लखनऊ। आम के आम और गुठलियों के दाम की कहावत अब यूपी के किसानों के जीवन में चरितार्थ होगी। फसल काटने के बाद उनके और पर्यावरण के लिए समस्या मानी जाती रही पराली भी अब आमदनी और ऊर्जा का जरिया बन रही है। यह संभव हो रहा है सीबीजी (कम्प्रेस्ड बायो गैस) प्लांट से।
सीबीजी प्लांट में पराली से ईंधन तैयार हो रहा है और ईंधन बनाने के लिए कच्चे माल के रूप में किसानों से उनकी पराली खरीदी जा रही है। हाल फिलहाल उत्तर प्रदेश में दस सीबीजी प्लांट क्रियाशील हो चुके हैं। आने वाले समय में प्रदेश में इनकी संख्या बढ़कर सौ हो जाएगी।
आने वाले समय में प्रदेश में होंगे सौ सीबीजी प्लांट
इसी महीने की आठ तारीख को केंद्रीय पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्री हरदीप सिंह पुरी इसकी घोषणा भी कर चुके हैं।यंत्रीकरण के बढ़ते चलन और श्रमिकों की अनुपलब्धता होने की वजह से अब फसलों की कटाई कंबाइन से ही होती है।
खरीफ और रबी की प्रमुख फसल धान और गेहूं की कटाई के बाद अगली फसल की तैयारी के लिए इन फसलों के अवशेष जलाने की प्रथा आम है। इसके कारण खासकर धान की कटाई के बाद मौसम में नमी के कारण यह समस्या कुछ इलाकों में गंभीर हो जाती है।
उत्तर प्रदेश की योगी सरकार इस समस्या का स्थाई हल निकालने के लिए शिद्दत से लगी है। इससे संबंधित योजनाएं जब तक अमल में आएं तब तक के लिए भी सरकार की यह मंशा है कि हर संभव तरीकों से पराली जलाने से होने वाले प्रदूषण की समस्या को कम किया जाय। इस दिशा में सीबीजी प्लांट एक शानदार विकल्प बनकर सामने आया है।
सरकार ने उत्तर प्रदेश राज्य जैव ऊर्जा नीति 2022 का जो ड्राफ्ट तैयार किया है, उसमें कृषि अपशिष्ट आधारित बायो सीएनजी, सीबीजी इकाइयों को कई तरह के प्रोत्साहन का प्रावधान किया गया है।
सरकार की मंशा हर जिले में सीबीजी प्लांट लगाने की है। इसी कड़ी में 8 मार्च को गोरखपुर के धुरियापार में इंडियन ऑयल के सीबीजी प्लांट का शुभारंभ हो चुका है।
इसके उद्घाटन अवसर पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ उपस्थित रहे केंद्रीय पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने आने वाले समय में यूपी में सीबीजी प्लांट की वर्तमान संख्या दस को सौ के आंकड़े तक ले जाने की प्रतिबद्धता व्यक्त की थी।
वास्तव में 165 करोड़ रुपये के निवेश वाला गोरखपुर का यह सीबीजी प्लांट पर्यावरण की रक्षा, किसानों की आमदनी बढ़ाने और ऊर्जा आत्मनिर्भरता की दिशा में बड़ा प्रयास है।
इस प्लांट में रोजाना 200 मीट्रिक टन पराली यानी कृषि अवशेष (धान का भूसा) 20 मीट्रिक टन प्रेसमड और 10 मीट्रिक टन मवेशियो के गोबर का उपयोग होगा। बायोगैस प्लांट में प्रतिदिन लगभग 20 मीट्रिक टन बायोगैस और 125 मीट्रिक टन जैविक खाद का उत्पादन होगा।
