरु कृपा किस प्रकार पाई जा सकती है व गुरु कृपा से किस तरह से व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन आ सकता है।
हेल्प यू एजुकेशनल एवं चैरिटेबल ट्रस्ट ने आयोजित की ऑनलाइन संगोष्ठी
इस विषय पर प्रकाश डालने हेतु हेल्प यू एजुकेशनल एवं चैरिटेबल ट्रस्ट ने गुरु पूर्णिमा के पूर्व दिवस पर ऑनलाइन संगोष्ठी विषयक “गुरु कृपा: अभाव और संभावनाएं” का आयोजन “राम दरबार”, हेल्प यू एजुकेशनल एवं चैरिटेबल ट्रस्ट के इंदिरा नगर स्थित प्रधान कार्यालय में किया।
संगोष्ठी में मुख्य वक्ताओं में अपरिमेय श्यामदास, अध्यक्ष, लखनऊ इस्कान मंडल, श्रीमती रुचि भुवन जोशी, प्रधानाचार्य, सिटी मांटेसरी स्कूल, इंदिरा नगर कैम्पस व समर्थ नारायण, एडवांस कोर्स टीचर, आर्ट ऑफ लिविंग मौजूद रहे। संगोष्ठी का संचालन वरिष्ठ पत्रकार सुश्री शैलवी शारदा ने किया।
इस अवसर पर समर्थ नारायण ने बताया कि मनुष्य अपने जीवन में अनेक प्रकार की इच्छाएं रखता है परंतु किसी कारणवश अगर इच्छाएं पूरी नहीं होती तो उसे पहले बेचैनी बाद में दुख: का अनुभव होने लगता है। उस दुख” में जो हमारा ध्यान रखती है वही गुरु कृपा होती है। गुरु कृपा से ही हमारी आत्मा का विस्तार होता है।
आज का युग विज्ञान का युग है परंतु विज्ञान जहां हमें बाहरी दुनिया का ज्ञान कराता है, आध्यात्मिक ज्ञान हमें आत्ममंथन की ओर ले जाता है। अगर हमारी आत्मा शुद्ध है तो हम संसार में सकारात्मकता ही फैलाते हैं।
जब आप गुरु की शरण में जाते हैं तो 5 चीजें आपको महसूस होने लगती हैं – सुख की अनुभूति, दुख: का क्षय, क्षमताओं में वृद्धि, ज्ञान की रक्षा, सर्व समृद्धि। गुरु अपना रहम हर व्यक्ति पर बरसाता है पर कहीं ना कहीं हम ही उसे अपनाने से रह जाते हैं।
श्रीमती रुचि भुवन जोशी ने कहा, आज के शैक्षिक युग में लोग गुरु और अध्यापक के फर्क को समझने लगें हैं। गुरु की भूमिका निभाने के लिए हमें संसार में आध्यात्मिक लोगों की जरूरत है। आज स्कूलों में 3 तरह की शिक्षा दी जा रही है – भौतिक शिक्षा, मानवीय शिक्षा एवं आध्यात्मिक शिक्षा।
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आज के समय में आध्यात्मिक शिक्षा बहुत जरूरी हो गई है जिससे बच्चे अपने धर्म, अपने ईश्वर के बारे में जाने। बच्चे वही सीखते हैं जो वह देखते हैं और यह हमारी ज़िम्मेदारी है कि हम बच्चे पर नजर रखें व उसके सामने कुछ गलत ना कहें। हमें बच्चों को इस तरह के अनुभव देने चाहिए कि वह यह समझे कि उन्हें संसार के लिए कुछ करना है।
अपरिमेय श्याम दास ने बताया कि संसार में दो प्रकार के गुरु होते हैं- भौतिक गुरु व आध्यात्मिक गुरु। भौतिक शिक्षा व्यक्ति को सुख और दुख की ओर ले जाती है, आध्यात्मिक गुरु हमें आनंद की शिक्षा देते हैं। बच्चों को अच्छा वातावरण घर से ही मिलता है, अगर माता-पिता आध्यात्मिक हैं तो बच्चे भी आध्यात्मिक होंगे।
आज दुनिया योग के पीछे भाग रही है, मेडिटेशन कर रही है लेकिन इस बात से अनजान है कि मेडिटेशन करने में किसका ध्यान करना है, योग के द्वारा हम किस से जुड़ना चाहते हैं, परमात्मा से पर यह नहीं जानते कि परमात्मा कौन है। शास्त्रों में परमात्मा का पूर्ण ज्ञान है जो कि हमें गुरु के माध्यम से ही मिल सकता है।
सुश्री शैलवी शारदा ने सभी का आभार जताते हुए कहा कि पुरातन शास्त्रों के अनुसार गुरु की कृपा जिसे मिल जाए उसे किसी और चीज की आवश्यकता नहीं होती। परंतु आज के इस तकनीकी युग में कहीं ना कहीं गुरुकृपा का अभाव हो गया है क्योंकि लोगों के पास समय की कमी है।
सामाजिक परिवेश, व मनुष्य की इच्छाओं में बदलाव के कारण इस तरह की परिस्थितियां पैदा हो गई हैं परंतु गुरु आपके अंदर की क्षमताओं को पहचान कर आपको सही रास्ता दिखाते हैं, चिंताओं को दूर करते हैं व आध्यात्मिकता के रास्ते पर ले जाते हैं। संगोष्ठी में हेल्प यू एजुकेशनल एवं चैरिटेबल ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी हर्ष वर्धन अग्रवाल, न्यासी डॉ रूपल अग्रवाल व ट्रस्ट के कार्यकर्ता भी मौजूद रहे।