जैविक खाद से कृषि की पैदावार बढ़ाने में मदद मिलेगी इस तरह के प्लांट का सीधा मतलब यह हुआ कि ऊर्जा क्षेत्र में भी अन्नदाता किसानों की बड़ी भूमिका होगी। और, इस ऊर्जा उत्पादन के क्षेत्र से जुड़कर वह अतिरिक्त आय भी अर्जित करेंगे। उधर पराली जब जलाई नहीं जाएगी तो पर्यावरण संरक्षण आप ही होने लगेगा।
पराली प्रबंधन के लिए किसानों में सरकार 17 लाख बायो डीकंपोजर भी बांटेगी
सीबीजी प्लांट को प्रोत्साहित करने के साथ ही सरकार ने तय किया है कि वह धान की पराली को बायोकपोस्ट में बदलने के लिए 17 लाख किसानों को बायो डीकंपोजर उपलब्ध कराएगी। इस बीच जागरूकता और अन्य अभियान भी जारी रहेंगे।
पराली जलाने के क्या हैं दुष्प्रभाव
अगर आप कटाई के बाद धान की पराली जलाने की सोच रहे हैं तो रुकिए और सोचिए। आप सिर्फ खेत नहीं उसके साथ अपनी किस्मत खाक करने जा रहे हैं।
क्योंकि पराली के साथ फसल के लिए सर्वाधिक जरूरी पोषक तत्व नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश (एनपीके) के साथ अरबों की संख्या में भूमि के मित्र बैक्टीरिया और फफूंद भी जल जाते हैं। भूसे के रूप में पशुओं का हक तो मारा ही जाता है।
पराली में है पोषक तत्वों का खजाना
शोधों से साबित हुआ है कि बचे डंठलों में एनपीके की मात्रा क्रमश: 0.5, 0.6 और 1.5 फीसद होती है। जलाने की बजाए अगर खेत में ही इनकी कंपोस्टिंग कर दी जाय तो मिट्टी को यह खाद उपलब्ध हो जाएगी।
इससे अगली फसल में करीब 25 फीसद उर्वरकों की बचत से खेती की लागत में इतनी ही कमी आएगी और लाभ इतना ही बढ़ जाएगा। भूमि के कार्बनिक तत्वों, बैक्टिरिया फफूंद का बचना, पर्यावरण संरक्षण और ग्लोबल वार्मिग में कमी बोनस होगा।
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गोरखपुर एनवायरमेंटल एक्शन ग्रुप के एक अध्ययन के अनुसार प्रति एकड़ डंठल जलाने पर पोषक तत्वों के अलावा 400 किग्रा उपयोगी कार्बन, प्रतिग्राम मिट्टी में मौजूद 10-40 करोड़ बैक्टीरिया और 1-2 लाख फफूंद जल जाते हैं।
उप्र पशुधन विकास परिषद के पूर्व जोनल प्रबंधक डा. बीके सिंह के मुताबिक प्रति एकड़ डंठल से करीब 18 क्विंटल भूसा बनता है। सीजन में भूसे का प्रति क्विंटल दाम करीब 400 रुपए माना जाए तो डंठल के रूप में 7200 रुपये का भूसा नष्ट हो जाता है। बाद में यही चारा संकट का कारण बनता है।
अन्य लाभ
- फसल अवशेष से ढकी मिट्टी का तापमान नम होने से इसमें सूक्ष्मजीवों की सक्रियता बढ़ जाती है,जो अगली फसल के लिए सूक्ष्म पोषक तत्व मुहैया कराते हैं।
- अवशेष से ढकी मिट्टी की नमी संरक्षित रहने से भूमि के जल धारण की क्षमता भी बढ़ती है। इससे सिंचाई में कम पानी लगने से इसकी लागत घटती है। साथ ही दुर्लभ जल भी बचता है।
विकल्प
- डंठल जलाने के बजाय उसे गहरी जोताई कर खेत में पलट कर सिंचाई कर दें। शीघ्र सड़न के लिए सिंचाई के पहले प्रति एकड़ 5 किग्रा यूरिया का छिड़काव कर सकते हैं। इसके लिए कल्चर भी उपलब्ध हैं।